एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2019

परिवर्तन

चहचहाती थी कभी जो  एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है  चिड़चिड़ी सी
वो  बड़े दिल  की    बड़ी बातें सुहानी ,
हो गयी उनमे कहीं कुछ गड़बड़ी सी

करती थी जो प्यार का हरदम प्रदर्शन
हुए दुर्लभ आजकल उनके है  दर्शन
बरसती थी प्यार की जो सदा बदली
आजकल आती नज़र है बदली बदली
फूल खिलते ,हंसती जब थी फूलझड़ी सी
लगाती शिकायतों की अब झड़ी सी
चहचहाती थी कभी जो  एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है  चिड़चिड़ी सी

ख़ुशी से थी खिलखिलाती जो हसीना
हुई मुद्दत ,कभी खुलकर वो हंसी  ना
किया करती ,हमें घायल ,नज़र जिसकी
लग गयी उस पर न जाने नज़र किसकी
बदन जिसका श्वेत ,थी संगमरमरी सी
उसकी आभा लगती है अब कुछ मरी सी
चहचहाती थी कभी  जो एक चिड़ी सी
आजकल रहने लगी है चिड़चिड़ी  सी

जो हमारे हृदय पर थी राज करती
आजकल है हमसे वो नाराज लगती
कभी कोमल कली सा था जो मृदुल तन
समय के संग , आ गया है  परिवर्तन
हम पे ताने मारती है वो तनी  सी ,
उखड़ी  उखड़ी दूर रहती है खड़ी सी
चहचहाती थी कभी जो एक चिड़ी सी
हो गयी है आजकल वो चिड़चिड़ी सी


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-