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सोमवार, 13 जून 2022

अंतर वेदना 

तू भी बिमार , मै भी बिमार  
तन क्षीण हो रहा, लगातार 
है सब पीड़ाएं हैं उम्र जन्य ,
अब कौन करेगा देखभाल 
तू भी बिमार , मैं भी बिमार 

खाते थे छप्पन भोग कभी 
अब गले पड़ गए रोग सभी 
अब खाने को मिलती भेषज,
लूखी रोटी और मूंग दाल 
तू भी बिमार , मैं भी बिमार 
अब कौन करेगा देखभाल 

दुनिया भर घूमा करते थे 
आकाश को चूमा करते थे 
अब सिमटे चारदीवारी में, 
घर ,बिस्तर है या अस्पताल 
तू भी बिमार,मैं भी बिमार
अब कौन करेगा देखभाल
 
बच्चे अपने में व्यस्त सभी 
आ हाल पूछते कभी-कभी 
आपस में एक दूसरे की ,
अब हमको रखनी है संभाल
तू भी बिमार , मै भी बिमार
अब कौन करेगा देखभाल

जीवन का सुख भरपूर लिया 
और शानदार जीवन जिया 
अब ऐसा आया बुढ़ापा है,
 सब बदल गई है चाल ढाल 
 तू भी बिमार, मैं भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल

  छाये जीवन में सन्नाटे
  धन और माया को क्या चाटे
  उपभोग किया ना जीवन भर ,
  बस केवल रखा था संभाल 
  तू भी बिमार,मैं भी बिमार
अब कौन करेगा देखभाल

 तू एकाकी ,मैं एकाकी
 जीवन के कुछ दिन ही बाकी 
 मालूम नहीं कब और किस दिन,
 आ जाए काल, करने प्रहार
 तू भी बिमार, मैं भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल
 
जब खुशियां बसती थी मन में
संगीत भरा सा जीवन में 
हो गया बेसुरा यह जीवन 
ना बचा कोई सुर, नहीं ताल
 तू भी बिमार मै भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल
 
 अब मोह माया को सकल त्याग
 जागृत कर प्रभु प्रति अनुराग
 श्री राम लला ,करें सबका भला ,
 अब जीवन के वो ही आधार 
 तू भी बिमार, मैं भी बिमार
 अब कौन करेगा देखभाल

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 9 जून 2022

श्री श्री स्वामी जी माधव प्रपन्नाचार्य द्वारा राम कथा के अवसर पर एक कविता 

माधव से सुनी, राघव की कथा 
जग जननी मां सीता की व्यथा 
स्वामी जी ने श्री वचनों से , 
हमें दिया राम का पता बता 
माधव से सुनी राघव की कथा

श्री राम जनम ,वनवास गमन 
सीता का हरण, बाली का मरण 
सेतु निर्माण समंदर पर ,
और दशाशीश रावण का तरण 
हनुमान का बल, बुद्धिमत्ता 
माधव से सुनी ,राघव की कथा 

पुष्पों से सजाया, मंच द्वार 
श्री पुष्पहास जी ,परिवार
 सब ने सच्चे मन ,तन्मय हो,
  जय राम उचारा बार-बार 
  थी हर प्रसंग में विव्हलता 
  माधव से सुनी, राघव की कथा 
  
  हो मंत्र मुक्त श्रोताओं ने
 पुरुषों ने और महिलाओं ने 
 चाय की तलब भुला करके,
  पूरा रस लिया कथाओं में 
  आलस निद्रा को बता धता
  माधव से सुनी, राघव की कथा
  
 श्री राम रतन धन जब पाया 
 रस कथा में था इतना आया 
कि व्यास पीठ पर ऊपर से 
 लीची ने भी रस टपकाया 
 जीवन में आई निर्मलता 
 माधव से सुनी, राघव की कथा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 22 मई 2022

टूटे सपने

मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में,
रोज-रोज आ जाते थे तुम, अब क्यों रूठ गये सपने बोले ,तब पूरे होने की आशा थी ,
अब आने से क्या होगा, जब तुम ही टूट गये

एक उम्र होती थी जबकि मन यह कहता था,
ये भी कर ले वो भी कर ले सब कुछ हम कर ले आसमान में उड़े ,सितारों के संग खेल करें,
दुनिया भर की सब दौलत से हम झोली भर ले तब हिम्मत भी होती थी, जज्बा भी होता था, और खून में भी उबाल था, गर्मी होती थी 
तब यौवन था, अंग अंग में जोश भरा होता, 
और लक्ष्य को पाने की हठधर्मी होती थी 
पास तुम्हारे आते थे हम यह उम्मीद लिए ,
तुम कोशिश करोगे तो हम  सच हो जाएंगे 
पर अब जब तुम खुद ही एक डूबती नैया हो ,
पास तुम्हारे आएंगे तो हम क्या पाएंगे 
साथ तुम्हारा, तुम्हारे अपनों ने छोड़ दिया,
 वो यौवन के सुनहरे दिन, पीछे छूट गए 
 मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में ,
 रोज-रोज आ जाते थे तुम अब क्यों रूठ गए

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सपने

सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं ,
नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है
नींद उचट जाया करती जब काली रातों में ,
तो बस बीती यादों का दोहराना होता है 
 
कब क्या क्या सोचा था किससे क्या उम्मीदें थी, 
उन में कितनी पूर्ण हो गई ,कितनी टूट गई लेटे-लेटे ,सूनी आंखों से देखा करते ,
कितनी ही घटनाएं हैं जो पीछे छूट गई 
बीते हुए खुशी के लम्हे सुख दे जाते हैं ,
पर कुछ बीती बातों से पछताना होता है 
सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं,
नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है 

ढलती हुई उम्र में सपने देखे भी तो क्या,
पतझड़ में भी कहीं फूल का खिलना होता है जीवन की सरिता की कलकल मौन हो रही है,
क्योंकि शीघ्र सागर से उसको मिलना होता है
हंसते-हंसते जैसे तैसे गुजर जाए ये दिन,
बस मन को ढाढस देकर समझाना होता है 
सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं,
 नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ख्वाइश थी बनू रसीला मैं ,
पक कर के मीठा आम बनू 
स्वर्णिम आभा ले स्वाद भरा,
 तेरे होठों लग ,जाम बनू 
 पर देखो मेरी किस्मत ने,
 कितना मजबूर बना डाला 
 कच्चा ही टूटा डाली से ,
 मुझको अमचूर बना डाला

घोटू 

मंगलवार, 17 मई 2022

सुख की तलाश

क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर सुख तो तुम्हारे अंदर है 

झांको अपने अंतरतर में ,खुशियों का भरा समंदर है
 तुम को जीवन के जीने का, बस दृष्टिकोण बदलना है
 निज सोच सकारात्मक रखना, सुख के रस्ते पर चलना है 
 वो लोग दुखी हो जाते हैं ,सुख की तलाश में भटक भटक 
 जब लोग मोह के नाले में जाती है उनकी नाव अटक 
 लोगों की अच्छाई देखो , उनमें कमियां तुम ढूंढो
 मत 
 यदि जी भर प्यार लुटाओगे ,दूना आयेगा तुम्हे पलट
 बिखरे हैं मानसरोवर में , सुख के मोती , कंकर दुख के
बन करके तुमको राजहंस ,चुगना होगा मोती सुख के
इस जीवन की सुख ही सुख का ,झरना झर रहा निरंतर है 
क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर, सुख तो तुम्हारे अंदर है

