वरिष्ठ साथियों से एक निवेदन
भूल जाओ कि तुम जन्मे थे
किसी रईसी आंगन में
बड़ी शान और नाज़ नखरों से
मौज मनाई बचपन में
भूल जाओ आसीन रहे तुम
ऊंचे ऊंचे ओहदों पर
इतना खौफ हुआ करता था
कांपा करता था दफ्तर
भूल जाओ तुम्हारा फेवर
पाने को आगे पीछे
भीड़ लगी रहती लोगों की
घेरे रहते थे चमचे
सरकारी गाड़ी ,शोफर था
एक बड़ा सा था बंगला
फौज नौकरों की थी घर पर
रौब तुम्हारा था तगड़ा
लेकिन जब तुम हुए रिटायर
राजपाट सब छूट गया
चमचे भी हो गए पराये
हृदय तुम्हारा टूट गया
दिल्ली की एक सोसाइटी में
एक छोटा सा फ्लैट लिया
बच्चे बसे विदेश ,संग अब
रहते बीवी और मियां
तुम्हारे जैसे कितने ही,
बुझे बुझे से अंगारे
ऐसी ही कुछ परिस्थिति में
बसे यहां पर है सारे
सबका भूतकाल स्वर्णिम था
थे ऑफिसर डायरेक्टर
लेकिन समय काटने को सब
एक दूजे पर अब निर्भर
साथ घूमते खाते पीते
गप्प मारते गार्डन में
बीती हुई अफसरी का पर
भूत जागता जब मन में
छोटी छोटी बातों मे भी
ईगो जागृत हो जाता
बच्चों जैसे लड़ने लगते
प्रेम भाव सब खो जाता
तो मेरे हमसफर साथियों
मुझको बस यह कहना है
बाकी बची उम्र है जितनी
हमें संग ही रहना है
भूल जाओ तुम बीती बातें
ऐसे थे तुम वैसे थे
कोई फर्क किसी को भी
ना पड़ता है तुम कैसे थे
गीत रईसी के मत गाओ
भूलो ऊंची पोजीशन
भूल जाओ सब ठाठ बाट और
जियो आम आदमी बन
भूलो मत कटु सत्य जी रहे
हम तुम सब हैं बोनस में
कब तक जीना,कब मरना है
नहीं हमारे कुछ बस में
इसीलिए जितना जीवन है
मिलजुल रहो दोस्ती में
हंसी खुशी से नाचो गाओ
वक्त गुजारो मस्ती में
भूल जाओ तुम कि कल क्या थे
सिर्फ आज की याद रखो
जी भर प्यार लुटाओ सब पर
जीवन को आबाद रखो
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।