विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद
भूले भटके याद कर लिया करो हमें ,
बेटे! इतना बेगानापन ठीक नहीं
पता नहीं हम कभी अचानक ही यूं ही,
चले जाएँ कब, छोड़ ये चमन, ठीक नहीं
तुम बैठे हो दूर विदेशी धरती पर ,
तुम्हे ले गयी है माया ,भरमाने की
मातृभूमि की धरती ,माटी,गलियारे,
जोह रहे है बाट तुम्हारे आने की
ऐसे उलझे तुम विदेश के चक्कर में,
अपने माँ और बाप,सभी को भूल गये
तुमको लेकर क्या क्या आशा थी मन में,
इतने सपने देखे, सभी फिजूल गये
यहीं बसा परिवार,सभी रिश्ते नाते,
ये तुम्हारा देश,तुम्हारी धरती है
आस लगाए बैठे है कब आओगे ,
प्यासी आँखे ,राह निहारा करती है
जहाँ पले तुम ,खेले कूदे ,बड़े हुए,
याद तुम्हे वो घर और आँगन करता है
तुम शायद ही समझ सकोगे कि कितना,
याद तुम्हे व्याकुल होकर मन करता है
सोच रहे होगे 'इमोशनल फूल' हमें ,
हाँ ,ये सच है ,हम में बहुत 'इमोशन' है
नहीं 'प्रेक्टिकल'हैं हम इतने अभी हुये ,
प्यार मोहब्बत अभी यहाँ का 'फैशन'है
हमको तुम हर महीने भेज चन्द 'डॉलर',
सोचा करते ,अपना फर्ज निभाते हो
भूले भटके ,बरस दो बरस में ही तुम ,
शकल दिखाने ,कभी कभी आ जाते हो
यही देखने कि हम अब तक ज़िंदा है,
कितनी 'प्रॉपर्टी' है,कीमत क्या होगी
हरेक चीज, पैसों से तोला करते हो ,
तुम्हे प्यार करने की फुर्सत कब होगी
हम माँ बाप ,तुम्हारी चिंता करते है ,
देते तुमको सदा दुआ ,सच्चे मन से
जबकि तुमने सबसे ज्यादा दुखी किया ,
बन निर्मोही,अपने बेगानेपन से
फिर भी इन्तजार में तुम्हारे,आँखें,
लौट आओगे ,आस लगाए ,बैठी है
शायद तुमको भी सदबुद्धी आजाये ,
मन में यह विश्वास जगाये बैठी है
ऐसा ना हो ,इतजार करते आँखें,
रहे खुली की खुली ,लगे पथराने सी
मरने पर भी लेट बरफ की सिल्ली पर ,
करे प्रतीक्षा ,तुम्हारे आ जाने की
बहुत जलाया हमको तुमने जीवन भर,
अंतिम पल भी तुम्ही जलाने आओगे
बहुत बहाये आंसू हमने जीवन भर ,
तुम गंगा में अस्थि बहाने आओगे
सदा प्यार से अपने भूखा रखा हमें ,
आकर कुछ पंडित को भोज कराओगे
और बेच कर सभी विरासत पुरखों की,
शायद अपना अंतिम फर्ज ,निभाओगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
भूले भटके याद कर लिया करो हमें ,
बेटे! इतना बेगानापन ठीक नहीं
पता नहीं हम कभी अचानक ही यूं ही,
चले जाएँ कब, छोड़ ये चमन, ठीक नहीं
तुम बैठे हो दूर विदेशी धरती पर ,
तुम्हे ले गयी है माया ,भरमाने की
मातृभूमि की धरती ,माटी,गलियारे,
जोह रहे है बाट तुम्हारे आने की
ऐसे उलझे तुम विदेश के चक्कर में,
अपने माँ और बाप,सभी को भूल गये
तुमको लेकर क्या क्या आशा थी मन में,
इतने सपने देखे, सभी फिजूल गये
यहीं बसा परिवार,सभी रिश्ते नाते,
ये तुम्हारा देश,तुम्हारी धरती है
आस लगाए बैठे है कब आओगे ,
प्यासी आँखे ,राह निहारा करती है
जहाँ पले तुम ,खेले कूदे ,बड़े हुए,
याद तुम्हे वो घर और आँगन करता है
तुम शायद ही समझ सकोगे कि कितना,
याद तुम्हे व्याकुल होकर मन करता है
सोच रहे होगे 'इमोशनल फूल' हमें ,
हाँ ,ये सच है ,हम में बहुत 'इमोशन' है
नहीं 'प्रेक्टिकल'हैं हम इतने अभी हुये ,
प्यार मोहब्बत अभी यहाँ का 'फैशन'है
हमको तुम हर महीने भेज चन्द 'डॉलर',
सोचा करते ,अपना फर्ज निभाते हो
भूले भटके ,बरस दो बरस में ही तुम ,
शकल दिखाने ,कभी कभी आ जाते हो
यही देखने कि हम अब तक ज़िंदा है,
कितनी 'प्रॉपर्टी' है,कीमत क्या होगी
हरेक चीज, पैसों से तोला करते हो ,
तुम्हे प्यार करने की फुर्सत कब होगी
हम माँ बाप ,तुम्हारी चिंता करते है ,
देते तुमको सदा दुआ ,सच्चे मन से
जबकि तुमने सबसे ज्यादा दुखी किया ,
बन निर्मोही,अपने बेगानेपन से
फिर भी इन्तजार में तुम्हारे,आँखें,
लौट आओगे ,आस लगाए ,बैठी है
शायद तुमको भी सदबुद्धी आजाये ,
मन में यह विश्वास जगाये बैठी है
ऐसा ना हो ,इतजार करते आँखें,
रहे खुली की खुली ,लगे पथराने सी
मरने पर भी लेट बरफ की सिल्ली पर ,
करे प्रतीक्षा ,तुम्हारे आ जाने की
बहुत जलाया हमको तुमने जीवन भर,
अंतिम पल भी तुम्ही जलाने आओगे
बहुत बहाये आंसू हमने जीवन भर ,
तुम गंगा में अस्थि बहाने आओगे
सदा प्यार से अपने भूखा रखा हमें ,
आकर कुछ पंडित को भोज कराओगे
और बेच कर सभी विरासत पुरखों की,
शायद अपना अंतिम फर्ज ,निभाओगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
उत्कृस्ट रचना
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