हवा हवाई
हवाओं से मेरा रिश्ता बहुत ज्यादा पुराना है
जन्म से ही शुरु मेरी सांसो का आना जाना है
जमाने की हवा ऐसी लगी थी मुझको यौवन में
हवा में उड़ता रहता था जब तलक जोश था तनमें
नजर उनसे जो टकराती मिलन की बात थी आती
गति सांसों की बढ़ जाती धड़कन तेज हो जाती
हुई शादी, हवा निकली, गृहस्थी बोझ था सर पर
हवा में उड़ न पाते थे, गए थे कट, हमारे पर
जिंदगी में कई तूफान, आए और ठहराये
हवाओं से मेरे रिश्ते ,तभी से और गहराये
बुढ़ापे में हवा बिगड़ी, जिंदगी हो गई पंचर
गुजारा वक्त करते हैं अब ठंडी आहें भर भर कर
जिंदगी भर की ये यारी, हवा से जिस दिन टूटेगी
धड़कने जाएंगी थम, चेतनायें तन की रूठेंगी
हवाई थे किले जितने,हो गए ध्वंस, सबके सब
विलीन होकर हवा में ही, हमारा अंत होगा अब
मदन मोहन बाहेती घोटू
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