घोटू 

शनिवार, 30 अप्रैल 2022

नारी का श्रृंगार तो पति है

BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: नारी का श्रृंगार तो पति है: नारी का श्रृंगार तो पति है पति पर जान लुटाए एक एक गुण देख सोचकर कली फूल सी खिलती जाए प्रेम ही बोती प्रेम उगाती नारी प्यारी रचती जाए *****
 नारी का श्रृंगार तो पति है
पति पर जान लुटाए
एक एक गुण देख सोचकर
कली फूल सी खिलती जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*****
प्रेम के वशीभूत है नारी
पति परमेश्वर पर वारी
व्रत संकल्प अडिग कष्टों से
सौ सौ जन्म ले शिव को पाए
कर सेवा पूजा श्रद्धा से
फूली नहीं समाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*******
चाहत से मुस्काए गजरा
बल पौरुष से केश सजे
नेह प्रेम पर माथ की बिंदिया
झूम झूम नव गीत रचे
नैनों से पति के बतिया के
हहर हहर लव चूमे जाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
****
जहां समर्पण प्यार साथ है
नारी अद्भुत बलशाली
नही कठिन कुछ काज है जग में
सीता सावित्री या अपनी गौरी काली
मंगल सूत्र गले में धारे
मंगल लक्ष्मी करती जाये
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
निज बल अभिमान चूरकर
चरण वंदना में रत रहती
हो अथाह सागर भी घर में
त्याग _ प्रेम दिल लक्ष्मी रहती
विष्णु पालते जग को सारे
लक्ष्मी ममता ही बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
पति के प्रेम की रची मेंहदी
देख भाग्य मुस्काती मन में
वहीं अंगूठी संकल्पों की
रहे चेताती सात वचन की
दंभ द्वेष पाखण्ड व छल से
दूर खड़ी, अमृत बरसाए
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
******
गौरी लक्ष्मी सीता पाए
सरस्वती का साथ निभाए
पुरुष भी क्यों ना देव कहाए??
क्यों ना वो जग पूजा जाए?
प्रकृति शक्ति की पूजा करके
निज गौरव नारी को माने
प्रेम ही बोती प्रेम उगाती
नारी प्यारी रचती जाए
*********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत। 29.04.2022
3.33_4.33 पूर्वाह्न

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

तेरा प्यार 

मैंने सारे स्वाद भुलाए, जबसे तेरा प्यार चखा है 
अपने से भी ज्यादा तूने हरदम मेरा ख्याल रखा है

खुद से ज्यादा तुझको रहती हरदम औरों की है चिंता
नेह उमड़ता है नैनों से ,और बरसती रहती ममता 
परेशानियां सब सह लेगी ,मुंह पर कोई शिकन ना लाए 
लेकिन ख्याल रखेगी सबका ,कोई कुछ तकलीफ न पाए 
तेरे मुस्काते चेहरे ने, हृदय हमारा सदा ठगा है 
मैंने सारे स्वाद बुलाए जबसे तेरा प्यार चखा है

 नर्म हृदय तू ,सदा नम्रता तेरे उर में रहती बसती 
सारे काम किया करती है तू खुश होकर हंसती हंसती
 तुझ में अच्छे संस्कार हैं तू गृहणी व्यवहार कुशल है 
 सुख और चैन मेरे जीवन में, तेरे मधुर प्यार का फल है 
सद्भावों से भरी हुई तू, जीवनसंगिनी और सखा है 
मैंने सारे स्वाद बुलाए ,जब से तेरा प्यार चखा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मेरी पत्नी बहुत मधुर है 

मेरी उमर हो गई अस्सी
मैं अब भी हूं मीठी लस्सी 
पिचहत्तर होने आई है 
पत्नी मेरी रसमलाई है 
हम दोनों का साथ अनूठा 
यह भी मीठी ,मैं भी मीठा 
सीधी सादी, सुंदर भोली 
 बहुत मधुर मीठी है बोली 
सब के संग व्यवहार मधुर है 
दिल से करती प्यार मधुर है 
कभी सुहाना गाजर हलवा 
कभी जलेबी जैसा जलवा 
कभी गुलाब जामुनो जैसी 
या कातिल काजू कतली सी 
रबड़ी है ये कलाकंद है 
हर एक रुप में यह पसंद है 
अधरम मधुरम वदनम मधुरम
 नयनम मधुरम चितवन मधुरम
 मनमोहक मुस्कान खान है 
 मिठाई की ये दुकान है 
 यह तो था सौभाग्य हमारा 
 जो पाया है साथ तुम्हारा 
 सहगामिनी पति की सच्ची 
 मेरी तारा सबसे अच्छी 
 जीवन में बहार बन आई 
 जन्मदिवस की तुम्हे बधाई

मदन मोहन बाहेती घोटू 
आज भी 

आज भी कातिल अदायें आपकी हैं ,
आज भी शातिर निगाहें आपकी हैं 
आज भी लावण्यमय सारा बदन है,
आज भी मरमरी बांहे आपकी है 
महकता है आज भी चंदन बदन है ,
आज भी है रूप कुंदन सा दमकता 
अधर अब भी है गुलाबी पखुड़ियों से,
और चेहरा चांद के जैसा चमकता 
बदन गदरा गया है मन को लुभाता,
कली थी तुम फूल बनकर अब खिली हो 
 भाग्यशाली मैं समझता हूं मै स्वयं को 
 बन के जीवनसंगिनी मुझको मिली हो 
 केश अब भी काले ,घुंघराले ,घनेरे 
 और अंग अंग प्यार से जैसे सना हो 
 हो गई होगी पिचत्तर की उमर पर ,
 मुझे अब भी लगती तुम नवयौवना हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

गोपाल जी मनोरमा विवाह के 60 साल के अवसर पर 
1
साठ साल पहले मिले मनोरमा गोपाल 
एक दूजे का साथ पा, दोनों हुए निहाल 
दोनों हुए निहाल ,प्रेम की महकी क्यारी 
फूल खिले दो,एकअतुल एक ममता प्यारी 
जीवन बीता सत्कर्मों और परोपकार में 
सब से मिलकर रहे इकट्ठे परिवार में 

2
जब इनकी शादी हुई थे ये दसवीं पास 
विद्या पाने का मगर करते रहे प्रयास 
करते रहे प्रयास ,बने सी ए लड्ढाजी 
मनोरमा ने भी एम ए कर मारी बाजी 
चमकी महिला मंडल की मंत्राणी बनकर 
और गोपाल जी लायन क्लब के बने गवर्नर
3
सरस्वती मां ने दिया विद्या का वरदान 
और लक्ष्मी मां ने दिया प्रेम सहित धनधान्य
प्रेम सहित धन धान्य,लुटाया सबमें जी भर 
सत्कार्यों से ली इन ने अपनी झोली भर 
शीतल शांत स्वभाव ,पुण्य करते मन हरषे
 कृपा ईश्वर की ,दोनों पर हरदम बरसे 
 
4
मन में सेवा भावना और अच्छे संस्कार 
दोनों ने में लुटाया ,सब में अपना प्यार 
सब में अपना प्यार ,हमेशा रहे विजेता 
और समाज के रहे हमेशा बनकर नेता 
घोटू प्रभु से यही प्रार्थना है कर जोड़ी 
रहे स्वस्थ और दीर्घायु हो इनकी जोड़ी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

