अथ : श्री कोरोना चालीसा
दोहा
ये करनी है चीन की ,दिया करोना नाम
सारी दुनिया त्रस्त है , हुआ बुरा अन्जाम
फैल रहा चहु ओर है ,परेशान संसार
यही प्रार्थना हम करें ना अब हो संहार
चौपाई
कोरोना तुम दुष्ट भयंकर
सबके मन बैठे बन कर डर
कहने को तो हो अति छोटे
पर अपनी करनी में खोटे
केवल आपस में छूने से
बढ़ जाते हो दिन दूने से
ऐसी चली तुम्हारी आंधी
सबके मुंह पर पट्टी बाँधी
चीन देश में जब से प्रकटे
तुम सबकी आँखों में खटके
फैल गए अब दुनिया भर में
गाँव गाँव और शहर शहर में
सबको बहुत त्रसित कर डाला
लगा दुकानों पर सब ताला
अब सारे बाज़ार बंद है
आना जाना ,प्रतिबंध है
भीड़भाड़ में फैल रहे तुम
खेल अनोखा खेल रहे तुम
कोई छींका ,कोई खाँसा
तुमने उसे जाल में फांसा
आता कोई अगर पास में
डर लगता है श्वास श्वास में
कितने हुए शिकार तुम्हारे
बूढ़े तुमको ज्यादा प्यारे
परेशान दुनिया का जन जन
बंद फैक्टरी में प्रोडक्शन
तुम्हरी दहशत रोज बढ़ रही
खेतों में फल,फसल सड़ रही
नर नारी सब परेशान है
तुम्हारा क्या कुछ निदान है
घर में घुसे रहो ,बस बैठो
या टीवी देखो या लेटो
नहीं मिलो तुम इनसे, उनसे
धोते रहो हाथ साबुन से
भूलो झप्पी ,हाथ मिलाना
नमस्कार से काम चलाना
सबके मन में बहुत त्रास है
इक्कीस दिन एकांतवास है
लोग दे रहे तुम्हे गालियां
नहीं आ रही कामवालियां
करते वो जो कभी न सोचा
साहब लगाते झाड़ू ,पोंछा
रहती थी जो हरदम बनठन
मेडम मांज रही है बरतन
जिसे किचन का काम न आये
बोलो क्या पकाये ,क्या खाये
कैसी मुश्किल आन पड़ी है
होटल भी सब बंद पड़ी है
लगते नहीं चाट के ठेले
कब तक पेट भरें ,खा केले
शहरों के मजदूर बिचारे
भटक रहे है मारे मारे
ना रोजी रोटी ना भोजन
गावों को कर रहे पलायन
लोग चल रहे मीलों पैदल
जैसे तैसे पहुँच रहे घर
घातक बहुत वाइरस हो तुम
करते जीवन तहस नहस तुम
लाये हो इस तरह मुसीबत
सबके मन बैठे बन दहशत
सब देशों की अर्थव्यवस्था
आज हो रही पत्ता पत्ता
वक़्त काट रहा जैसे तैसे
पटरी पर लौटेंगे कैसे
जग में फैले बन महामारी
तुम एटम बम से भी भारी
उभरे बन कर ऐसी आफत
पतली करदी सबकी हालत
कई हजारों को संहारा
कब कम होगा कोप तुम्हारा
हे लघु देव , प्रार्थना हर क्षण
दिए विराट रूप में दरशन
करो कृपा पुनः लघु रूप धर
आये सुख और शांति घर घर
तुम हो श्वास श्वास के स्वामी
कृपा करहु उर अन्तर्यामी
विनती करें हम हाथ जोड़ कर
हमको तुम अब जाओ छोड़ कर
हम सब पर उपकार करो तुम
अब न अधिक संहार करो तुम
दोहा
कह 'घोटू ' हम दूर से ,करते तुम्हे प्रणाम
तंग करो ना ,करोना ,दे दो जीवन दान
अथ: घोटू कवि रचित 'करोना चालीसा ' सम्पूर्ण
दोहा
