आओ,कुछ इंसानियत दिखाए
खुदा ने जब कायनात को बनाया
तो उसे कुदरत के रंगो से सजाया
नदियाएँ बहने लगी
सबको मीठा जल देने लगी
फिर वृक्ष बनाये
उनमे मीठे मीठे फल आये
हवाएं बहने लगी
सबको ठंडक देने लगी
पहाड़ो पर हरियाली छाई
ग्रीष्म,शीत ,बारिश और बसंत ऋतू आई
सूरज ने प्रकाश और ऊष्मा फैलाई
चाँद ने रात में शीतलता बरसाई
फूल महकने लगे
पंछी चहकने लगे
सबने ,जितना जो दे सकता था ,
खुले हाथों दिया
और बदले में कुछ नहीं लिया
और फिर जब भगवान ने इंसान को बनाया
तो उसने प्रकृति की इन सारी नियामतों का ,
भरपूर फायदा उठाया
और बदले में क्या दिया
पेड़ों को कटवा दिया
पहाड़ों का किया दोहन
बिगाड़ दिया पर्यावरण
स्वार्थ में होकर अँधा
नदियों का पानी किया गंदा
एक दुसरे से लड़ने लगा
जमीन के लिए झगड़ने लगा
धरम के नाम पर आपस में फूट डाल ली
कितनी ही बुराइयां पाल ली
अब तो इस बैरभाव की इंतहा होने लगी है
धरती भी परेशां होने लगी है
अब समय आगया है कि हम कुछ सोचे,विचारे
अपने आप को सँवारे
अपने फायदे के लिए ,
दूसरों को ना करे बर्बाद
इसलिए आप सब से है फ़रियाद
हम इंसान है,थोड़ी इंसानियत फैलाएं
भाईचारे से रहे ,एक दुसरे के काम आये
तो आओ ,ऐसा कुछ करें ,
जिससे हमारी छवि सुधरे
चलो हम किसी रोते को हंसाये
किसी भूखे को पेट भर खिलाये
किसी बिछुड़े को मिलाते है
किसी गिरते को उठाते है
किसी प्यासे की प्यास मिटाये
किसी दुखी का दर्द हटाए
किसी असहाय को सहारा दे
किसी डूबते को किनारा दे
किसी बुजुर्ग के दुःख काटे
किसी बीमार को दवा बांटे
किसी को अन्धकार से उजाले में लाये
किसी भटके को सही राह दिखलाये
किसी अबला की इज्जत ,लूटने न दे
किसी बच्चे का ख्वाब टूटने न दे
किसी अनपढ़ को चार लफ्ज सिखला दे
किसी अंधे को रास्ता पार करा दे
किसी के रास्ते से बुहार दे कांटे
जितना भी हो सके,सबमे प्यार बांटे
करे कोशिश कि कोई लाचार न हो
कम से कम कुछ ऐसा करे,
जिससे इंसानियत शर्मशार न हो
हमें आजादी मिले बीत गए है सत्तर साल
फिरभी बिगड़ा हुआ है हमारा हाल
आपसी मतभेद बढ़ता जा रहा है
देश का माहौल बिगड़ता जा रहा है
अरे सत्तर साल की उमर में तो,
झगड़ालू मियां बीबी भी शांति से रहते है
टकराव छोड़ कर प्रेम की धरा में बहते है
इसलिए हम मिलजुल कर रहे साथ साथ
अब गोली से नहीं,गले लगाने से बनेगी बात
तो आओ ,मिलजुल कर भाईचारे से रहें,
आपस में न लड़े
ऐसा कुछ न करे जिसका खामियाजा ,
हमारी आनेवाली पीढ़ी को भुगतना पड़े
हर तरफ चैन और अमन रहे छाया
जिससे ऊपरवाले को भी अफ़सोस न हो ,
कि उसने इंसान को क्यों बनाया?
इसलिए हम साथ साथ आये
और थोड़ी इंसानियत फैलाये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुन्दर पंक्तियाँ आभार "एकलव्य"
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