प्रतीक्षा 

प्रतीक्षा तुम करो पर वो समय के साथ ना पहुंचे

जहां पर आ रही खुजली, वहां तक हाथ ना पहुंचे

इधर के कान से सुनकर ,दूसरे से करे बाहर,

फायदा क्या कुछ कहने का ,जो उन तक बात ना पहुंचे

घोटू 
डॉगी 

हमको हर एक बात पर वो टोकने लगे 

हल्की सी भी आहट हुई तो चौकने लगे 

हमने जो उनके डॉगी को कुत्ता क्या कह दिया,

 कुत्ता तो चुप रहा मगर वो भौंकने लगे

घोटू 

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

फलाहारी नमकीन 

बरत में खाया जो जाए ,वह है नमकीन फलहारी

पड़ोसन से बहलता मन ,जब मैके जाए घरवाली

 पड़ोसन भी अगर ऐसे में ,जो मैके चली जाए,
 
 लगे गीला हुआ आटा,छा रही जब हो  कंगाली

घोटू 
पत्थर की मूरत 

करें तस्वीर क्या उनकी, बड़ी ही प्लेन सादा है

वो दूरी से,निगाहों से ,दिखाते प्यार ज्यादा है 

बड़े मायूस होकर दिल को समझाने को हम बोले,

 किसी पत्थर की मूरत से ,मोहब्बत का इरादा है

घोटू 
बुढ़ापे में 

बुढ़ापे में, भुलक्कड़पन की बीमारी से तुम बच लो 
जरा सा याद मैं रख लूं,जरा सा याद तुम रख लो 
भुलाना है ,भुला दे हम ,पुरानी कड़वी यादों को, 
बुढ़ापे में जवानी का नया सा,स्वाद तुम चख लो

घोटू 
धोबी का गधा

हमेशा ही लदा रहता है डाले पीठ पर बोझा ,
कोई भी ढंग से उसको खिलाता है नहीं चारा

बहुत गुस्सा हो जाता, लोटने धूल में लगता,
 रेंक कर दर्द दिल का वो, बयां करता है तब सारा
 
कोई कहता इधर जाओ ,कोई कहता उधर जाओ,
 बहुत चक्कर लगा करके, हमेशा वो थका हारा

अगर कंफ्यूजड हो मालिक,बड़ी ही मुश्किल होती है
 न घर ना घाट का रहता, गधा धोबी का बेचारा

घोटू
राधा का नाच

न आता नाच राधा को मगर नखरे दिखाएगी कभी तुम्हारे आंगन को बहुत टेढ़ा बताएगी 
कभी बोलेगी नाचेगी,मिलेगा तेल,जब नौ मन,
न नौ मन तेल ही होगा, न राधा नाच पाएगी

घोटू 

सोमवार, 11 अप्रैल 2022

प्यार और मिठाई 
तुम्हारी ना को ना और हां को हां ही मानता हूं मैं 
तुम्हें खुश रखने के हथकंडे सब पहचानता हूं मैं 
गर्म गाजर का हलवा तुम हो प्यारा और मनभाता 
मिलेगा स्वाद चमचा बनके ही, यह जानता हूं मैं
भले ही टेढ़ी हो लेकिन रसीली और निराली हो 
जलेबी की तरह स्वादिष्ट हो तुम और प्यारी हो 
तुम्हारा सच्चा आशिक तुम्हें दिल से प्यार करता हूं 
मैं दीवाना तुम्हारा, प्रेमिका तुम ही हमारी हो
 तुम्हारा प्यार लच्छेदार है ,प्यारा सुहाना है 
 रसीला रस मलाई सा, हमें करता दीवाना है 
 मैं लच्छेदार रबड़ी से भरा जब देखता कुल्हड़,
 मेरा मन होताअल्हड़,करता जिद इसको ही खाना है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 10 अप्रैल 2022

आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

 रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली

ओढ़े घूंघट में तू माथे सूरज लिए

नैन करुणा भरे ज्योति जीवन लिए

स्वर्ण आभा चमक चांदनी से सजी

गोल पृथ्वी झुलाती जहां नाथती

तेरे अधरों पे खुशियां रही नाचती

घोल मधु तू सरस बोल थी बोलती

नाचते मोर कलियां थी पर खोलती

फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग

माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर

लौट आता था सपनों से ए मां मेरी 

मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी 

दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था

क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था

मोहिनी मूर्ति ममता की दिल आज भी

क्या कभी भूल सकता है संसार भी

गीत तू साज तू मेरा संगीत भी

शब्द वाणी मेरी पंख परवाज़ भी

नैन तू दृश्य तू शस्त्र भी ढाल भी

जिसने जीवन दिया पालती पोषती

नीर सी क्षीर सी अंग सारे बसी

 आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी


सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।


सन्यास आश्रम 

हम सन्यास आश्रम की उम्र में है मगर संसार नहीं छूटता 
लाख कोशिश करते हैं मगर मोह का यह जाल नहीं टूटता 
हमारे बच्चे भी अब होने लग गए हैं सीनियर सिटीजन 
पर बांध कर रखा है हमने मोह माया का बंधन शरीर में दम नहीं है ,हाथ पैर पड़ गए है ढीले 
मगर दिल कहता है, थोड़ी जिंदगी और जी ले 
इच्छाओं का नहीं होता है कोई छोर
हमेशा ये दिल मांगता है मोर
जब तलक लालसाओं का अंत नहीं होता है 
सन्यासआश्रम में होने पर भी कोई संत नहीं होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

कान 

चेहरे के दाएं या बाएं 
अगर आप नजर घुमाएं
तो दो अजीब आकृति के छिद्रयुक्त अंग नज़र आते हैं 
जो कान कहलाते हैं 
यह हमारी श्रवण शक्ति के मुख्य साधन है 
जिससे एक दूसरे की बात सुन पाते हम हैं 
यह कान भी अजीब अंग दिया इंसान में है 
हर जगह मौजूद रहते इस जहान में हैं 
वो आपके मकान में हैं 
उपस्थित दुकान में है 
काम करो तो थकान में है 
खुश रहो तो मुस्कान में हैं 
आदमी के ही नहीं दीवारों के भी कान होते हैं 
कोई कान के कच्चे श्रीमान होते हैं
हमें कानो कान खबर नहीं लगती और लोग हमारे विरुद्ध दूसरों के कान भरते हैं 
कोई कान कतरते है 
कोई कान में तेल डालकर बातों को अनसुना करते हैं 
जब हम सतर्क होते हैं हमारे कान खड़े हो जाते हैं कोई बकवास करके हमारे कान पकाते हैं 
कान सा कॉम्प्लिकेटेड आकार का शरीर का कोई अंग नहीं दिखता है
कहते हैं कान का हर पॉइंट शरीर के किसी अंग को कंट्रोल करता है 
कान का सही उपयोग सुनने के लिए होता है पर औरते जो कभी किसी की नहीं सुनती है 
अपने श्रृंगार के लिए कानों को चुनती हैं 
कभी कानों में बाली डालती है 
कभी झुमका लटकाती है 
कभी हीरे के टॉप्स से कानों को सजाती है 
कोरोना की बीमारी में भी कान बहुत काम आए हर कोई रहता था कान से मास्क लटकाए 
मंद दृष्टि वालो को दूरदृष्टि देने वाला चश्मा जिससे साफ दिखता है 
वह भी कानों के सहारे ही टिकता है 
कुछ बातों की किसी को नही होती
 कानोकान खबर है
 ये शरीर का एकमात्र अंग है 
 जिसके नाम पर बसा कानपुर नगर है 
 बचपन में जब स्कूल में पढ़ते थे 
मास्टर जी बहुत ज्ञान की बातें हमारे कानों में भरते थे 
पर हमारे कानों पर जूं नहीं रेंग पाती थी 
इस कान से सुनी बातें उस कान से निकल जाती थी 
और इसकी सजा में हमारे काम उमेंठे जाते थे कभी कान पकड़ कर उठक बैठक लगाते थे 
इस पर भी बात नहीं बनती तो कान पकड़कर मुर्गा बना दिए जाते थे 
तरह-तरह की सजाएं पाते थे 
तब तो हम खिसिया कर पल्लू झाड़ कर खड़े हो जाते थे 
क्योंकि हमारे कई सहपाठी अक्सर ऐसी सजा पाते थे 
पर एक प्रश्न दिमाग में जरूर मचाता था तूफान की सजा देते समय मास्टर जी क्यों मरोड़तें हैं हमेशा कान 
लेकिन इसका उत्तर अब समझ पाए हम है 
कान का मस्तिष्क की ज्ञान तंत्रिका से सीधा कनेक्शन है
कान मरोड़ने से ज्ञान तंत्रिका जागृत हो जाती है ऐसी सजा से अच्छी बुद्धि आती है 
कुछ भी हो अगर कान नहीं होते तो आपस में कम्युनिकेशन नहीं हो पाता 
न सत्संग हो पाता ,ना भजन हो पाता  
इसलिए श्रीमान 
मेरी बात सुनिए खोल कर कान
कान है महान 
गुणों की खान 
आपके चेहरे पर लाते है मुस्कान 
आपस में कानाफूंसी न कर 
ऐसी बातें बोलें
जो लोगों के कानो में मिश्री घोले

