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Gerry Grothe
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किताब मिली - शुक्रिया - 20
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तू है सूरज तुझे मालूम कहां रात का दुख
तू किसी रोज़ मेरे घर में उतर शाम के बाद
लौट आए ना किसी रोज़ वो आवारा मिज़ाज
खोल रखते हैं इसी आस पे दर शाम के बाद
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1 दिन पहले
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