शादी का बंधन
दिया भगवान ने मुझको ,अगर धरती पे जीवन है
है इस पर पूर्ण हक़ मेरा ,मिला जो प्यारा सा तन है
करूं उपयोग मैं इसका, जैसे भी मन में आता है
तो क्यों प्रतिबन्ध ढेरों से,ज़माना ये लगाता है
कभी ना तो कभी ये प्रश्न ,सभी के मन में उठता है
नहीं स्वातंत्र्य है कुछ भी ,भला क्यों ये विवशता है
मिला उत्तर ये भगवन ने,दिया है मन भी तन के संग
बड़ा भावुक वो होता है, जो रंग जाता किसी के रंग
तो उसके साथ जीवन भर का फिर बंध जाता बंधन है
तो फिर क्या तन और क्या मन,सभी उसको समर्पण है
अगर बंधन ये ना होता ,न बच्चे ,,घर नहीं रहता
तो इन्सां और पशुओं में ,नहीं अंतर कोई रहता
रोकने को जो उच्श्रंखलता,व्यवस्था है गयी बाँधी
यही बंधन है सामाजिक ,जिसे हम कहते है शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दिया भगवान ने मुझको ,अगर धरती पे जीवन है
है इस पर पूर्ण हक़ मेरा ,मिला जो प्यारा सा तन है
करूं उपयोग मैं इसका, जैसे भी मन में आता है
तो क्यों प्रतिबन्ध ढेरों से,ज़माना ये लगाता है
कभी ना तो कभी ये प्रश्न ,सभी के मन में उठता है
नहीं स्वातंत्र्य है कुछ भी ,भला क्यों ये विवशता है
मिला उत्तर ये भगवन ने,दिया है मन भी तन के संग
बड़ा भावुक वो होता है, जो रंग जाता किसी के रंग
तो उसके साथ जीवन भर का फिर बंध जाता बंधन है
तो फिर क्या तन और क्या मन,सभी उसको समर्पण है
अगर बंधन ये ना होता ,न बच्चे ,,घर नहीं रहता
तो इन्सां और पशुओं में ,नहीं अंतर कोई रहता
रोकने को जो उच्श्रंखलता,व्यवस्था है गयी बाँधी
यही बंधन है सामाजिक ,जिसे हम कहते है शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सुन्दर सटीक और सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंकभी इधर भी पधारें