नज़रे इनायत
तुम जो भी करो ,है मुनासिब तुम्हे ,
हम जो भी करें,हम कसूरवार है
है हमारी खता,सिर्फ इतनी ही बस,
चाहते है तुम्हे ,करते हम प्यार है
जो तुम्हारी रजा,वो हमारी रजा ,
ना तुम्हारी,हमारा भी इंकार है
ऐसे आशिक़ कहीं भी मिलेंगे नहीं ,
जो कि होने को कुर्बान ,तैयार है
आप नज़रें उठा कर ,हमें देखती ,
चाँद का हमको हो जाता ,दीदार है
होगी नज़रे इनायत कभी हम पे भी,
आएगा वो भी दिन हमको इन्तजार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तुम जो भी करो ,है मुनासिब तुम्हे ,
हम जो भी करें,हम कसूरवार है
है हमारी खता,सिर्फ इतनी ही बस,
चाहते है तुम्हे ,करते हम प्यार है
जो तुम्हारी रजा,वो हमारी रजा ,
ना तुम्हारी,हमारा भी इंकार है
ऐसे आशिक़ कहीं भी मिलेंगे नहीं ,
जो कि होने को कुर्बान ,तैयार है
आप नज़रें उठा कर ,हमें देखती ,
चाँद का हमको हो जाता ,दीदार है
होगी नज़रे इनायत कभी हम पे भी,
आएगा वो भी दिन हमको इन्तजार है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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