चोंचलो के दिन गए
अब हमारे चोंचलों के दिन गए
मांग को तेरी सजाने को सुहाने
आसमान से चांद तारे तोड़ लाने
के दीवाने हौसलों के दिन गए
अब हमारे चोंचलो के दिन गए
कभी तुम पर जान करने को निछावर
हमेशा ही हम रहा करते थे तत्पर
पंख लगा कर उड़ें,छूले आसमां को,
उड़ानों के उन पलों के दिन गए
अब हमारे चोंचलो के दिन गए
जवानी के दिनों की वो मधुर बातें
याद आती, मन को समझा नहीं पाते
उमर ने पर काट डाले हैं हमारे ,
जवानी के जलजलों के दिन गए
अब हमारे चोंचलो के दिन गए
अब तो यादों के सहारे जी रहे हैं
दुखी मन हैऔर आंसू पी रहे हैं
जैसे तैसे गुजरती हैं जिंदगानी
मस्ती वाले उन पलों के दिन गए
अब हमारे चोंचलो के दिन गए
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।