खर्राटे
नींद में गाफिल जो रहते,होंश है उनको कहाँ
उनके खर्राटों को सुन कई,लोग होते परेशां
खुद तो सोते चैन से और दूसरों को जगाते
आदमी को अपने खर्राटे नहीं है सुनाते
इस तरह ही दूसरों की बुराई आती नज़र
लोग अपनी बुराई से,रहा करते बेखबर
झांक कर के देखिये अपने गरेंबां में कभी
नज़र आ जाएगी तुमको,स्वयं की कमियां सभी
कमतरी का अपनी सब,अहसास जिस दी पायेंगे
खर्राटे या बुराई सब खुद बखुद मिट जायेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बस ! अब और नहीं
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बस ! अब और नहीं उलझ गई थी आज़ादी के वक्त समस्या वह सुलझाने वाली है एक
मुल्क जो झूठ की बुनियाद पर खड़ा हुआ चूलें उसकी हिलने वाली हैं छल से लिया
बलूचिस्तान...
1 दिन पहले
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