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शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

तीन सामयिक क्षणिकाए

तीन सामयिक क्षणिकाए
            साहस
फंसे कानूनी फंदे में ,बड़े नामी थे एडीटर
बहुत जो संत पूजित थे ,आज है जेल के अंदर
कृष्ण खुद को बताते थे ,भटकते साँई है दर दर
एक लड़की के साहस ने ,दिया है देखो क्या क्या कर

           पुलिस वाले
हम पुलिस वाले है
हमारी मजबूरियों के भी अंदाज निराले है
आज की  राजनैतिक व्यवस्था को कोसते है
क्योंकि कल तक डंडे से ठोकते थे,
आज उन्हें सलाम ठोकते है

          नया कुत्ता
मेरी गली के ,दूसरी मंजिल के फ्लेट में,
किसी ने एक कुत्ता पाला
गली के कुत्तो ने ,उसकी आवाज सुनी ,
हंगामा कर डाला
उनकी गली में नया कुत्ता आ जाये ,
वो हजम ना कर पाये
इसलिए ,उसके फ्लेट के नीचे ,
भोंकते रहे,चिल्लाये
पर जब   कुछ बस न चला तो चुपचाप,
रिरियाते ,अपने आप
फ्लेट की नीची सीढ़ी के आसपास ,
कर के चले गए पेशाब

घोटू 
 

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