गाने-नये पुराने-अपने बेगाने
पुराने गाने
सुन्दर शब्दावली
मधुर धुन
कर्णप्रिय
मनभावन
पुरानी पीढ़ी की तरह
भावना और
रिश्तों की अहमियत से लिपटे हुए,
लम्बे समय तक लोगों को
याद रहनेवाले .
जब भी होठों पर आते है,
अपने से लगते है
और नये गाने अक्सर,
बेतुके बोल,
कानफोडू संगीत,
भाव शून्य
आत्मीयता विहीन
चार दिन तक शोर मचाते है
फिर बिसरा दिये जाते है
जहाँ अक्सर,
भावनाएं और आत्मीयता का बोध,
बड़ी मुश्किल से मिलता है
नये गाने,
नयी पीढ़ी की तरह ,
बेगाने होते जा रहे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू',
भेद न उसका जाना जाता
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भेद न उसका जाना जातालगता है ख़ुद नाच रहे हैं पर सब यहाँ नचाये जाते, भ्रम ही
है सब बोल रहे हैं कोई बुलवाता भीतर से ! शब्द निकलते अनचाहे हीअनजाने ही भाव
उमड...
2 घंटे पहले
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