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मंगलवार, 26 जनवरी 2016

परिंदे

                    परिंदे

वो परिंदे ,राजपथ पर ,उड़ते थे जो शान से ,
आजकल मेरी गली में ,नज़र वो आने लगे  है
चुगा करते थे कभी जो ,चुन चुन के ,मोती सिरफ़ ,
कुछ भी दाना फेंक दो ,वो बेझिझक खाने लगे है 
सुना है कि कोई जलसा ,होने वाला है वहां ,
सुरक्षा की व्यवस्थाएं ,चाक और चौबंद  है
हर तरफ से ,हर किसी पर रखी जाती है नज़र,
इसलिए उनका वहां पर ,हुआ उड़ना बंद है
ये भी हो सकता है या फिर 'इलेक्शन 'हो आ रहा ,
करो जन संपर्क तुम,ऐसा मिला  आदेश हो
'ख़ास' से वो 'आम'बन कर ,चाहते हो दिखाना ,
इसी चक्कर में बदल  ,उनने  लिया निज भेष हो
बने खबरों में रहें ,टी वी में  और  अखबार  में ,
कहीं भी ,कुछ हादसा हो ,दौड़ कर  जाने  लगे है
मगर उनकी असलियत सबकी समझ में आ गयी ,
जो कि पिछले कई वर्षों से, गए  उनसे ठगे  है 
फिर भी देखो ,हर तरफ ,हर गली में ,हर गाँव में,
जिधर देखो ,उस तरफ ,वो आज मंडराने  लगे है
 वो परिंदे,राजपथ पर ,उड़ते थे ,जो शान से ,
आजकल मेरी गली में ,नज़र वो आने  लगे  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ की पीड़ा

                      माँ की पीड़ा              

बेटे ,जब तू रहा कोख में ,बहुत सताया करता था
मुझको अच्छा लगता था जब लात चलाया करता था
और बाद में ,लेट पालने में,जब भरता  किलकारी
जैसे साईकिल चला रहा ,लगती थी ये हरकत प्यारी
या फिर मेरी गोदी में चढ़,जब जिद्दी पर आता था
बहुत मचलता था ,रह रह कर,मुझ पर लात चलाता था
सोते सोते ,लात चलाने की, भी  थी ,आदत तेरी
बार बार तू ,हटा रजाई , कर देता  आफत   मेरी
तेरी बाल सुलभ क्रीड़ाएं, बहुत मोहती थी जो मन
नहीं पता था ,एक दिन ऐसे ,उभरेगी वो आफत बन
कभी न सोचा ,लात मारना ,ऐसा   रंग  दिखायेगा
लात मार कर ,अपने घर से ,एक दिन मुझे भगायेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



अपहरण

                           अपहरण

मैंने थाने में लिखाई  ये रपट , चार  दिन से  हुआ सूरज  लापता
दरोगा ने मुझसे ये दरयाफ्त की ,अकेला या गया कुछ लेकर, बता
मैंने बोला' क्या बताऊँ तभी से ,'धूप 'भी गायब है,मन में क्लेश है
दरोगा बोले,नहीं गुमशुदाई ,अपहरण का ये तो लगता  केस  है
अच्छा ये बतला ,उमर क्या धूप की,कहीं नाबालिग तो ना थी छोकरी
कब से दोनों का था चक्कर चल रहा ,और कहाँ था ,सूर्य करता  नौकरी
फिरौती का कहीं तेरे पास तो,कहीं से कुछ फोन तो  आया  नहीं
मैंने बोला ,नहीं,पर उस रोज से ,नज़र मुझको आ रही 'छाया'कहीं
दरोगा जी बोले 'तू मत कर फिकर ,झेल दो दो लड़कियां ना पायेगा
एक मुश्किल से संभलती ,दो के संग,परेशां हो लौट खुद ही आएगा '

