तेरी रहमत चाहिये
कोई नक़्शे को इमारत में बदलने के लिये,
थोड़ी ईंटें,थोडा गारा, थोड़ी मेहनत चाहिये
चाँद को पाने की मन में हो कशिश तो मिलेगा,
हो बुलंदी हौंसले में, सच्ची चाहत चाहिये
खूब सपने देखिये,अच्छा है सपने देखना,
सपने पूरे करने को ,करनी कवायत चाहिये
जिंदगी के इस सफ़र में,आयेंगे रोड़े कई,
मन में मंजिल पाने का जज्बा और हिम्मत चाहिये
हँसते हँसते ,जिंदगी ,कट जाएगी आराम से,
एक सच्चे हमसफ़र का संग,सोहबत चाहिये
जन्म देकर ,पाला पोसा और लायक बनाया,
साया हो माँ बाप का सर पर,न जन्नत चाहिये
खुदा ने बोला कि बन्दे,मांग ले जो मांगना,
मैंने बोला मिल गया तू, तेरी रहमत चाहिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अस्तित्त्व और हम
-
अस्तित्त्व और हम जब सौंप दिया है स्वयं को अस्तित्त्व के हाथों में तब भय
कैसा ?जब चल पड़े हैं कदम उस पथ परउस तक जाता है जो तो संशय कैसा ?जब बो दिया
है बीज ...
3 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।