हम कैसे समय बिताते है
चालिस दिन के लॉकडाउन में ,हम कैसे समय बिताते है
कुछ घूँट गमो के पीते है ,कुछ पत्नी की डाटें खाते है
इस कोरोना की दहशत से ,सबकी सिट्टी पिट्टी गुम है
हर मुंह पर पट्टी पड़ी हुई ,हर चेहरा थोड़ा गुमसुम है
यह चालीस दिन की घरबंदी ,लायी है इतना परिवर्तन
जो हाथ किया करते दस्तखत ,वो हाथ मांजते अब बर्तन
सड़कों पर सन्नाटा छाया ,बंद आना जाना ,दुकाने
तुम घर घुस बैठो ,काम करो ,दिन में सोवो ,खूँटी ताने
हम जोर जोर खर्राटे भर ,पत्नी को जरा सताते है
चालीस दिन के लॉकडाउन में ,हम कैसे समय बिताते है
हम आलू टिक्की भूल गए ,हम चाट समोसे भूल गए
वो गरम जलेबी ,रसगुल्ले ,इडली और डोसे भूल गए
ना 'डोमिनो 'ना 'मेकडोनाल्ड 'ना बिकानेर ,ना हल्दीराम
पत्नी के हाथों पका हुआ ,खाना कहते है सुबह शाम
सुनते भी है हम जली कटी ,और जलीकटी पड़ती खानी
और वो भी तारीफ कर वरना ,बंद हो जाता हुक्कापानी
हड़ताल न करदे बीबीजी ,इस डर से हम घबराते है
चालीस दिन के लॉक डाउन में, हम कैसे समय बिताते है
पहले पत्नीजी मेहरी से ,डेली ही किचकिच करती थी
पर काम छोड़ ना चली जाय ,थोड़ा सा मन में डरती थी
महरी वाला सब कामकाज ,मजबूरी में करते हम है
महरी सी किचकिच की आदत ,पत्नी में अब भी कायम है
वह रोज हमारे कामों में ,कुछ नुक़्स निकाला करती है
मालूम है घर ना छोड़ेंगे ,इसलिए न बिलकुल डरती है
अपने बिगड़े हालातों पर ,बस तरस हम खुद ही खाते है
चालीस दिन के 'लॉकडाउन 'में ,हम कैसे समय बिताते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चालिस दिन के लॉकडाउन में ,हम कैसे समय बिताते है
कुछ घूँट गमो के पीते है ,कुछ पत्नी की डाटें खाते है
इस कोरोना की दहशत से ,सबकी सिट्टी पिट्टी गुम है
हर मुंह पर पट्टी पड़ी हुई ,हर चेहरा थोड़ा गुमसुम है
यह चालीस दिन की घरबंदी ,लायी है इतना परिवर्तन
जो हाथ किया करते दस्तखत ,वो हाथ मांजते अब बर्तन
सड़कों पर सन्नाटा छाया ,बंद आना जाना ,दुकाने
तुम घर घुस बैठो ,काम करो ,दिन में सोवो ,खूँटी ताने
हम जोर जोर खर्राटे भर ,पत्नी को जरा सताते है
चालीस दिन के लॉकडाउन में ,हम कैसे समय बिताते है
हम आलू टिक्की भूल गए ,हम चाट समोसे भूल गए
वो गरम जलेबी ,रसगुल्ले ,इडली और डोसे भूल गए
ना 'डोमिनो 'ना 'मेकडोनाल्ड 'ना बिकानेर ,ना हल्दीराम
पत्नी के हाथों पका हुआ ,खाना कहते है सुबह शाम
सुनते भी है हम जली कटी ,और जलीकटी पड़ती खानी
और वो भी तारीफ कर वरना ,बंद हो जाता हुक्कापानी
हड़ताल न करदे बीबीजी ,इस डर से हम घबराते है
चालीस दिन के लॉक डाउन में, हम कैसे समय बिताते है
पहले पत्नीजी मेहरी से ,डेली ही किचकिच करती थी
पर काम छोड़ ना चली जाय ,थोड़ा सा मन में डरती थी
महरी वाला सब कामकाज ,मजबूरी में करते हम है
महरी सी किचकिच की आदत ,पत्नी में अब भी कायम है
वह रोज हमारे कामों में ,कुछ नुक़्स निकाला करती है
मालूम है घर ना छोड़ेंगे ,इसलिए न बिलकुल डरती है
अपने बिगड़े हालातों पर ,बस तरस हम खुद ही खाते है
चालीस दिन के 'लॉकडाउन 'में ,हम कैसे समय बिताते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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