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बुधवार, 17 जून 2020

कोरोना की दहशत

सारी फुर्ती फुर्र हो गयी ,आलस ने डाला डेरा
कोरोना की कोपदृष्टी से ,बैठ गया भट्टा मेरा
सारा बेड़ा गर्क कर दिया ,ऐसा मारा मंदी ने
कामों पर कस दी लगाम ,इस लम्बी तालाबंदी ने
कोई सांप सा सूंघ गया हो ,ऐसी मन में दहशत है
हुये हौसले पस्त बची ना ,थोड़ी सी भी हिम्मत  है
लकवा जैसा मार गया  है ,जोश गया पानी लेने
मालगाड़ी की चाल चल रही ,थी जो एक्सप्रेस ट्रेने
हर कोई है ख़ौफ़ज़दा और सहमा सहमा सा मन में
कभी कल्पना भी ना थी वो हुआ हादसा जीवन में
बार बार भूकंप आ रहे ,सीमा पर हड़कंप मचा
किये गुनाह कौनसे हमने ,जिनकी मिलती हमें सजा
पिछले तीन माह में हमको,क्या क्या ना दिखलाया है
हे प्रभु क्या है तेरे मन में ,ये तेरी क्या  माया  है
तूफानों में नाव हमारी डगमग डगमग भटक रही
तू ही इसको पार लगा दे ,बता रास्ता सही सही
या फिर ले अवतार ,मिटा दे ,कोरोना की हस्ती को
पहले सा खुशहाल बना दे नगर ,गाँव हर बस्ती को
बन प्रकाश आलोकित पथ कर,अन्धकार ने है घेरा
फुर्र हुई फुर्ती फिर आये ,हो उपकार अगर तेरा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  


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