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शुक्रवार, 15 मई 2015

तक़ल्लुफ़

             तक़ल्लुफ़

कहा उनने इशारों में, तक़ल्लुफ़ सीखिये थोड़ा,
    सजी टेबल दिखी क्या बस,जुट गए झट से खाने में
कहा हमने कि ये तहजीब ,लखनऊ को मुबारक हो,
    इसी चक्कर में फंसवा  कर  ,हमें लूटा   जमाने ने
दोस्त हम दो थे ,एक लड़की ,फ़िदा दोनों ही उस पर थे ,
     रह गए हम तक़ल्लुफ़ में, छुपाये प्यार ,बस दिल में
पटाया दोस्त ने उसको ,रह गए टापते ही हम,
      उसे कहते है जब भाभी , जान पड़ती  है  मुश्किल में
नबाबों के तकल्लुफ के,जमाने लद गये है अब ,
      निपट लो भैया जल्दी से ,चलन है ये जमाने का
गरम खाना हो डोंगों में ,सिक रही रोटियां सौंधी ,
    करे इन्तजार क्यों कोई, मज़ा है ताज़ा खाने  का
प्रतीक्षा एक परीक्षा है, नहीं अब झेल सकते हम,
     बिछे पकवान आगे हो,नहीं खाओ, जी ललचाये
तकल्लुफ के ही चक्कर में ,रहे है कितने ही भूखे ,
    गए थे खाने दावत पर ,परांठे आ के   घर   खाये
तभी से ये कसम खा ली,खुले खाना तो झट खालो,
    बचोगे भीड़ से भी तुम ,और खाना भी गरम  होगा
इसलिए मौका मत चूको,समझदारी इसी में है,
      मज़ा  खाने का वो  लेगा , जो थोड़ा  बेशरम   होगा
 
  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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