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शनिवार, 19 अक्टूबर 2019

सजना संवरना

नहीं पड़ती कोई जरुरत ,है बचपन में संवरने की ,
जवानी में यूं ही चेहरे पे  छाया नूर होता  है
दिनोदिन रूप अपने आप ही जाता निखरता है ,
लबालब हुस्न से चेहरा भरा भरपूर  होता है
मगर फिर  भी हसीनायें ,संवरती और सजती है,
आइना देख कर के अक्स भी मगरूर होता है
पार चालीस के घटती लुनाई जब है चेहरे की ,
नशा सारा जवानी का ,यूं ही काफूर होता है
सफेदी बालों में और चेहरे पे जब सल नज़र आते ,
बुढ़ापा इस तरह आना   नहीं  मंजूर होता है
तभी पड़ती है जरूरत ख़ास ,नित सजने सँवरने की ,
नहीं तो हुस्न का जलवा ये चकनाचूर होता है

घोटू 

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