मदन मोहन बाहेती घोटू
कशमकश 

मेरा दिल और दिमाग 
कभी नहीं चले एक साथ 
बचपन से ले अब तक 
दोनों चलते रहे अलग-अलग 
दिल ने कुछ कहा,
 दिमाग नहीं माना  
दिमाग में कुछ विचार आए 
दिल नहीं माना 
दोनों कि हमेशा लड़ाई चलती ही रही 
और फिर एक दिन मेरी शादी हो गई 
अब मन और मस्तिष्क की कशमकश बंद है क्योंकि मुझे अब वही करना पड़ता है,
 जो मेरी पत्नी जी को पसंद है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

सन्यास आश्रम 

हम सन्यास आश्रम की उम्र में है मगर संसार नहीं छूटता 
लाख कोशिश करते हैं मगर मोह का यह जाल नहीं टूटता 
हमारे बच्चे भी अब होने लग गए हैं सीनियर सिटीजन 
पर बांध कर रखा है हमने मोह माया का बंधन शरीर में दम नहीं है ,हाथ पैर पड़ गए है ढीले 
मगर दिल कहता है, थोड़ी जिंदगी और जी ले 
जब तलक लालसाओं का अंत नहीं होता है 
सन्यासआश्रम में होने पर भी कोई संत नहीं होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ऑरेंज काउंटी के चुनाव में लड़ने वाले प्रत्याशियों से एक नम्र निवेदन 
1
 इसे ऑरेंज कहते हम मगर ताजा यह ऐपल है 
हमारी जिंदगी की यहां बसती खुशी पल-पल है 
तुम्हारी यह जवानी है ,हमारा यह बुढ़ापा है ,
 हमारे प्यारे बच्चों का सुनहरा यही तो कल है
 2
 हमारी जिंदगानी है ,हमारा प्यार है ओ सी 
 जवानी से बुढ़ापे तक का ये संसार है ओ सी 
 तुम्हें इसकी व्यवस्थायें, सभी हम सौंप तो देंगे 
करो वादा हमेशा ही ,रहे गुलजार ये ओ सी
 3
आपसी मन के भेदों को मिटाकर काम तुम करना 
भला सोसाइटी का ,इसका ऊंचा नाम तुम करना 
मोहब्बत ही मिलेगी ,जो मोहब्बत से रहोगे तुम, 
जरा से फायदे खातिर ,इसे बदनाम मत करना
 करो वादा अगर जीते ,नहीं तुम रंग बदलोगे मुस्कुरा कर के मिलने का नहीं तुम ढंग बदलोगे 
हमारा हाथ हरदम ही तुम्हारे साथ है लेकिन ,
 रहोगे साथ तुम मिलकर ,नहीं तुम संग बदलोगे

 मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

ढलता तन,चंचल मन

तन बूढ़ा हो गया आ गई ,अंग अंग में ढील है लेकिन मन का कोना कोना ,चंचल है गतिशील है

 हाथ पांव कृषकाय हुए पर मन अभी जोशीला है 
तन में फुर्ती नहीं रही पर अंतर मन फुर्तीला है 
 अब भी ख्याल जवानी वाले मस्तक में मंडराते हैं 
हालांकि थोड़ी सी मेहनत, करते तो थक जाते हैं 
चार कदम ना चलता तन ,मन चले सैकड़ों मील है 
लेकिन मन का कोना कोना ,चंचल है गतिशील है
 
तन तो अब ना युवा रहा पर मन यौवन से भरा हुआ 
तन बूढ़ा हो गया मगर मन,ना बूढ़ा है जरा हुआ 
इसका कारण मैं गांव में पला बढ़ा और रहता हूं 
नहीं संकुचित शहरों सा उन्मुक्त पवन सा बहता हूं 
हैआध्यात्म बसा नसनस में और संस्कार सुशीलहै 
 लेकिन मन का कोना कोना चंचल है गतिशील है

शुद्ध हवा में सांसे लेता और शीतल जल पीता हूं 
दूर बहुत दुनियादारी से, सादा जीवन जीता हूं
तन पर तो बस नहीं मगर मन पर तो है बस चल जाता 
जैसा हो परिवेश उस तरह ही है मानस ढल जाता 
बहुत नियंत्रित मेरा जीवन ,जरा न उसमें ढील है 
लेकिन मन का कोना कोना चंचल है गतिशील है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बढ़ती महंगाई 

प्रवासी भारतवासी ,
जब विदेश से लौटकर 
वापस अपने घर आते हैं 
बढ़ी हुई महंगाई को
 अपने साथ ले आते हैं 
 
 जैसे मेरे देश का वड़ापाव 
 छोड़कर अपना गांव 
 जब गया विदेश ,
 तो लौटा नया रूप धर 
 वह बन गया था वड़ापाव से बर्गर 
 उसका नया हीरो वाला रूप,
  लोगों को सुहाया 
  दाम दस गुना हो गए ,
  फिर भी लोगों ने बड़े चाव से खाया 
  
  मेरे गांव के नाई चाचा की तेल मालिश ,
  जब विदेश गई 
  तो स्पा बन गई 
  नए रंग में सन गई
  बहुत महंगी हो गई 
  पर फैशन बन गई 
  
  दादी के हाथों के मैदे की सिवैयां
   आज भी बहुत याद आती हैं 
   जब से विदेश से लौटी है ,
   चाऊमीन कहलाती है 
    बड़ी मंहगी आती है
   
   और जब आलू का पराठा पहुंच गया विदेश
    देखकर उन्मुक्त परिवेश 
    दो परतों के बीच उसका दम घुटने लगा 
    और वह बाहर की और भगा 
    रोटी के ऊपर चढ़कर उसे आया मजा 
    और वह बन गया पिज़्ज़ा 
    विदेशी रंगत देख कर,
    लोगों में दीवानगी चढ़ गई 
    बस कीमत कई गुना बढ़ गई 
    