ये करनी है चीन की ,दिया करोना नाम
सारी दुनिया त्रस्त है , हुआ बुरा अन्जाम
फैल रहा चहु ओर है ,परेशान संसार
यही प्रार्थना हम करें ना अब हो संहार
चौपाई
कोरोना तुम दुष्ट भयंकर
सबके मन बैठे बन कर डर
कहने को तो हो अति छोटे
पर अपनी करनी में खोटे
केवल आपस में छूने से
बढ़ जाते हो दिन दूने से
ऐसी चली तुम्हारी आंधी
सबके मुंह पर पट्टी बाँधी
चीन देश में जब से प्रकटे
तुम सबकी आँखों में खटके
फैल गए अब दुनिया भर में
गाँव गाँव और शहर शहर में
सबको बहुत त्रसित कर डाला
लगा दुकानों पर सब ताला
अब सारे बाज़ार बंद है
आना जाना ,प्रतिबंध है
भीड़भाड़ में फैल रहे तुम
खेल अनोखा खेल रहे तुम
कोई छींका ,कोई खाँसा
तुमने उसे जाल में फांसा
आता कोई अगर पास में
डर लगता है श्वास श्वास में
कितने हुए शिकार तुम्हारे
बूढ़े तुमको ज्यादा प्यारे
परेशान दुनिया का जन जन
बंद फैक्टरी में प्रोडक्शन
तुम्हरी दहशत रोज बढ़ रही
खेतों में फल,फसल सड़ रही
नर नारी सब परेशान है
तुम्हारा क्या कुछ निदान है
घर में घुसे रहो ,बस बैठो
या टीवी देखो या लेटो
नहीं मिलो तुम इनसे, उनसे
धोते रहो हाथ साबुन से
भूलो झप्पी ,हाथ मिलाना
नमस्कार से काम चलाना
सबके मन में बहुत त्रास है
इक्कीस दिन एकांतवास है
लोग दे रहे तुम्हे गालियां
नहीं आ रही कामवालियां
करते वो जो कभी न सोचा
साहब लगाते झाड़ू ,पोंछा
रहती थी जो हरदम बनठन
मेडम मांज रही है बरतन
जिसे किचन का काम न आये
बोलो क्या पकाये ,क्या खाये
कैसी मुश्किल आन पड़ी है
होटल भी सब बंद पड़ी है
लगते नहीं चाट के ठेले
कब तक पेट भरें ,खा केले
शहरों के मजदूर बिचारे
भटक रहे है मारे मारे
ना रोजी रोटी ना भोजन
गावों को कर रहे पलायन
लोग चल रहे मीलों पैदल
जैसे तैसे पहुँच रहे घर
घातक बहुत वाइरस हो तुम
करते जीवन तहस नहस तुम
लाये हो इस तरह मुसीबत
सबके मन बैठे बन दहशत
सब देशों की अर्थव्यवस्था
आज हो रही पत्ता पत्ता
वक़्त काट रहा जैसे तैसे
पटरी पर लौटेंगे कैसे
जग में फैले बन महामारी
तुम एटम बम से भी भारी
उभरे बन कर ऐसी आफत
पतली करदी सबकी हालत
कई हजारों को संहारा
कब कम होगा कोप तुम्हारा
हे लघु देव , प्रार्थना हर क्षण
दिए विराट रूप में दरशन
करो कृपा पुनः लघु रूप धर
आये सुख और शांति घर घर
तुम हो श्वास श्वास के स्वामी
कृपा करहु उर अन्तर्यामी
विनती करें हम हाथ जोड़ कर
हमको तुम अब जाओ छोड़ कर
हम सब पर उपकार करो तुम
अब न अधिक संहार करो तुम
दोहा
कह 'घोटू ' हम दूर से ,करते तुम्हे प्रणाम
तंग करो ना ,करोना ,दे दो जीवन दान
अथ: घोटू कवि रचित 'करोना चालीसा ' सम्पूर्ण
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।