रोबोट बन कर रह गये
चाहते थे मंगायें जापान से रोबोट हम,
शादी करली और खुद रोबोट बन कर रह गये
हम तो थे बाईस केरट, जब से पर हीरा जड़ा,
चौदह केरट हुए ,बाकी खोट बन कर रह गये
कभी किशमिश की तरह थे,मधुर ,मीठे, मुलायम,
एसा बदला वक़्त ने, अखरोट बन कर रह गये
बुदबुदा सकते हैं लेकिन बोल कुछ सकते नहीं,
किटकिटाते दांतों के संग, होंठ बन कर रह गये
गाँधी जी का चित्र है पर आचरण विपरीत है,
रिश्वतों में देने वाले ,नोट बन कर रह गये
आठ दस भ्रष्टों में से ही नेता चुनना है तुम्हे,
लोकतंत्री व्यवस्था के, वोट बन कर रह गये
कभी टेढ़े,कभी सीधे,कभी चलते ढाई घर,
बिछी शतरंजी बिसातें, गोट बन कर रह गये
चाहते थे बनना हम क्या, और 'घोटू' क्या बने,
टीस देती हमेशा वो चोंट बन कर रह गये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अस्तित्त्व और हम
-
अस्तित्त्व और हम जब सौंप दिया है स्वयं को अस्तित्त्व के हाथों में तब भय
कैसा ?जब चल पड़े हैं कदम उस पथ परउस तक जाता है जो तो संशय कैसा ?जब बो दिया
है बीज ...
4 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।