मां मां ही होती है
नौ महीने तक तुम्हें गर्भ में अपने ढोती है
मां तो मां ही होती है
जो तुमको गोदी में लेकर अपने आंचल में
छुपा तुम्हे, छाती से अपना दूध पिलाती है
तुम कितनी ही बार गिरो, वह तुम्हे उठाती है
पकड़ तुम्हारी उंगली चलना तुम्हें सिखाती है
तुम्हें पालने दुनिया भर के कष्ट झेलती है ,
खुद भूखी रहकर भी पहले तुम्हें खिलाती है अक्षर ज्ञान कराती है ,भाषा सिखलाती है कार्यकलाप सभी जीवन के तुम्हें सिखाती है
तुम्हें चैन से नींद आ सके, कुछ तकलीफ न हो तुम्हें सुलाती सूखे में, खुद गीली सोती है
वह तुम्हारी जननी है , मां , मां ही होती है
तुम्हारे पोषण को अपने सीने हल चलवा ,
एक दाने के कई हजारों दाने उपजाती
तुम्हें मिल सके ठंडी ठंडी हवा इसलिए वो, कितने वन उपवन अपनी छाती पर लहराती
वो कुदाल की चोटें सह सह कुवा खुदवाती,
ताकि शीतल और शुद्ध जल तुमको मिल पाए
अपनी माटी दे, तुम्हारा घर बनवाती है,
ताकि चैन से रहो तुम्हे कुछ मुश्किल ना आए
कई रसीले फल तुमको खाने को मिलते हैं,
एक बीज फल का अपनी छाती में बोती है
वो धरती मां ,मां ही है, मां मां ही होती है
जो खुद सूखा तृण खाकर भी दूध पिलाती है
वह भी पूजनीय है हमको ,गैया माता है
करती है हमको प्रदान धन-धान्य और वैभव अति प्रिय सबको लगती है वो लक्ष्मी माता है
जो हम को शक्ति देती है और रक्षा करती है, वंदनीय हम सब की है वह दुर्गा माता है
वीणा वादिनी ,सुर प्रदायिनी, सरस्वती माता
है संगीत सुरसरी और बुद्धि की दाता है
देना ही जिसकी प्रवृत्ति, वो माता कहलाती, संतानों के जीवन में जो खुशी संजोती है
लक्ष्मी सरस्वती या दुर्गा ,मां तो मां होती है
मदन मोहन बाहेती घोटू
बहुत सुन्दर, माँ की महिमा को प्रदर्शित करती अच्छी रचना , जय श्री राधे
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