मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में,
रोज-रोज आ जाते थे तुम, अब क्यों रूठ गये सपने बोले ,तब पूरे होने की आशा थी ,
अब आने से क्या होगा, जब तुम ही टूट गये
एक उम्र होती थी जबकि मन यह कहता था,
ये भी कर ले वो भी कर ले सब कुछ हम कर ले आसमान में उड़े ,सितारों के संग खेल करें,
दुनिया भर की सब दौलत से हम झोली भर ले तब हिम्मत भी होती थी, जज्बा भी होता था, और खून में भी उबाल था, गर्मी होती थी
तब यौवन था, अंग अंग में जोश भरा होता,
और लक्ष्य को पाने की हठधर्मी होती थी
पास तुम्हारे आते थे हम यह उम्मीद लिए ,
तुम कोशिश करोगे तो हम सच हो जाएंगे
पर अब जब तुम खुद ही एक डूबती नैया हो ,
पास तुम्हारे आएंगे तो हम क्या पाएंगे
साथ तुम्हारा, तुम्हारे अपनों ने छोड़ दिया,
वो यौवन के सुनहरे दिन, पीछे छूट गए
मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में ,
रोज-रोज आ जाते थे तुम अब क्यों रूठ गए
मदन मोहन बाहेती घोटू
सपने भी बुढ़ापे में साथ छोड़ देते हैं । सच ही लग रहा ।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब । लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है सपनों की कोई उम्र नहीं होती ,अगर इरादे बुलंद हो तो इन्हें किसी भी उम्र में पूरा किया जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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