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 20 जनवरी 2016

भुनना

        भुनना

हमने थोड़ी करी तरक्की ,वो जल भुन  कर खाक हो गए
थोड़े नरम ,  स्वाद हो जाते ,पर वो तो गुस्ताख़ हो  गए
कड़क अन्न का एक एक दाना ,भुनने पर हो जाय मुलायम
स्वाद मूंगफली में आ जाता ,उसे भून जब  खाते  है हम
मक्की दाने सख्त बहुत है,ऐसे  ना खाए  जा सकते
बड़े प्रेम से सब खाते जब ,भुन  कर'पोपकोर्न' वो  बनते
जब भी आती नयी फसल है ,उसे भून कर हम है खाते
चाहे लोढ़ी हो या होली ,खुश  होकर त्योंहार  मनाते
होता नोट एक कागज़ का ,मगर भुनाया जब जाता है
चमकीले और खनखन करते ,सिक्कों की चिल्लर लाता है
जिनकी होती बड़ी पहुँच है ,उसे भुनाया  वो करते है
लोग भुनाते  रिश्तेदारी  ,मौज  उड़ाया  वो करते है
भुनना ,इतना सरल नहीं है, अग्नि में सेकें जाना  है
लेकिन भुनी चीज खाने का ,हर कोई ही दीवाना  है
गली गली में मक्की भुट्टे ,गर्म और भुने मिल जाते है
शकरकंदियां , भुनी आग में ,बड़े शौक से सब खाते  है    
ना तो तैल ,नहीं चिकनाई,अन्न आग में जब भुनता है
होता 'क्लोस्ट्राल फ्री' है,और स्वाद  दूना  लगता  है
लइया ,खील ,भुनो चावल से ,लक्ष्मी पर परसाद चढ़ाओ
है प्रसाद बजरंगबली का ,भुने चने ,गुड के संग  खाओ
औरों की तुम देख तरक्की ,बंद करो अब जलना ,भुनना
आगे बढ़ने का उनसे तुम,सीखो  सही रास्ता  चुनना
अगर आग में अनुभवों की ,भुन कर तुम सके जाओगे
बदलेगा व्यक्तित्व तुम्हारा ,सबके मन को तुम भाओगे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चने से बनो

           चने से बनो

चने को चबाना ,बड़ा यूं तो  मुश्किल,
मगर भून लो ,स्वाद आये  करारा
चने को दलों तो ,बने दाल  प्यारी ,
अगर पीसो ,बनता है ,बेसन निराला 
ये  बेसन कि जिससे ,बनाते पकोड़े,
कभी भुजिया बनती या आलूबड़े है 
कभी ढोकला है ,कभी खांडवी है ,
कभी गांठिया है ,कभी फाफडे है
बनाते है कितने ही पकवान इससे ,
कभी बेसन चक्की,कभी बूंदी प्यारी ,
उसी से ही बनते है बेसन के लड्डू ,
कितनी  ही प्यारी ,मिठाई निराली
अगर बनना है कुछ ,चने से बने हम,
हमें सिकना होगा या पिसना पड़ेगा
तभी बन सकेंगे ,मिठाई से प्यारे ,
तभी प्यार लोगों का ,हमसे  बढ़ेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जो माँ का प्यार ना मिलता

         जो माँ का प्यार ना मिलता

जो माँ  का प्यार ना मिलता ,तो हम जो हैं ,वो ना होते
पिता की डाट ना  पाते ,तो हम जो हैं ,वो ना होते
हमें  माँ ने  ही पैरों  पर,खड़े होना सिखाया है
हमारी थाम कर ऊँगली ,सही रस्ता दिखाया है
आये जब आँख में आंसूं ,तो आँचल से  सुखाया है
सोई गीले में खुद,सूखे में ,पर हमको सुलाया  है
जरा सा हम टसकते थे ,तो वो बेचैन  होती  थी
हमें तकलीफ होती थी ,दुखी होकर वो रोती  थी
पिलाया दूध छाती से ,हमें पाला ,किया पोषण
रखा चिपटा के सीने से ,हमारा ख्याल रख हर क्षण
पुष्प ममता का ना खिलता ,तो हम जो है ,वो ना होते
जो माँ का प्यार ना मिलता ,तो हम जो है ,वो ना होते 
 पिताजी प्यार करते पर ,अलग अंदाज था उनका
डरा करते से हम उनसे और चलता  राज था उनका
वो बाहर सख्त नारियल थे,मगर अंदर मुलायम थे
बड़ा था संतुलित जीवन ,महकते जैसे चन्दन थे
उन्ही का आचरण ,व्यवहार ,हरदम कुछ सिखाता था
उन्ही का सख्त अनुशासन ,भटकने से बचाता  था
उन्होंने धर्म ,धीरज की ,हमें शिक्षा  सिखाई  थी
लक्ष्य पाने को जीवन का ,राह उनने  बताई  थी
अगर वो पाठ ना पाते ,तो हम जो है ,वो ना होते
पिता की डाट ना पाते ,तो हम जो है ,वो ना होते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'             
             
 


वाह वाही

         वाह वाही

मैंने कुछ अर्ज किया ,तुमने वाह वाह किया ,
तबज्जो जब कि दी बिलकुल भी नहीं गैरों ने
बताना सच कि तूने दोस्ती निभाई सिरफ़ , 
या असल में भी था , दम कोई  मेरे  शेरों  में
ये तेरी तारीफे ,दुश्मन मेरी बड़ी निकली ,
तेरी वाह वाही ने  , रख्खा मुझे  अंधेरों में
पता लगा ये ,निकल आया जब मैं  महफ़िल से ,
मुशायरा लूट लिया ,और ही  लुटेरों ने

