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शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

मन यायावर

कितना ही समझालो फिर भी ,
रहे भटकता इधर उधर
मन यायावर
झर झर करते झरनो के संग हँसता गाता
या यादों के सागर में हिचकोले  खाता
कभी मचलता सरिता सा कल कल बहता है
आशाओं के पंख लगा उड़ता रहता है
कभी गुजरता कुंजगली में बृंदावन की
कभी भीजता ,रिमझिम बारिश में सावन की
या तितली सा उपवन में करता अठखेली
भ्र्मरों सा गुंजन करता ,लख कली नवेली  
 आसमान में उड़ता रहता है पतंग सा
या फिर छाया रहता है मन में उमंग सा
कभी जाल में चिंताओं के उलझा रहता
या उन्मुक्त पवन के झोंकों जैसा बहता
नहीं रात को चैन ,भटकता है सपनो में
कभी ढूंढता रहता अपनापन ,अपनों में
है द्रुतगामी तेज ,गति विद्युत् से ज्यादा
पल में जाने कहाँ कहाँ की सैर कराता
जहाँ न पहुंचे रवि ,कवि  सा पहुंचा करता
पुष्पों की मादक सुरभि सा महका करता
कभी चाँद को छू लेने को मचला करता
कभी दीप सा जल ,जग में उजियारा करता
कभी भटकता रहता बादल सा आवारा
गाँव गाँव और गली गली में बन बंजारा
पथरीली डगरों पर नंगे पाँव विचरता
तप्त धूप में  तरु की छाया ढूँढा करता
काम काम विश्राम नहीं लेता है पल भर
मन यायावर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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