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गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

हवा की गड़बड़

बाकी सबकुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है
लेकिन सारी परेशानियों की  बस  ये जड़ है

सड़कों पर कितने ही वाहन दौड़ रहे है
और सबके सब ,कितना धुँवा छोड़ रहे है
उद्योगों से चिमनी भी है धुवाँ उगलती
गावों के खेतों में उधर पराली  जलती
दिवाली पर ,बम पटाखे ,करे प्रदूषण
साँसों को मिल नहीं पा रही है ऑक्सीजन
इतना ज्यादा वातावरण ,हो गया मैला
और फेफड़ों का दुश्मन कोरोना फैला
जीना मुश्किल हुआ ,मची इतनी भगदड़ है
बाकि सब कुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है  

उधर पश्चिमी हवा ,देश को रुला रही है
नव पीढ़ी भारतीय संस्कृति भुला रही है
संस्कार ,रिश्ते नाते और खाना पीना
रहन सहन सब बदल रहा है जीवन जीना
कुछ नेताओं ने माहौल बिगाड़ दिया है
हमको आपस में लड़वा दो फाड़ किया है
जाति धर्म ,अगड़ा पिछड़ा में कर बंटवारा
अपनी रोटी सेक, हवा को बहुत बिगाड़ा
पहन शेर की खाल ,राज्य करते गीदड़ है
बाकी सब कुछ ठीक,हवा में कुछ गड़बड़ है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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