    कनखियों से ताक झांक कर के ,
    नैनो को लड़ाने वाला प्यार 
    विदेश में डेटिंग करके हो गया बेकरार 
    खुली छूट मिल गई कर लो पूरा दीदार 
    मगर खर्च होगया कई हजार
    
    विदेश जाकर बदले परिवेश में,
     गांव की चीजों पर आधुनिकता चढ़ा दी 
     पर मेरे देश की महंगाई बढ़ा दी

     मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

बुढ़ापा होता है कैसा

बुढ़ापा होता है कैसा 
बुढ़ापा होता है ऐसा 

अभी जोशे जवानी है 
चमक चेहरे पर पानी है 
मटकती चाल बलखाती
जुल्फ काली है लहराती 
उमर जब बढ़ती जाएगी 
लुनाई घटती जाएगी 
कोई जब आंटी बोलेगा 
तुम्हारा खून खोलेगा 
भुगतनी पड़ती जिल्लत है 
उमर की यह हकीकत है 
सफेदी सर पे आती है,
 उमर देती है संदेशा 
 बुढ़ापा होता है ऐसा 
 बुढ़ापा होता है कैसा 
 
तुम्हारी अपनी संताने 
जो चलती उंगली को थामें 
बड़ी होने लगेगी जब 
ध्यान तुम पर न देगी तब 
तुम्हारी कुछ न मानेगी 
सिर्फ अपनी ही तानेगी 
कहेगी तुम हो सठियाये
रिटायर होने को आए 
रमाओ राम में निज मन 
छोड़ दो काम का बंधन 
नियंत्रण उनका धंधे पर ,
और उनके हाथ है पैसा 
बुढ़ापा होता है ऐसा 
बुढ़ापा होता है कैसा 

बदन थोड़ा सा कुम्हलाता
चिड़चिड़ापन है आ जाता 
बहुत कम खाते पीते हैं 
दवाई खा कर जीते हैं 
मिठाई खा नहीं सकते 
बहुत परहेज है रखते 
गुजारे वक्त ना कटता 
बड़ी आ जाती नीरसता 
नहीं लगता कहीं भी मन 
खटकता है निकम्मापन
न घर के घाट के रहते ,
हाल कुछ होता है ऐसा
 बुढ़ापा होता है कैसा 
 बुढ़ापा होता है ऐसा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 30 मार्च 2022

जवानी मांगता हूं मैं
1
गई जो बीत,फिर से वह,कहानी मांगता हूं मैं कबाड़ी हूं ,सदा चीजें, पुरानी मांगता हूं मैं 
मेरी फरमाइशें देखो ,ये मेरा शौक तो देखो 
बुढ़ापे में ,गई फिर से ,जवानी मांगता हूं मैं 
2
मुझे दे दो जवानी बस, उसे मैं धार दे दूंगा 
पुरानी चीज को चमका, नई चमकार दे दूंगा हसीनों का जरा सी देर का जो साथ मिल जाए कयामत जाऊंगा मैं ,ढेर सारा प्यार दे दूंगा
3
सुना है कि पुराने चावलों में स्वाद ज्यादा है 
पुरानी चीज होती एंटीक है दाम ज्यादा है 
नई नौदिन पुरानी सौ दिनों तक टिकती है लेकिन 
मेरा नौ दिन सही, फिरसे जवानी का इरादा है
4
भले थोड़ी सही,फिर से जवानी मुझको मिल जाए 
येमुरझाया चमन मेराभले कुछ दिन ही खिल जाए
हसीनों से करूं फिर से मोहब्बत ,आरजू दिल की कि इन बुझते चिरागों में ,रोशनी फिर से मुस्काए
5
नया कुछ स्वाद मैं ले लूं ,नया उन्माद मैं झेलूं तमन्ना है चमन की हर कली के साथ मैं खेलूं 
खुदा इतनी सी हसरत है ,तू लौटा दे पुराने दिन, भले कुछ दिन सही, लेकिन जवानी के मजे ले लूं
6
जवानी फिर से जीने को मेरा दिल तो है आमादा
भले हिम्मत नहीं बाकी, न तन में जोश है ज्यादा लगा चस्का पुराना है ,नहीं छूटेगी यह आदत , हो कितना बूढ़ा भी बंदर, गुलाटी मारता ज्यादा

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 29 मार्च 2022

मां मां ही होती है

 नौ महीने तक तुम्हें गर्भ में अपने ढोती है 
 मां तो मां ही होती है 
 जो तुमको गोदी में लेकर अपने आंचल में
 छुपा तुम्हे, छाती से अपना दूध पिलाती है 
 तुम कितनी ही बार गिरो, वह तुम्हे उठाती है
 पकड़ तुम्हारी उंगली चलना तुम्हें सिखाती है 
 तुम्हें पालने दुनिया भर के कष्ट झेलती है ,
 खुद भूखी रहकर भी पहले तुम्हें खिलाती है अक्षर ज्ञान कराती है ,भाषा सिखलाती है कार्यकलाप सभी जीवन के तुम्हें सिखाती है 
 तुम्हें चैन से नींद आ सके, कुछ तकलीफ न हो तुम्हें सुलाती सूखे में, खुद गीली सोती है 
 वह तुम्हारी जननी है , मां , मां ही होती है
 
 तुम्हारे पोषण को अपने सीने हल चलवा ,
 एक दाने के कई हजारों दाने उपजाती 
 तुम्हें मिल सके ठंडी ठंडी हवा इसलिए वो, कितने वन उपवन अपनी छाती पर लहराती 
 वो कुदाल की चोटें सह सह कुवा खुदवाती,
 ताकि शीतल और शुद्ध जल तुमको मिल पाए
 अपनी माटी दे, तुम्हारा घर बनवाती है,
 ताकि चैन से रहो तुम्हे कुछ मुश्किल ना आए
 कई रसीले फल तुमको खाने को मिलते हैं,
 एक बीज फल का अपनी छाती में बोती है
  वो धरती मां ,मां ही है, मां मां ही होती है 
  
जो खुद सूखा तृण खाकर भी दूध पिलाती है
 वह भी पूजनीय है हमको ,गैया माता है 
 करती है हमको प्रदान धन-धान्य और वैभव अति प्रिय सबको लगती है वो लक्ष्मी माता है 
 जो हम को शक्ति देती है और रक्षा करती है, वंदनीय हम सब की है वह दुर्गा माता है 
 वीणा वादिनी ,सुर प्रदायिनी, सरस्वती माता 
 है संगीत सुरसरी और बुद्धि की दाता है 
 देना ही जिसकी प्रवृत्ति, वो माता कहलाती, संतानों के जीवन में जो खुशी संजोती है 
 लक्ष्मी सरस्वती या दुर्गा ,मां तो मां होती है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
 हवा हवाई 
 
हवाओं से मेरा रिश्ता बहुत ज्यादा पुराना है 
जन्म से ही शुरु मेरी सांसो का आना जाना है

जमाने की हवा ऐसी लगी थी मुझको यौवन में 
हवा में उड़ता रहता था जब तलक जोश था तनमें
 
नजर उनसे जो टकराती मिलन की बात थी आती 
गति सांसों की बढ़ जाती धड़कन तेज हो जाती

 हुई शादी, हवा निकली, गृहस्थी बोझ था सर पर 
हवा में उड़ न पाते थे, गए थे कट, हमारे पर 
 
