मै क्या करूं
पत्नी की सुनता तो 'जोरू का गुलाम'हूँ,
माँ की सुनता,तुम कहती 'मम्मी के चमचे'
बच्चों को डाटूँ तो कहलाता हूँ 'जालिम',
करूं प्यार तो कहती मै 'बिगाड़ता बच्चे'
घर पर रहता तो कहते मै 'घर घुस्सू'हूँ,
बाहर रहूँ घूमता 'आवारा ' कहलाता
कम खाता तो कहती मै 'कमजोर हो रहा',
'मोटे होकर फूल रहे' यदि ज्यादा खाता
खर्चा करता तो कहती हो 'खर्चीला 'हूँ,
ना करता तो कहती हो 'कंजूस'बहुत मै
मेरी समझ नहीं आता ,क्या करूं ना करूं ,
कोई बताये क्या करना कन्फ्यूज बहुत मै
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
1450-दो कविताएँ
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*अनुपमा त्रिपाठी** '**सुकृति**'*
*1*
*भोर का बस इतना*
*पता ठिकाना है*
*कि भोर होते ही*
*चिड़ियों को दाना चुगने*
*पंखों में भर आसमान*
*अपनी अपनी उड़ान*
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2 घंटे पहले
वाकई बहुत ज्यादा कन्फ्यूजन है
जवाब देंहटाएंआभार