क्या जीवन का है यही अंत
छूटी सब माया, गया मोह,
जब टूट गया सांसो का क्रम
माटी होकर निर्जीव पड़ी,
कंचन काया का था जो भ्रम
खाली आये, खाली ही गये,
राजे, महाराजे, श्रीमंत
क्या जीवन का है यही अंत
ऊपर लकड़ी, नीचे लकड़ी ,
और बीच दबी निष्प्राण देह
देकर मुखाग्नि , फूंकेंगे,
जिनसे तुमको था अधिक नेह
तेरह दिन तक बस शोक रखा,
फिर जीवन का क्रम यथावंत
क्या जीवन का है यही अंत
सारा जीवन संघर्ष करो
पर जब आता अंतिम पड़ाव
चाहे राजा हो या फकीर
यह मौत न करती भेदभाव
सब होते राख, चिता में जल
हो दुष्ट ,कुटिल या महा संत
क्या जीवन का है यही अंत
मदन मोहन बाहेती घोटू
बहुत सुंदर रचना
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