चंदन
मुझको जड़ मात्र समझ कर के,
मत करो मूल्य का आलंकन
मैं दिखता हूं निर्जीव मगर,
भरपूर भरा मुझ में जीवन
मुझको तुम अगर जलाओगे
तो घर जाएगा महक महक
पानी में घिसकर लेप लगा,
उबटन बन कर दूंगा ठंडक
प्रभु के मस्तक और चरणों में,
मैं चढ़ता उनके पूजन में
मोहक खुशबू है भरी हुई,
तैलीय मेरे तन और मन में
विष भरे भुजंग लाख लिपटे,
होता ना मुझ पर कोई असर
हूं सूखा काष्ठ मगर चेतन ,
मैं चंदन, महकूं जीवन भर
मदन मोहन बाहेती घोटू
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