वेलेनटाइन सप्ताह
(चतुर्थ प्रस्तुति)
वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में
मनायें वेलेन्टाइन,प्यार का ये तो दिवस है
उम्र के इस दौर के भी,चोंचलों में,बड़ा रस है
बढ़ रही है उमर अपनी ,
आप ये क्यों भूलती है
दर्द घुटनों में तुम्हारे ,
सांस मेरी फूलती है
मै तुम्हे गुलाब क्या दूं,
दाम मंहगे इस कदर है
तुम भी टेडी ,मै भी टेडा ,
हम खुदी टेडी बियर है
चाकलेटें ,ला न सकता ,
क्योंकि ये मुश्किल खड़ी है
तुम्हे भी है डायबीटीज ,
मेरी भी शक्कर बड़ी है
और पिक्चर भी चलें तो,
देख पायेंगें न पिक्चर
ध्यान होगा,युवा लड़के ,
लड़कियों की,हरकतों पर
पार्क में जाकर के घूमें,
उम्र ये ना अब हमारी
माल में जाकर न करनी,
व्यर्थ की खरीद दारी
प्यार का ये पर्व फिर हम,
आज कुछ ऐसे मनाये
तुम पकोड़ी तलो,हम तुम,
प्रेम से मिल,बैठ ,खायें
मै इकहत्तर ,तुम हो पेंसठ ,प्यार अपना जस का तस है
मनायें वेलेन्टाइन ,प्यार का ये तो दिवस है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
792. सफ़र जारी है
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सफ़र जारी है
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बहुत कुछ छूट गया
बहुत कुछ छोड़ दिया
ज़िन्दगी न ठहरी, न थमी
चलती रही, फिरती रही
न कोई राह दिखाने वाला
न कोई साथ निभाने वाला
राह बनाती ...
10 घंटे पहले
vah vah kya baat hai ! ek hi kavita me kai bhaav aur kai vyang . bahut sunder.
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