जवानी फिर से आई है
पतझड़ में बासंती छवि देती दिखलाई है
जवानी फिर से आई है
थका थका हारा ये तन तो थोड़ा ढीला है
देख फागुनी रंग हुआ पर यह रंगीला है
मदमाते मौसम ने में ऐसा जादू डाला है
खिलती कलियां देख होगया मन मतवाला है
झुर्राए चेहरे पर फिर से छाई लुनाई है
जवानी फिर से आई है
स्वर्णिम आभा होती है जब सूर्य निकलता है
फिर सोने का गोला लगता ,जब वह ढलता है
तप्त सूर्य के प्रखर ताप को हमने झेला है
नहीं बुढ़ापा ,आई उम्र की स्वर्णिम बेला है
छाई सफेदी ,जीवन की अनमोल कमाई है
जवानी फिर से आई है
जीवन भर मेहनत कर अपना फर्ज निभाया है
अब खुद के खातिर जीने का मौका आया है
जैसे-जैसे उमर मेहरबां होती जाती है
दिल की बस्ती जवां दिनोंदिन होती जाती है
दूध बहुत उफना अब जाकर के जमी मलाई है
जवानी फिर से आई है
मदन मोहन बाहेती घोटू
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबसंत का जादू ही कुछ और है
Welcome to my New post- धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा