फुरसत का असर
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
किसी के हुस्न ,हुनर सादगी और उल्फत की
थोड़ी तारीफ़ कर दें ,इतनी शराफत नहीं थी
काम के बोझ से इतना अधिक लदे रहते ,
वक़्त मिलता न था ,निपटायें कैसे और क्या करें
लॉक डाउन के कारण , हुई है ये हालत ,
इतनी फुरसत है ,समझ आता नहीं है क्या करें
पहले हम काम से थक जाया करते थे इतना,
बड़ी मुश्किल से ही ,आराम थोड़ा कर पाते
अब तो आराम करते करते थक गए इतना
काम को आतुर ,पर बाहर निकल नहीं पाते
अपना सब प्यार लुटा देते अपनी बीबी पर
पहले थकते थे इतना ,बचती ही हिम्मत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
पहले थाली में जो भी पुरस देती थी बीबी ,
फटाफट खा लिया करते थे ,पेट भरते थे
कितना भी अच्छा और लज्जत भरा हो वो खाना ,
मुंह से तारीफ़ के दो लफ्ज़ ना निकलते थे
और अब बैठ के फुरसत में जो खाते खाना ,
स्वाद देते है एक एक ग्रास उनकी थाली के
इतना लज्जत भरा खाना कि खा के जी करता ,
चूम लूं हाथ मैं ,जाकर पकाने वाली के
मोहब्बत का मसाला होता उनके खाने में ,
प्यार के तड़के बिना ,आती ये लज्जत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
किसी के हुस्न ,हुनर सादगी और उल्फत की
थोड़ी तारीफ़ कर दें ,इतनी शराफत नहीं थी
काम के बोझ से इतना अधिक लदे रहते ,
वक़्त मिलता न था ,निपटायें कैसे और क्या करें
लॉक डाउन के कारण , हुई है ये हालत ,
इतनी फुरसत है ,समझ आता नहीं है क्या करें
पहले हम काम से थक जाया करते थे इतना,
बड़ी मुश्किल से ही ,आराम थोड़ा कर पाते
अब तो आराम करते करते थक गए इतना
काम को आतुर ,पर बाहर निकल नहीं पाते
अपना सब प्यार लुटा देते अपनी बीबी पर
पहले थकते थे इतना ,बचती ही हिम्मत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
पहले थाली में जो भी पुरस देती थी बीबी ,
फटाफट खा लिया करते थे ,पेट भरते थे
कितना भी अच्छा और लज्जत भरा हो वो खाना ,
मुंह से तारीफ़ के दो लफ्ज़ ना निकलते थे
और अब बैठ के फुरसत में जो खाते खाना ,
स्वाद देते है एक एक ग्रास उनकी थाली के
इतना लज्जत भरा खाना कि खा के जी करता ,
चूम लूं हाथ मैं ,जाकर पकाने वाली के
मोहब्बत का मसाला होता उनके खाने में ,
प्यार के तड़के बिना ,आती ये लज्जत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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