सरकार जैसे देश का
दिमाग यानी कंट्रोलरूम,
तो अफसरशाही और
बाबूगीरी जैसे है हांथ-पांव...
सरकारी आदेश के बाद
होता है इन्हीं के हाथ में,
किसे देनी है धूप
तो किसे देनी है छाँव...
देश की तरक्की हो
या देश का कबाड़ा,
दोनों ही स्थितियाँ
इन्हीं की गुलाम हैं...
इनसे चलता सिस्टम
इनसे पलती जनता,
इनकी वजह से ही तो
ये सारा ताम-झाम है...
कोई भी हो स्थिति या
कोई भी हो परिस्थिति,
ये अपने खास हुनर से
सबकुछ सँभाल लेते हैं...
कब किसपर है गुर्राना
किसके सामने हिलानी है दुम,
जब-जहाँ हो जैसी जरूरत
ये हमेशा वैसी चाल लेते हैं...
जिससे भी हो फायदा
उससे रिश्ता निभाते हैं,
जो भी ना हो काम का
उसे हमेशा दौड़ाते हैं...
जो इनसे ले ले पंगा
या इनकी करे खिलाफत,
उसे मुस्कुराते हुए ये
चुपचाप निपटाते हैं...
जबतक भी रहें कुर्सी पर
लेन-देन चलता रहता है,
सबको - सबका हिस्सा
चुपचाप पहुँचता रहता है...
सत्ता हो या विपक्ष सबसे
तालमेल बिठाये रखते हैं,
सरकार हो चाहे जिसकी ये
सबसे हाथ मिलाये रखते हैं...
तमाम नियमों - कानूनों
और दाँवपेचों के सहारे,
सबकी कमियाँ ढूँढ़्कर
अदृश्य जाल बिछाये रखते हैं...
मीडिया हो या अदालत
सबको घुमाना जानते हैं,
फायदे के लिये झूठे-सच्चे
सबूत बनाना-मिटाना जानते हैं...
कब - कहाँ वादे करने हैं
कब - कहाँ मुकरना है,
जरूरत हो तो अपनी मां
तक की कसम खाना जानते हैं...
छॉटे-बड़े घोटाले हों या हो
अराजकता और भ्रष्टाचार,
ये सब में व्याप्त रहते पर
सरकारें बदनाम होती हैं...
देश में सूखा हो या बाढ़
या आये कोई भी आपदा,
इनके लिये हमेशा हरियाली
और रोज रंगीन शाम होती है...
आजादी के बाद देश अबतक
जहाँ तक भी पहुँचा या
नहीं पहुँच पाया है, सब
इनकी ही मेहरबानी है...
बड़ा मुश्किल है इनके रहते
पूरा सिस्टम ही बदल जाये,
सरकारों का क्या है वे तो
ऐसे ही आनी जानी हैं...
'चर्चित' का मतलब ये नहीं
कि सब अफसर ही ऐसे होते हैं,
कई तो देश पर मर-मिटने
गर्व करने लायक होते हैं...
पर क्या करें उन नालायकों
उन हरामखोरों का कि जो
देश के आस्तीन में छिपे
साँप कहने लायक होते हैं...
- विशाल चर्चित
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