जिंदगी में कई तूफान, आए और ठहराये
हवाओं से मेरे रिश्ते ,तभी से और गहराये

बुढ़ापे में हवा बिगड़ी, जिंदगी हो गई पंचर 
गुजारा वक्त करते हैं अब ठंडी आहें भर भर कर 

 जिंदगी भर की ये यारी, हवा से जिस दिन टूटेगी 
धड़कने जाएंगी थम, चेतनायें तन की रूठेंगी
 
हवाई थे किले जितने,हो गए ध्वंस, सबके सब
विलीन होकर हवा में ही, हमारा अंत होगा अब 

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 28 मार्च 2022

कान्हा का बुढापा

बूढ़े कान्हा, बूढ़ी राधा, दोनों ही कमजोर हुए, ओल्ड एज में ,मजबूरी में ,ऐसे समय  बिताते है

जमुना तट पर रास रचाना,उनके बस का नहींरहा मूड हुआ तो, कभी शाम जा, पानी पूरी खाते हैं

जिनने बारिश से बचने को गोवर्धन था उठा लिया अब छाता भी अधिक देर तक नहीं उठा वह पाते है
माखन चोरी की बचपन की उनकी आदत छूट गई,
कोलोस्ट्राल बढ़ गया इतना मक्खन पचा न पाते हैं 
खाते छप्पन भोग कभी थे, अब खाते लूखी रोटी डायबिटीज है माखन मिश्री भोग लगा ना पाते हैं

गोपी के संग  छेड़छाड़ के खत्म सिलसिले हुए सभी,
 कंकरी फेंक नहीं पाते अब हंड़िया फोड़ न पाते हैं यमुना में स्नान गोपियां अब भी करती मिल जाती, 
स्विमिंग सूट पहन वह नहाती,वस्त्र चुरा ना पाते हैं 

 पॉल्यूशन का नाग कालिया जमुना करे प्रदूषित है 
 उसे नाथने जमुना में छलांग लगा ना पाते हैं 
 
अब तो नहीं बांसुरी उनसे ठीक तरह से बज पाती कोशिश करते, फूंक मारते, पर जल्दी थक जाते हैं 
अब ना सिर पर मोर मुकुट है,रहे न पीतांबर धारी बरमूडा टी-शर्ट पहन,कंफर्टेबल दिखलाते हैं 

जैसा भी हो,पर वे खुश हैं, दोनों साथ-साथ जो है ,
इतना सब कुछ होने पर भी  दोनों संग मुस्काते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 27 मार्च 2022


वह चले गए 

वह जिनकी अपनी गरिमा थी, गौरव था 
कठिन काम करना भी जिनको संभव था 
सूरज जैसे प्रखर, चंद्रमा से शीतल 
गंगा की लहरों से बहते थे कल कल 
वह जिनमें दृढ़ता होती थी पर्वत सी 
और विचार में गहराई की सागर सी
अपनी एक सुनामी से वो छले गए
 कल तक चलते फिरते थे ,वह चले गए
 
 जो परमार्थी,सेवाभावी ,सज्जन थे 
 पूरे उपवन को महकाते चंदन थे 
 वह जिनके मुख रहती थी मुस्कान सदा 
 छोटे बड़े सभी का रखते ध्यान सदा 
 वह जिनकी थी सोच जरा भी ना ओछी
 वह जिन्हें बुराई किसी की ना सोची
 जलन नहीं थी किंतु चिता में जले गए 
 कल तक चलते फिरते थे, वह चले गए 
 
वह जो कर्मभाव में सदा समर्पित थे 
सेवाभावी ,प्रभु सेवा में अर्पित थे 
थे भंडार दया के ,संयम वाले थे 
बुद्धि और कौशल में बड़े निराले थे
मिलजुल जिया सदा सादगी का जीवन 
सभी दोस्त थे,नहीं किसी से थीअनबन  
नियति के क्रूर हाथों में आ ,छले गए
कल तक चलते फिरते थे ,वह चले गए

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 24 मार्च 2022

क्या जीवन का है यही अंत

छूटी सब माया, गया मोह,
जब टूट गया सांसो का क्रम  
माटी होकर निर्जीव पड़ी,
कंचन काया का था जो भ्रम 
खाली आये, खाली ही गये,
राजे, महाराजे, श्रीमंत
 क्या जीवन का है यही अंत 
  
 ऊपर लकड़ी, नीचे लकड़ी ,
 और बीच दबी निष्प्राण देह  
 देकर मुखाग्नि , फूंकेंगे,
 जिनसे तुमको था अधिक नेह 
 तेरह दिन तक बस शोक रखा,
 फिर जीवन का क्रम यथावंत
  क्या जीवन का है यही अंत 
  
  सारा जीवन संघर्ष करो 
  पर जब आता अंतिम पड़ाव 
  चाहे राजा हो या फकीर 
  यह मौत न करती भेदभाव 
  सब होते राख, चिता में जल 
  हो दुष्ट ,कुटिल या महा संत 
  क्या जीवन का है यही अंत 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 19 मार्च 2022

चंदन 

मुझको जड़ मात्र समझ कर के,
 मत करो मूल्य का आलंकन 
 मैं दिखता हूं निर्जीव मगर,
  भरपूर भरा मुझ में जीवन 
  मुझको तुम अगर जलाओगे 
  तो घर जाएगा महक महक 
  पानी में घिसकर लेप लगा,
  उबटन बन कर दूंगा ठंडक 
  प्रभु के मस्तक और चरणों में,
  मैं चढ़ता उनके पूजन में 
  मोहक खुशबू है भरी हुई,
  तैलीय मेरे तन और मन में 
  विष भरे भुजंग लाख लिपटे,
  होता ना मुझ पर कोई असर 
  हूं सूखा काष्ठ मगर चेतन ,
  मैं चंदन, महकूं जीवन भर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ऐसा जीना भी क्या जीना 

लंबा जीने की तमन्ना में खुद पर न कोई प्रतिबंध रखो 
मत खाते रहो दवाई बस, मिष्ठान ,जलेबी नहीं चखो ऐसा जीना भी क्या जीना तुम तरस तरस काटो जीवन सूखी रोटी,फीकी सब्जी,ना दूध मलाई, ना मक्खन जीवन जितना भी जियो तुम, खुश रहो सदा और मौज करो 
तुम घूमो ,फिरो, पियो खाओ ,मनचाही मस्ती रोज करो इच्छाओं पर कंट्रोल करो, हमको यह बात पसंद नहीं घुट घुट कर के लंबा जीवन, जीने में कुछ आनंद नहीं 
फीका फीका जीवन जियो और अंत समय में पछताओ ऐसा जीना भी क्या जीना, जीने का मजा ना ले पाओ

जब दिवस मौत का तय है तो तुम मन चाहे वैसा जी लो जो भी अब शेष बचा जीवन खेलो कूदो और मस्ती लो मरते दम तक अपने मन की बाकी न रहे कोई हसरत
मरने के बाद मिले कुछ भी,दोखज हो या कि जाओ जन्नत 
 इसलिए स्वर्ग के सारे सुख जीते जी पा लो धरती पर मन में ना कोई मलाल रहे जीवन ना जी पाये जी भर 
 जीवन भर की अर्जित पूंजी को खर्च करो तुम खुद खुद पर 
आनंद उठाओ पल पल का जब तक चलते सांसों के स्वर 
तुम मौज करो मस्ती काटो, रह सदा प्रफुल्लित मुस्काओ
ऐसा जीवन भी क्या जीना जीने का मजा ना ले पाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 15 मार्च 2022

