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सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

गुल और गुलगुले

          गुल और गुलगुले

मित्र हमारे पहुंचे पंडित ,हमने पूछा ,
          है परहेज गुलगुलों से,गुड खाते रहते
मुंह में राम,बगल में छूरी क्यों रखते हो,
          छप्पन छुरियों के संग रास रचाते रहते
बन कर बगुला भगत ढूंढते तुम शिकार हो,
          कथनी और करनी में हो अंतर दिखलाते
सारे नियम आचरण लागू है भक्तों पर ,
         प्याज नहीं खाते पर रिश्वत  जम  कर खाते
उत्तर दिया मित्र ने हमको,कुटिल हंसी हंस ,
           है  परहेज  गुलगुलों से, पर  नहीं  गुलों  से
प्रभू की सुंदर कृतियों का यदि सुख हम भोगें ,
           जीवन का रस पियें ,कोई क्यों हमको कोसे
प्याज अगर खाएं तो मुख से आये बदबू ,
           प्याज खाई है,ये जग जाहिर हो जाता  है
रिश्वत की ना कोई खुशबू या बदबू है,
           पता किसी को इसीलिये ना  चल पाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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