घोटू 

नाम कम्बल होता है

           नाम कम्बल होता है

लड़ाई लड़ता है सैनिक,जान पर खेल कर अपनी ,
मगर जब जीत होती है ,नाम 'जनरल 'का होता है
रोज खटता है ,मेहनत कर ,कमाई मर्द करता है ,
मगर घर को चलाने में ,नाम औरत  का होता  है
सिरफ़ ये रोकते है ,गर्मी बाहर जा नहीं सकती ,
मगर इस पहरे दारी का ,उठाते फायदा पूरा ,
हमारे जिस्म की गर्मी ,हमीं को गर्म  रखती है,
मगर सरदी बचाने में  ,नाम कम्बल का होता है 

     मदन मोहन बाहेती 'घोटू'       

शिकवे -शिकायत

           शिकवे -शिकायत

मैंने ऐसा क्या कहा और तुमने ऐसा क्यूँ कहा ,
               एक दूजे को यूं ही , इल्जाम हम देते  रहे
इसी शिकवे शिकायत में उमर सारी काट दी ,
             पीठ खुद की थपथपा ,इनाम हम  देते  रहे
देखते एक दूजे की जो खूबियां,अच्छाइयां,
          दो घड़ी मिल बैठते और बात करते प्यार की
होता होली  मिलन हर दिन,दिवाली हर रात को,
         जिंदगी कटती हमारी , रोज  ही  त्योंहार  सी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   
            

शनिवार, 16 जनवरी 2016

देशी खाना

       देशी खाना

रोज रोज तू  नूडल खाये,बर्गर खाये, पीज़ा
जंक फ़ूड पर आज देश का ,बच्चा बच्चा रीझा
        कभी खा देशी खाना लाल
       बढ़ाये सेहत ,स्वाद  कमाल
सोने सी मक्का की रोटी ,सौंधा सरसों का साग
गुड के संग तू खा ले बेटा ,जाग जाएंगे भाग
        साथ में तड़के वाली दाल
         बढ़ाये सेहत ,स्वाद कमाल
मीठा गुड की गरम लापसी, डाल ढेर सा  घी
एक बार खा,बार बार फिर ,ललचायेगा जी
        साथ में गरम कढ़ी तू डाल
         बढ़ाये सेहत, स्वाद  कमाल
सोंधी सोंधी खुशबू वाली ,प्यारी बाटी ,दाल
और साथ में चाख चूरमो ,घी से माला माल
         साथ में हो चटनी की झाल
          बढ़ाये सेहत स्वाद  कमाल
महाराष्ट्र का झुनका भाकर ,दक्षिण, इडली,डोसा 
 बहुत भायेगा तुझे बिहारी, प्यारा  लिट्टी चोखा
         और फिर रसगुल्ला, बंगाल
           बढ़ाये सेहत ,स्वाद कमाल
उबले ताजे गन्ना रस में ,चावल वाली खीर
सबका मन सदियों से मोहे,क्या रांझा ,क्या हीर
         स्वाद की इसके नहीं मिसाल
          बढाए सेहत, स्वाद  कमाल
नयी उमर की नयी फसल तुम,हम है बीते कल के
देख आज भी फौलादी है,हम भी उसी  नसल के
          हवा पश्चिम की,तुम  बेहाल
           बदल लेगा तू अपनी चाल 
          कभी खा देशी खाना  लाल 
           बढ़ाये सेहत ,स्वाद  कमाल  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
             

 
एक बार खा ,याद आएगी ,तुझे देश की मिट्टी
              
                 

उलझन

        उलझन

बाले , तेरे बाल जाल में , उलझ  गए  है  मेरे  नैना
इसीलिये श्रृंगार समय तुम उलझी लट सुलझा मत लेना
 अगर लगा कर कोई प्रसाधन ,धोवो और संवारो जब  तुम,
बहुत मुलायम और रेशमी ,होकर सभी निखर  जाएंगे
इन्हें सुखाने,निज हाथों से ,लिए तोलिया ,जब झटकोगी ,
एक एक कर ,जितने भी है,मोती  सभी ,बिखर  जाएंगे
कुछ तो गालों को चूमेंगे ,कुछ  बिखरें  तुम्हारे  तन पर ,
किन्तु बावरे मेरे नैना ,इन्हे फिसलने, तुम देना मत
क्योकि देर तक साथ तुम्हारा ,इन्हे उलझने में मिलता है ,
कंचन तन पर फिसल गए तो ,बिगड़ जाएगी इनकी आदत
 ये भोले है,ये क्या जाने ,उलझन का आनंद  अलग है ,
कोई उलझ उलझ कर ही तो,अधिक देर तक ,रहता टिक है
चुंबन हो कोमल कपोल का, या सहलाना कंचन काया ,
होता बहुत अधिक रोमांचक ,लेकिन वह सुख ,बड़ा क्षणिक है
इसीलिये जब लट  सुलझाओ ,अपने मन की कंघी से तुम,
इनको जैसे तैसे करके ,अपने पास रोक तुम लेना
बाले,तेरे बाल जाल  में ,उलझ गए है मेरे नैना
इसीलिये  श्रृंगार समय तुम ,उलझी  लट सुलझा मत लेना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

