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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

देशप्रेम

उठना है मुझे ,चलना है मुझे
तपना है मुझे ,जलना है मुझे
जननी और जन्मभूमि पर    ,
खुद को अर्पण करना है मुझे

मैं जो पर्वत माथे पर ,हिम के किरीट का चमक रहा
पर मेरे देश का हर  वासी ,है बूँद बूँद को तरसः रहा
अब समय आ गया ,गर्व त्याग ,
पानी बन कर गलना है मुझे
उठना है मुझे ,चलना है मुझे
 
राजनीती के दल दल से , बाहर आ,सबसे मिलजुल कर
दुश्मन का दमन हमें करना ,लोहा लेना ,उससे खुल कर
भारत की आनबान खातिर ,
दुश्मन दल को दलना है मुझे
उठना है मुझे ,चलना है मुझे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

2 टिप्‍पणियां:

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