उमर का तगादा

ढीले पड़ गए हाथ पांव और तन में अब कमजोरी है किंतु उछाले भरता रहता ,यह मन बड़ा अघोरी है 
हमको कसकर बांध रखी यह मोह माया की डोरी है बूढ़ा बंदर, किंतु गुलाटी की आदत ना छोड़ी है
 करना बहुत चाहता लेकिन कुछ भी ना कर पाता है उमर का यह तो तगादा है ,उमर का यह तगादा है 
 
डाक्टर कहता शकर बढ़ गई, मीठे पर पाबंदी है 
खाने अब ना मिले जलेबी ,कलाकंद, बासुंदी है 
नहीं समोसे, नहीं कचोरी तली चीज पर बंदी है 
खाना नहीं ठीक से पचता, पाचन शक्ति मंदी है 
मुश्किल से दो रोटी खाते ,खाना रह गया आधा है
 उमर का ये तो तगादा है ,उमर का ये तो तगादा है
 
 रोमांटिक तो है लेकिन अब रोमांस नहीं कर पाते हैं सुंदरियों के दर्शन करके, अपना मन बहलाते हैं 
आंखें धुंधली ,उन्हें ठीक से देख नहीं पर पाते हैं
पर जब वह बाबा कहती ,मन में घुट कर रह जाते हैं अब कान्हा से रास ना होता बूढ़ी हो गई राधा है 
उमर का ये तो तगादा है उमर का ये तो तगादा है

जैसे-जैसे उमर हमारी दिन दिन बढ़ती जाती है 
बीते दिन की कई सुहानी यादें आ तड़पाती है 
रात ठीक से नींद ना आती उचट उचट वो जाती है
यूं ही करवट बदल बदल कर रातें अब कट जाती है
 कैसे अपना वक्त गुजारें, नहीं समझ में आता है 
 उमर का ये तो तगादा है, उमर का ये तो तगादा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भूख तो सबको लगती ही है 

चाहे आदमी हो चाहे जानवर 
कीट हो या नभचर
सभी के पेट में आग तो जलती ही है 
भूख तो सबको लगती ही है 

पेट खाली हो तो बदन में ताकत नहीं रहती 
कुछ भी कर सकने की हिम्मत नहीं रहती 
खाली पेट आदमी सो नहीं पाता 
भूखे पेट भजन भी हो नहीं पाता 
इसलिए जिंदा रहने पेट भरना पड़ता है 
पेट भरने के लिए काम करना पड़ता है 
पंछी नीड छोड़ दाने की तलाश में उड़ता है 
आदमी कमाई के लिए काम में जुटता है 
दिन भर की मेहनत के बाद
 दो जून की रोटी नसीब हो पाती है 
 इसी पेट के खातिर दुनिया कमाती है 
 किसान खेती करता है, अन्न उपजाता है 
 जिसे पकाकर पेट भरा जाता है 
 जानवर भी एक दूसरे का शिकार करते हैं 
 सब जैसे तैसे भी अपना पेट भरते हैं 
 मांस हो या बोटी 
 रोटी हो या डबल रोटी 
 चाट हो या पकौड़ी 
 पूरी हो या कचौड़ी 
 बिरयानी हो या चावल 
 सब्जी हो या फल 
 जब तक पेट में कुछ नहीं जाता है 
 आदमी को चैन नहीं आता है 
 सुबह चाय बिस्कुट चाहिए
  फिर नाश्ता और लंच खाइए 
  शाम को फिर चाय और स्नैक्स
   फिर रात में डिनर 
   आदमी चरता ही रहता है दिन भर 
   कुछ नहीं मिलता तो गुजारा करता है पानी पी पीकर फिर भी उसकी भूख खत्म नहीं होती 
   उस की लालसा कम नहीं होती 
   भूख कई तरह की होती है 
   तन की भूख
   धन की भूख
   जमीन की भूख
   सत्ता की भूख 
   कुर्सी की भूख 
   एक भूख खत्म होती है तो दूसरी जग जाती है 
   कई बार एक भूख पूरी करने के चक्कर में,
    पेट की भूख मर जाती है 
    आदमी दवा खाता है 
    आदमी हवा खाता है 
    आदमी डाट खाता है 
    आदमी मार खाता है 
    आदमी रिश्वत खाता है 
    आदमी पूरी जिंदगी भर कुछ न कुछ खाता है 
    पर फिर भी उसका पेट नहीं भरता है
     और जब वह मरता है
     तो उसके घर वाले हर साल 
     पंडित को श्राद्ध में खिलाते हैं 
     उसकी तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाते हैं 
   ये भूख मरने के बाद भी सबको ठगती ही है 
   भूख तो सबको लगती ही है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 

कभी झगड़ा ,कभी तकरार 
कभी बातों का प्रहार ,कभी तानो की बौछार 
एक दूसरे को टोकना बार बार
कभी जीत ,कभी हार 
कभी रूठना ,कभी मनवार 
और यूं ही निकाल लेना मन का गुबार 
कभी पिता सा गुस्सा ,कभी मां का दुलार 
बस यही है बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 

दो प्राणी अकेले बुढ़ापे की मार झेलते हैं 
समय नहीं कटता तो झगड़ा झगड़ा खेलते हैं 
एक दूसरे का सहारा देकर साथ साथ चलना
किसी का सिर दुखे तो बाम मलना 
थोड़ा सा सहलाना ,अपना मन बहलाना 
इतना सीमित रह गया है आजकल अभिसार
 बुढ़ापे में यही है मियां बीवी का प्यार  
 
 नहीं है चिंतायें पर उदास रहता है मन 
 बात बिना बात ही हुआ करती है अनबन 
 फिर एक दूजे को कोई ऐसे मनाता है 
 पत्नी पकोड़े बनाती, पति आइसक्रीम खिलाता है 
 इन्हीं छोटी-छोटी बातों में सिमट गया है संसार 
 बस यही है, बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 
 
 जब त्योहारों पर बच्चों के शुभकामना संदेश आते हैं थोड़ी देर ,दोनों बच्चों की तरह खुश हो जाते हैं 
 उनके सुखी जीवन के लिए दुआएं देते हैं  
 उनकी खैरियत को अपनी ख़ैरियत बना लेते हैं 
 बहू बेटी पोता पोती मिलने को भी आते हैं ,
 पर वही साल में एक दो बार 
 बस यही है बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 
 
 कभी कोई हावी है कभी कोई झुकता 
 याद बीती बातें कर ,आती भावुकता  
 किसी से नहीं रही, कोई भी आकांक्षा
  बस दोनों स्वस्थ रहें इतनी सी अभिलाषा
  सुखी रहे घोसले में सिमटा हुआ परिवार 
  बस यही है बुढापे में मियां बीवी का प्यार 

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 12 मार्च 2022

उमर की मेहरबानी 

ज्यों ज्यों उमर मेहरबां हो रही है 
मेरे दिल की मस्ती ,जवां हो रही है 

यूं ही जूझते उम्र सारी गुजारी 
परिवार खातिर ,करी मारामारी 
खुशी लेकर आया बुढ़ापे का मौसम 
उमर आई अपने लिए अब जिए हम 
बहुत जिंदगी खुशनुमां हो रही है 
मेरे दिल की मस्ती जवां हो रही है 

भले ही लुनाई, रही ना वो तन में 
बड़ी शांति पर ,बसी अब है मन में 
निश्चिंत जीवन, बड़ा बेफिकर है 
करो मौज की अब आई उमर है 
परेशानियां सब हवा हो रही है 
मेरे दिल की मस्ती जवां हो रही है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जो बीत गया वह अच्छा था ,
जो आएगा अच्छा होगा 
यह सोच शांति देगा मन को ,
जीवन में सुख सच्चा होगा 