एक अरसा गुजर गया

     एक अरसा गुजर गया

सोने की लालसा ,
आग की सुनहरी लपटों की तरह ,
इस तरह फ़ैल रही है ,
कि आदमी के जागने और सोने में,
कोई अंतर ही नहीं रह गया है 
नैतिकता ,जल रही है,
और रह रह कर ,
काले धुवें का गुबार ,
 वातावरण को  
इस तरह आच्छादित कर रहा है,
कि  मुझे स्वच्छ नीला आसमान  देखे ,
एक  अरसा  गुजर गया है

घोटू   

साकार-निरंकार

     साकार-निरंकार

मैं कार हूँ
आविष्कार हूँ
चलायमान हूँ,
चमत्कार हूँ
      मैं कार हूँ
      विकार हूँ
      चाटुकार हूँ
      बलात्कार हूँ  
मैं कार हूँ
अहंकार हूँ
हुंकार  हूँ
हाहाकार हूँ
       मैं कार हूँ
       ओंकार हूँ
       जगती का कारक ,
       निरंकार हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 9 जनवरी 2016

हमसफर न हुए

चंद कदम भर साथ तुम रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

पग पग वादा करते ही रहे,
होकर भी एक डगर न हुए ।

तेरी बातें सुन हँसती हैं आँखें,
खुशबू से तेरी महकती सांसे,

दो होकर भी एक राह चले थे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

एक ही गम पर झेल ये रहे,
होकर भी एक हशर न हुए ।

फिर से तेरी याद है आई,
पास में जब है इक तन्हाई,

भ्रम में थे कि हम एक हो रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

अच्छा हुआ जो भरम ये टूटा,
होकर भी एक नजर न हुए ।

दिल में दर्द और नैन में पानी,
अश्क कहते तेरी मेरी कहानी,

यादें बन गये वो चंद लम्हें,
संग चल कर हमसफर न हुए,

धरा रहा हर आस दिलों का,
होकर भी एक सफर न हुए ।

-प्रदीप कुमार साहनी

शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

तमाशा सब देखेंगे

          तमाशा सब देखेंगे
ऐसा क्या था ,जिसके कारण ,थे इतने मजबूर
आग लगा दिल की बाती  में,भाग गए तुम दूर ,
       पटाखा  जब फूटेगा ,तमाशा सब देखेंगे 
मन की सारी दबी भावना ,राह हुई अवरुद्ध
इतना ज्यादा भरा हुआ है ,तन मन में बारूद
एक हल्की चिंगारी भी ,विस्फोट करे भरपूर
        पटाखा जब फूटेगा ,तमाशा सब देखेंगे
इतने घाव दे दिए तुमने ,अंग अंग में है पीर
लिखी विधाता ने ये कैसी ,विरहन की तक़दीर
मलहम नहीं लगा तो ये बन जाएंगे नासूर
           बहे पीड़ा की लावा  ,तमाशा सब देखेंगे
तुमने  झूंठी प्रीत दिखा कर,करा दिया मदपान
भरे  गुलाबी  डोर आँख में  ,होंठ  बने  रसखान
जब भी पान रचेगा ला कर ,इन होठों पर नूर ,
           बदन सारा महकेगा ,तमाशा सब देखेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

वो माँ है

          वो माँ है

इस दुनिया में ,सबसे ज्यादा उच्चारित जो नाम -वो माँ है
वो देवी जिसके चरणो में  बसे  हुए  सब  धाम  - वो माँ है
वातसल्य  से भरी हुई जो अनुपमा है
जो स्नेह की बहती गंगा और यमुना है
ममता का जिन आँखों से झरता झरना है
दिन में  सूरज और रात में    चन्दरमा है
जिसका अपना तेज और अपनी गरिमा है
अपरम्पार हुआ करती जिसकी महिमा है
संतानो पर प्यार लुटाया  करती जो  अविराम -वो माँ है
इस दुनिया में,सबसे ज्यादा ,उच्चारित जो  नाम - वो माँ है 
वो ही लक्ष्मी ,सरस्वती है ,वही उमा है
वो ही विष्णु है ,शंकर है और ब्रह्मा  है 
मंगलदायिनी,शक्तिरूपिणी और क्षमा है
सदभावों  की पूजनीय जीवित  प्रतिमा  है
अनुपम और अलौकिक है जो मनोरमा है 
भ्रमण तीर्थ का जिसकी पावन परिक्रमा है
जननी हमारी ,हमपर ,जीवन भर करती  अहसान -वो माँ है
इस दुनिया में सबसे ज्यादा उच्चारित जो नाम  -वो माँ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आज का देहली का मौसम

