एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 23 जून 2024

भुनना 


 मैंने देखा है दुनिया में ,

कि औरों की प्रगति देखकर 

मन में लगती आग ,जलन से ,

जलते भुनते लोग अधिकतर 


लेकिन ऐसे जलना भुनना,

कोई बात नहीं है अच्छी 

पर कुछ चीज़ें ऐसी होती 

जो भुनने पर लगती अच्छी 


भुनता जब मक्की का दाना 

तो वह पॉपकॉर्न बन जाता 

उसकी सख्ती मिट जाती है 

वह स्वादिष्ट नरम हो जाता 


भुन जाती है अगर मूंगफली 

वह चिनिया बादाम हो जाती 

खो देती तैलीय स्वाद है ,

वह खस्ता लजीज हो जाती 


पर जब  अन्न का दाना भुनता 

तो वह बीज नहीं रह जाता 

काम आता है एक बार ही

काम नहीं दोबारा आता 


इसीलिए अन्न के दाने से 

अगर भुने तो पछताओगे 

स्वादिष्ट बनोगे एक बार 

पर फिर न कभी उग पाओगे 


निज  ऊर्जा शक्ति खो दोगे 

यदि गलत राह को चुनते हो

तुम कभी पनप पाओगे 

यदि ज्यादा जलते भुनते हो


भुनना है भुनो रुपये से 

जो को भुन देता सिक्के चिल्लर 

लेकिन उसकी कृय शक्ति में 

आता नहीं जरा भी अंतर


मदन मोहन बाहेती घोटू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-