अच्छा या बुरा सभी कुछ जो ,
तुमने कर डाला ,कर डाला 
उसका रोना रोने से अब ,
कुछ लाभ नहीं होने वाला 
इससे बेहतर अब यह होगा 
जितना भी शेष बचा जीवन 
तुम सेवा और सत्कर्म करो ,
लो रामा राम में अपना मन 
जीवन वैसे ही बीतेगा ,
नियति ने जो रच्चा होगा 
जो बीत गया वो अच्छा था ,
जो आएगा अच्छा होगा 

यदि सोच सकारात्मक है तो,
चिंतायें नहीं सताएगी 
ना सूरज प्रखर तपायेगा,
ना काली रात डरायेगी
आशा के दीप जला रखना,
 मन में ना कभी निराशा हो 
 मायूसी मुख पर ना झलके, 
 चेहरा हरदम मुस्काता हो 
 मत रखो अपेक्षा कोई से ,
 दिल टूट गया तो क्या होगा 
 जो बीत गया वह अच्छा था 
 जो आएगा अच्छा होगा

मदन मोहन बाहेती घोटू
तुम वही करो जो मन बोले 

तुम वही करो जो मन बोले 
जिससे तुमको मिलती शांति ,
जो मन की दबी गांठ खोलें 
तुम वही करो जो मन बोले 

यह सोच, कोई क्या सोचेगा,
 तुम सोच न खुद की खोने दो
 औरों की सोच को अपने पर ,
 बिल्कुल हावी मत होने दो 
 यह नहीं जरूरी तुम्हारी 
 औरों के साथ पसंद मिले 
 तुमको बस वो ही करना है ,
 जिससे तुमको आनंद मिले 
 जो भी करना दृढ़ निश्चय से,
  मत खाना डगमग हिचकोले 
  तुम वही करो जो मन बोले 
  
तरह-तरह के परामर्श ,
देने कितने ही आएंगे 
तुम ये करलो तुम वो करलो 
शुभचिंतक बंद समझाएंगे 
इन रायचंद की रायों को ,
तुम बिल्कुल ध्यान नहीं देना
चाहे कुछ भी परिणाम मिले 
इनको ना कुछ लेना देना 
लेकिन निष्कर्ष नहीं लेना,
 तुम भले बुरे को बिन तोले 
 तुम वही करो जो मन बोले

मदन मोहन बाहेती घोटू
 
बस एक ही मोदी काफी है 

काशी से बोले विश्वनाथ,
 हिम पर्वत से केदार कहे, 
 हिंदुत्व की शान बढ़ाने को बस एक ही गंगा काफी है यूक्रेन से आए बच्चों से, 
 पूछो तो वे बताएंगे ,
 जो भरे जंग से ले आया ,बस एक तिरंगा काफी है
 
 सब बाहुबली दबंगों का ,
 सारा गरूर अब नष्ट हुआ 
 बुलडोजर बाबा योगी के ,
 आने से सब को कष्ट हुआ 
 सत्तर वर्षों से भारत की ,
 सत्ता पर जो कि काबिज़ थी ,
 कांग्रेस की लुटिया डुबोने को, पप्पू बेढंगा काफी है 
 
 मिल परिवार और सब कुनबा,
 जनता का धन थे लूट रहे 
 बीजेपी बीजेपी सत्ता में आई ,
 अब सब के पसीने छूट रहे 
 बरसों ताले में बंद रहे 
 तंबू में रह बनवास सहा,
 उन रामलला की मंदिर में ,अब सजने वाली झांकी है 
 
गाली दे दे कर हार गए , 
राहुल प्रियंका अखिलेश
मिल कर कौरव ने युद्ध किया,
पर सबके सब होगये शेष
बाइस का जंग तो जीत लिया,
चोबीस का जंग भी जीतेंगे,
सबको चित करने मोदी और योगी का संगा बाकी है 

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 3 मार्च 2022

जवानी फिर से आई है 

पतझड़ में बासंती छवि देती दिखलाई है
जवानी फिर से आई है 
 
थका थका हारा ये तन तो थोड़ा ढीला है 
देख फागुनी रंग हुआ पर यह रंगीला है 
मदमाते मौसम ने में ऐसा जादू डाला है 
खिलती कलियां देख होगया मन मतवाला है  
झुर्राए चेहरे पर फिर से छाई लुनाई है 
जवानी फिर से आई है 

स्वर्णिम आभा होती है जब सूर्य निकलता है 
फिर सोने का गोला लगता ,जब वह ढलता है 
तप्त सूर्य के प्रखर ताप को हमने झेला है 
नहीं बुढ़ापा ,आई उम्र की स्वर्णिम बेला है  
छाई सफेदी ,जीवन की अनमोल कमाई है  
जवानी फिर से आई है 
 
 जीवन भर मेहनत कर अपना फर्ज निभाया है 
 अब खुद के खातिर जीने का मौका आया है  
 जैसे-जैसे उमर मेहरबां होती जाती है 
 दिल की बस्ती जवां दिनोंदिन होती जाती है 
 दूध बहुत उफना अब जाकर के जमी मलाई है 
 जवानी फिर से आई है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 29 दिसंबर 2021

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 

मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं

जब सत्ता ने दामन त्यागा
तब मेरा लड़कीपन जागा 
प्रोढ़ा हुई पचास बरस की ,
तब लड़की वाला हक मांगा 
सूखी नदी, मगर वर्षा में ,
फिर से कभी उमड़ सकती हूं 
मैं लड़की हूं,लड़की सकती हूं

 जब शासन था, लूटा जी भर
 अब निर्बल, तो याद आया बल 
 नौ सौ चूहे मार बिलैया 
 ने थामा धर्मों का आंचल 
 जनता में भ्रम फैलाने को ,
 कितने किस्से गढ़ सकती हूं
 मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं

 मेरा भाई युवा नेता है 
 अल्प बुद्धि , इक्कावन का है 
 बूढ़ी मां है सपन संजोये,
 फिर से पाने को सत्ता है 
 जल गई रस्सी, पर न गया बल,
 अब भी बहुत जकड़ रखती हूं
 मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं 
 
हुई  खोखली, वंशवाद जड़ 
पर जनता भोली है,पागल 
सेवक असंतुष्ट पुराने 
चमचे नाव खे रहे केवल 
बोल बोलती बड़े-बड़े में ,
अभी बहुत पकड़ रखती हूं 
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 

मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
सबसे आगे बढ़ सकती हूं 

मेरा अगर ध्येय निश्चय है 
तो फिर मेरी सदा विजय है 
मैं उन्नति के उच्च लक्ष्य पर ,
अपने बल पर चढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं

सही राह है ,सोच सही है 
और लगन की कमी नहीं है 
मैं नारी हूं ,शक्ति स्वरूपा ,
निज भविष्य खुद गढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं 

शिक्षा ही मेरा जेवर है 
मेरे लिए खुल अवसर है
राहों की सारी बाधाएं , 
तोड़ में आगे बढ़ सकती हूं 
 मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 
 
है संघर्ष भरा यह जीवन 
तप कर अधिक निखरता कुंदन 
मुझ में बल है, बहुत प्रबल मैं,
शीर्ष पदों पर चढ़ सकती हूं 
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं 
सबसे आगे बढ़ सकती हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू

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