          आज का देहली का मौसम

थका थका सा दुखी लग रहा सूरज पीला,
  अलसाई  अलसाई सी नज़रों से देखे
छुपा हुआ है ओढ़ घने कोहरे की चादर ,
ऐसा लगता 'धूप ' गई है अपने  मैके
शायद रूठ गई मौसम की बेरहमी से ,
या फिर शीत  हवाएँ उसकी सौत बन गई
देखें,कब तक ,कौन जीत पायेगा,किसको,
ऐसी ही जिद ,इन दोनों के बीच ठन  गयी
लेकिन रिमझिम बरसी फिर बारिश की बूँदें ,
जैसे  हो सन्देश सुलह  का ,लेकर  आई
कोहरा छंटा ,मिट गया झगड़ा उन दोनों का,
सूरज चमका ,धूप सुनहरी ,फिर मुस्काई

घोटू

बुधवार, 6 जनवरी 2016

एक प्रश्न

        एक प्रश्न

हे राम,
रावण ने छद्म रूप धर,
तुम्हारी पत्नी  को चुराया
अपने पुष्पक विमान में बिठा ,
लंका ले आया
पर उसे अपने राजमहल में नहीं
रखा दूर ,अशोकवाटिका में कहीं
उसको धमकाया ,ललचाया ,
पर उसे छुआ तक नहीं
वह लंकापति ,जब उसको हर सकता था
उसके साथ जबरजस्ती भी कर सकता था
पर वो भले ही दानव था
उसमे थी मानवता
पर तुमने उसे दंड दिया
उसका  संहार किया
और आज ,मानव का रूप लिए ,
कोई दानव  ,बलात्कारी
सड़क से लड़की को अगवा कर ,
पार कर जाए ,नृशंसता की हदें सारी
और वो लड़की ,आखरी दम  तक लड़े
वो बलात्कारी पकड़ा जाए
और उस पर मुकदमा चले
सालों बाद ये निर्णय आये
कि क्योंकि वह दरिंदा ,
बालिग़ नहीं था
इसलिए उसे सजा नहीं दे सकती ,
देश की क़ानून व्यवस्था
उसे सुधारगृह भेजा जाए
तो क्या उस वहशी दरिंदे को,
 सुधारने की जरूरत है  या ,
देश के क़ानून को सुधरने की जरूरत है
क्या रामराज्य के सपने दिखनेवाली ,
सरकार को ,कुछ सोचने की जरूरत है
हे राम,सच बतलाना ,
ऐसा होता तो तुम क्या निर्णय लेते ?
रावण नाबालिग होता ,
तो क्या तुम उसे छोड़ देते ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


सर्दी -गर्मी

         सर्दी -गर्मी

सर्दी क्या आई ,गर्मजोशी आपकी गयी ,
होता है मुश्किलों से ही दीदार मयस्सर
ऐसा छुपा के रखते हो तुम अपने आप को,
स्वेटर है,स्वेट शर्ट है ,और अंदर है इनर
बिस्तर पे भी पड़ता  है हमें ,तुमको ढूंढना ,
ऐसी  रजाई छाई रहती जिस्मो जिगर पर
छूना तुम्हारा जिस्म भी मुश्किल अब हो गया,
अब तो बर्फ की सिल्ली से तुम हो गए डियर
आती है याद गर्मीयो की  रातें वो प्यारी ,
खुल्ला खुल्ला सा रूप था वो ख़ास तुम्हारा
पंखे की तरह घूमता था बावरा सा  मैं ,
होता था सांस सांस में  अहसास  तुम्हारा
खुशबू से भरे तन पे रहता नाम मात्र को ,
वो हल्का,प्यारा ,मलमली  ,लिबास तुम्हारा
ऐ.सी. की ठंडक में भी बड़ी लगती  हॉट थी ,
आता है याद रह रह वो रोमांस तुम्हारा 

