भुनना
मैंने देखा है दुनिया में ,
कि औरों की प्रगति देखकर
मन में लगती आग ,जलन से ,
जलते भुनते लोग अधिकतर
लेकिन ऐसे जलना भुनना,
कोई बात नहीं है अच्छी
पर कुछ चीज़ें ऐसी होती
जो भुनने पर लगती अच्छी
भुनता जब मक्की का दाना
तो वह पॉपकॉर्न बन जाता
उसकी सख्ती मिट जाती है
वह स्वादिष्ट नरम हो जाता
भुन जाती है अगर मूंगफली
वह चिनिया बादाम हो जाती
खो देती तैलीय स्वाद है ,
वह खस्ता लजीज हो जाती
पर जब अन्न का दाना भुनता
तो वह बीज नहीं रह जाता
काम आता है एक बार ही
काम नहीं दोबारा आता
इसीलिए अन्न के दाने से
अगर भुने तो पछताओगे
स्वादिष्ट बनोगे एक बार
पर फिर न कभी उग पाओगे
निज ऊर्जा शक्ति खो दोगे
यदि गलत राह को चुनते हो
तुम कभी पनप पाओगे
यदि ज्यादा जलते भुनते हो
भुनना है भुनो रुपये से
जो को भुन देता सिक्के चिल्लर
लेकिन उसकी कृय शक्ति में
आता नहीं जरा भी अंतर
मदन मोहन बाहेती घोटू
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