आँखे जाती पनिया है
दिखाती रंग अजब ,कैसे कैसे दुनिया है
मुफ्त बदनाम हुआ करती यूं ही मुनिया है
छुआ न जिंदगी में जिसने निरामिष भोजन ,
ऐसे बन्दे को भी हो जाता चिकनगुनिया है
मन्नते पूरी करता ,देख कर चढ़ावा है ,
आजकल हो रहा,भगवान तू भी बनिया है
सरे बाज़ार ,उठा कर के लूट ली जाती ,
बड़ा दुःख देने लगी ,आजकल नथुनिया है
जहाँ पर महकते ,गुलाब,जूही ,चंपा थे,
वहां पर आजकल उग आयी नागफनियाँ है
आसमाँ पर चढ़े है भाव अब टमाटर के ,
कभी मुश्किल से मिलता प्याज,लहसुन,धनिया है
दे दिए जख्म इतने 'घोटू'इस जमाने ने ,
जरा सी बात पर अब आँखें जाती पनिया है
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
अरे वाह.....हकीकत से रूबरू करा दिया।
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