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रविवार, 15 जुलाई 2012

सत्ता का खेल

         सत्ता का खेल

मेरे मोहल्ले में,

कुछ कुत्तों ने,
 अपना कब्ज़ा जमा रखा है
जब भी किसी दूसरे मोहल्ले से,
कोई कुत्ता हमारे मोहल्ले में ,
घुसने की जुर्रत करता है,
ये कुत्ते ,भोंक भोंक कर,
उसके पीछे पड़,उसे खदेड़ देते है
पर जब ,हमारे ही मोहल्ले की,
तीसरी या चौथी मंजिल की गेलरी से,
कोई पालतू कुत्ता भोंकता है,
ये कुत्ते ,सामूहिक रूप से,
गर्दन उठा,उसकी तरफ देख,
कुछ देर तक तो भोंकते रहते है,
पर अंत में,बेबस से बोखलाए हुए,
उस घर के  नीचे की दीवार पर,
एक टांग उठा कर,
मूत कर चले जाते है
अपनी एक छत्र सत्ता को ऐसे ही चलाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



2 टिप्‍पणियां:

  1. कुत्ते को लेकर कही गयी गंभीर बात
    सुंदर व्यंग्य ...
    बधाई !!

    जवाब देंहटाएं
  2. जैसा माहौल होता है
    कुत्ते भी वैसे ही हो जाते है
    कटखन्ने होते है जिस
    घर के लोग
    वहाँ के कुत्ते भी काट
    खाते हैं।

    कुत्तों का दोष नहीं है ।

    जवाब देंहटाएं

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