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शुक्रवार, 8 मई 2015

मेरी माँ

          मेरी  माँ

सल भरा मुंह पोपला  सा,धवलकेशा ,सुन्दरी है
 भले धुंधली हुई आँखे ,मगर ममता से भरी   है
स्वाभमानी ,है पुरानी,आन वो ही,शान वो ही,
आज पीड़ित हुई,जिसने ,पीर सबकी ही हरी है
उम्र परिलक्षित बदन पर,और काया  हुई जर्जर,
बुरा चाहे कोई माने, बात वो करती    खरी है
प्रार्थना है यही ईश्वर ,उसका साया रहे सर पर ,
उसकी झोली,प्यार ,आशीर्वाद  से हरदम भरी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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