तुमने ऐसी आग लगा दी
मै पग पग रख ,धीरे चलती
तुम चलते हो जल्दी ,जल्दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी
मंद आंच सी, मै हूँ जलती
और तुम तो हो लपट दहकती
तुमने अपनी चिंगारी से ,तन मन में है आग लगा दी
ऊष्मा है तो मेघ उठेंगे
घुमुड़ घुमुड़ कर वो गरजेंगे
रह रह कर बिजली कड़केगी ,
तप्त धरा पर फिर बरसेंगे
बहुत चाह थी मेरे मन की
भीगूं रिमझिम में सावन की
लेकिन तुम तो ऐसे बरसे,प्रेम झड़ी ,घनघोर लगा दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी
मै हूँ पानी,तुम हो चन्दन
हम मिल जुल ,करते आराधन
तुम घिस घिस इस तरह घुल गये
महक गया तन मन का आँगन
चाहत थी तन में खुशबू भर
चढूँ देवता के मस्तक पर
तुम को अर्पित करके सब कुछ,जीवन की बगिया महका दी
मै बस चार कदम चल पायी ,और तुमने तो दौड़ लगा दी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
1463- सन्नाटे के ख़तों की आवाज़
-
*भीकम सिंह*
लम्हों का सफर, नवधा, झाँकती खिड़की के साथ प्रवासी मन (हाइकु संग्रह) और
मरजीना
*(क्षणिका संग्रह)* को जोड़कर डॉ. जेन्नी शबनम का यह छठा काव्य- ...
11 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।