घोटू

समर्पित कार्यकर्ता

    समर्पित कार्यकर्ता 

समर्पित कार्यकर्ता ,जनसेवक महान
सीधा सादा व्यक्तित्व,यही उनकी पहचान
यदि मोहल्लेवाले किसी ने भी,
कोई आयोजन किया है
तो उनका प्राकट्य ,
एक सहज प्रक्रिया है
यहाँ उनकी जनसेवा की भावना ,
प्रशंसनीय होती है
कुर्सी ,जाजम बिछाने से लेकर ,
जलपान की व्यवस्था के समापन तक ,
उनकी व्यस्तता ,दर्शनीय होती है
कैसे भी आगे की कुर्सी हथियाना,
कोई भी फोटो के अपनी गर्दन घुसाना ,
जलपान में दिए जानेवाले ,
खाद्यपदार्थों के स्वाद की उत्कृष्टता का,
पूर्व परीक्षण कर ,ये देते सर्टिफिकेट है
और समापन के बाद ,
बची हुई खाद्यसामग्री को सलटाने की ,
समुचित व्यवस्था ,
उनके सामाजिक कर्तव्यों में एक है
वो हर समारोह में ,मंडराते पाये जाते है
हर फोटो में नज़र आते है
और अपनी सेवामयी ,कार्यकुशलताके कारण,
मोहल्ले में अच्छी तरह पहचाने जाते है
वो एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्त्ता है
उनके बिना हर कार्यक्रम ,अधूरा  लगता है
वो स्वयं सेवक बन ,स्वयं की सेवा का भी ,
रखते बड़ा ध्यान है
ऐसे समर्पित कार्यकर्ता पर ,
हमारे पूरे मोहल्ले को अभिमान है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

दास्ताने मख्खी

         दास्ताने मख्खी

एक मख्खी ,
जो नंगे पैरों ,
गाँव की गलियों में खेली थी
जिसकी बीसियों सहेली थी
एक दिन खेलती खेलती ,
एक  खड़ी हुई कार में गई चली  
खुशबूमय स्वच्छ वातावरण देख ,
 हो गई बावली
नरम नरम सीटों पर ,
बैठ कर इतराई
उछली,कूदी,सहेलियों ने बुलाया ,
बाहर ना आयी
अचानक कार चली
मच गयी खलबली
संकुचित सी जगह में ,
इधर उधर भागी
पर रही अभागी
परेशान कार के मालिक ने ,
थोड़ा सा शीशा उठा भर दिया
और बीच सड़क पर ,
उसे कार से बाहर कर दिया
अब वह बीच जंगल में ,
अकेली भटक रही है
कोई साथी संगी नहीं है
बेचारी ,जो दीवानी थी ठाठ की
ना घर की रही ,न घाट  की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

घोटू जी पार्टियों में ,पीते नहीं है पानी

  घोटू जी पार्टियों में ,पीते नहीं है पानी

कुछ मॉकटेल पीते, कुछ कॉकटेल पीते ,
कुछ फ्रेश ज्यूस हो तो फिर बात है सुहानी
हो दूध की  कढ़ाही ,तो तीन चार कुल्हड़ ,
सात आठ गोलगप्पे  भर खट्टामीठा पानी
कुछ सूप पिया करते या गर्म गर्म कॉफी,
कुछ रायता दही का या दाल फिर मखानी
कुछ रसमलाई का रस,कुछ जमी हुई कुल्फी ,
घोटू जी पार्टियों में ,पीते नहीं है पानी

घोटू

गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

उसकी कुछ मजबूरी होगी

          उसकी कुछ मजबूरी होगी
 
तुम्हे शिकायत भूल गई औलाद तुम्हे है
भूले भटके से  ही  करती   याद तुम्हे  है
हो सकता है  उसकी कुछ मजबूरी  होगी
तभी बनाई उसने  तुमसे  दूरी   होगी
अब तक वो तुम्हारा ,प्यारा ,मृगछौना था
जो पुलकित करता  घर का कोना कोना  था
बंधा हुआ था  तुम्हारे   ममता   बंधन  में
बिखराया करता था खुशियां घर ,आँगन में
बड़ा हुआ कुछ जिद्दी और स्वच्छंद,मचलता
तुम्ही ने तो दूर हटाने , यह  उच्श्रृंखलता
ख़ुशी ख़ुशी  से बाँधा था गृहस्थ बंधन में
जाने क्या क्या ,सुन्दर सपन सजाये मन में
प्यारी सी पायल खनकाती ,बहू  नवेली
और बाद में ,पोते  की  प्यारी  अठखेली
शायद  यहीं गलत सा था कुछ तुमने आँका
ये गठबंधन ,बन जाएगा ,ऐसा   टांका
जो कि काँटा बन कर पीर तुम्हे ही देगा
तुमसे  ,तुम्हारा प्यारा बेटा  छीनेगा
जिस पर इतना प्यार लुटाया ,पाला ,पोसा
जिस पर तुमने ,इतना ज्यादा किया भरोसा ,
इतने वर्षों ,किया कराया ,व्यर्थ जाएगा
चार दिनों में ,पत्नी संग पा ,बदल जायेगा
सागर सीना चीर ,उठे है दल ,बादल   के
जब भी पड़े दबाब ,वहीँ उनका जल  छलके
सागर ,जनक बादलों के ,इसमें न जरा शक
रहता नहीं बादलों पर उनका कोई हक़
करता उन्हें दबाब नियंत्रित और  हवायें
जो कि घुमाती रहती उनको दांयें,बाएं
नीर भरे वो पर अब  बेबस से लगते है
अरे सूर्य को सूर्य जनित ,बादल  ढकते है
होता ये ही हाल  पति का  सम्मोहन से 
शक्तिहीन वह होता ,पत्नी के दोहन   से
होता दूध पिलाया सारा  ,असरहीन है
पूर्ण रूप से होता वह पत्नी  अधीन  है
जिसके साथ बिताना उसको जीवन सारा
तो फिर ख्याल रखे उसका या फिर तुम्हारा
शेष तम्हारा जीवन कितना,चंद  घड़ी है
उसके आगे , उसकी लम्बी  उमर  पडी है
रोज रोज की किच किच और झगड़े बच कर
अपने ढंग से चाह  रहा है,वो जीना  गर
तो जीने दो ,तुम भी अपने ढंग से खेलो
उमर बची है जितनी भी,पूरा रस ले लो
सच्चे दिल से सदा रही है  चाह तुम्हारी
ख़ुशी ,स्वस्थ और  सुखी रहे  औलाद तुम्हारी 
 चाह  सुखी जीवन की उसकी पूरी  होगी
तभी बनाई उसने तुम से  दूरी होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 





नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये 'दोहज़ारन ' अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये 'दो हज़ारन' अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये ' दोहज़ारन' अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये बीस हज़ारो अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये बीस हज़ारो अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये बीस हज़ारो अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

जमीन से जुडी चीजें

        जमीन से जुडी चीजें

जो चीजें जमीन से जुडी हुई होती है ,
जमीन से जुड़े लोगों के बहुत काम आती है
दुःख ,तकलीफ में ,हमेशा साथ निभाती है
पेट भरती है,प्यास बुझाती है
और जमीन से ऊपर उठे हुए ,
लोग ही नहीं,वृक्ष और फूल और फल,
जो अपनी ऊंचाई के कारण बड़े इतराते है
ये भूल जाते है
कि क्योंकि उनकी जड़ें जमीन से जुडी हुई है ,
इसीलिये ही वो फूल फल पाते है
जल जीवन होता है
वह भी जमीन से जुड़ा होता है
भले ही आसमान से बरसता है 
पर पहले जमीन से जुड़ता है
और फिर दुनिया की प्यास बुझाता है
 इंसान के हर काम में ,
सुबह से शाम आता है   
जमीन से जुडी हुई सब्जियां ,
आलू और प्याज सब है
हमेशा सस्ती और सुलभ है
भले ही दालों के दाम आसमान  चढ़ जाए
भले ही मंहगाई कितनी भी जाए
गरीबो के भोजन में हमेशा साथ निभाये
जमीन से जुडी अदरक महान है
और दबी हुई लहसुन ,गुणों की खान है
और अच्छे अच्छे रईसो के,
बावर्ची खाने की शान है
जमीन से जुडी हुई हल्दी ,
न केवल भोजन का स्वाद बढ़ाती है
वरन गौरी के हाथ भी पीले करवाती है
जब शरीर पर लगती है ,रूप निखार देती है
उसका जीवन संवार देती है
और जमीन से जुडी हुई मूंगफली ,
गरीबों की बादाम है
इसका अपना स्वाद है,अपनी शान है
धरती हमारी माता है
इसलिए इससे जुडी हुई चीजों में ,
मातृत्व का गुण समाता है
जमीन से जुडी हुई अधिकतर सब्जियां,
ज्यादा टिकाऊ होती है,जैसे माँ का प्यार
आलू,प्याज,अदरक,लहसुन ,आदि आते है पूरे साल
बाकी सब सब्जिया मौसमी कहलाती है 
और ऋतु के अनुसार आती जाती है 
जमीन से जुडी चाहे मूली सफेद हो या गाजर लाल है
पर सब की सब  ढेर सारे गुणों का भण्डार है
इसलिए जो लोग धरती ,
याने अपनी माँ  से जुड़े रहते है  
लोग उन्हें धरती का लाल कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बाप का माल

             बाप का माल

भगवान ने पहले सूर्य,चन्द्र  को बनाया ,
सुन्दर  पहाड़ों,वृक्षों और प्रकृती का सृजन किया 
नदियां बनाई ,हवाये चलाई ,
और फिर जीव ,जंतु और इंसान को जनम दिया
हमने सूरज के ताप से बिजली चुराई
हवाओं के वेग से भी बिजली बनाई
नदियों का प्रवाह से वद्युत का उत्पादन किया
प्रकृती की हर सम्पति  का दोहन किया
हम हवा से ऑक्सीजन चुराते है
तब ही तो सांस ले पाते है
धरा की छाती को छील ,अन्न उपजाते है
तब ही जीवन चलाते है
सूरज की धूप से गर्मी और रोशनी चुराते है
जमीन की रग रग में बहते पानी से प्यास बुझाते  है
प्रकृति की हर वनस्पति और फलों पर,
अपना  अधिकार रखते है
और तो और ,अन्य जीवों को भी पका कर ,
अपना पेट भरते है
हम सबसे बड़े चोर है
 और खुले  आम चोरी करते है
और उस पर तुर्रा ये ,
किसी से नहीं डरते है
और इस बात का हमारे मन में,
जरा भी नहीं मलाल है
क्योंकि हम भगवान की संतान है ,
और ये हमारे बाप का माल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

 सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

मैंने अपने दिल के कोरे,
 कैनवास पर सच्चे मन से
सुंदर सी एक तस्वीर बनाई थी ,
बड़ी लगन से
चाँद को चूमने की आशा लिए ,
एक मासूम विहंग
अपने  पंख फैलाये ,गगन में,
उड़ रहा था स्वच्छंद
मैंने उस चित्र को ,
सोने की फ्रेम मे जड़वा ,
अपने ड्राइंग  रूम में टांगा
यह सोच कर कि इससे ,
हो  जाएगा सोने में सुहागा
पर मैं  कितना गलत था
आज मुझे वो पंछी ,
अपने पंख पसारे ,
आसमान में उड़ता हुआ नहीं ,
सोने की फ्रैंम के पिंजरे में ,
छटपटाता नज़र आता  है
कई बार सोने की फ्रेम में फंस ,
जीव कितना मजबूर हो जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

      ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

शिराओं में ,उच्चस्तरीय रक्तचाप
बातों में मधुमेह मयी  मिठास
आँखों में मोतियाबिंद बिराजमान
सर पर चांदी से केशो की शान
स्वर्ण के प्रति मोह इतना कि ,
स्वर्ण को भी भस्म करके खाते  है
लोह तत्व की अल्पता के कारण ,
हर किसी से लोहा लेने को तैयार हो जाते है
प्रकृती से प्रेम इतना कि सर्दियों में भी,
'बसंत कुसुमाकर रस'और  'चंद्रप्रभा वटी 'का
 लेते है  आनंद
ऊंचे लोग ,ऊंची पसंद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेस बुक स्टेटस

     फेस बुक स्टेटस

विदेश बसे  बेटे से बाप ने फोन किया ,
बेटा कई दिनों तुमने कोई समाचार नहीं दिया
सप्ताह में कम से कम
एक बार तो फोन कर लिया करो तुम
बेटा बोला 'पापा ,चिंता मत किया करो
फेसबुक पर रोज मेरा स्टेटस देख लिया करो
और आप की  फेसबुक पर भी ,
यदि आपका स्टेटस' अप टू  डेट'रहेगा
तो हमको भी ,आपके बारे में ,
सब पता लगता रहेगा
पिता के अंतर्मन ने ,बुझे स्वर में कहा,बेटा
ये बूढ़ा  जब  अचानक  मरेगा
तो स्टेटस कौन 'अप टू डेट' करेगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम वो पुराना माल है

               हम वो पुराना माल है

चूरमे की तरह वो ,मीठी,मुलायम,स्वाद है ,
 और बाटी की तरह ,मोटी  हमारी खाल है
वो है जूही की कली ,प्यारी सी खुशबू से भरी,
फूल हम भी मगर  गोभी सा हमारा हाल है
वो है छप्पन भोग जैसी,व्यंजनों की खान सी ,
और हम तो सीधे सादे ,सिरफ़ रोटी दाल है
सारंगी से सुर सजाती है मधुर वो सुंदरी ,
हम पुरानी ढोलकी से , बेसुरे  ,बेताल  है
काजू की कतली सी है वो और हम गुड़ की गजक ,
खनखनाती वो तिजोरी ,हम तो ठनठन पाल है
एल ई डी का बल्ब है वो ,टिमटिमाते हम दिये ,
कबाड़ी भी नहीं ले ,हम वो पुराना  माल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
            

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

मन हुँकार बैठा है

उस आईने में खुद को देख रहा है कोई,
वो सज संवर के होने शिकार बैठा है ।

इस माहौल से हैं वाकिफ तुम और हम भी,
इस उजड़े हुए बाग में ढूँढने बहार बैठा है ।

फिर कोई आके सहला रहा है दिल को,
दे देने को फिर गम कोई तैयार बैठा है ।

ये प्यार करने वाले, अब फिर दिख रहे,
वो लूटने को फिर दिल-ए-करार बैठा है ।

जो जिंदा है वो बस, सो रहा है बेखबर,
जो कत्ल हो चुका वो यूँ  पुकार बैठा है ।

चुन लिए हैं हमने कुछ दोस्त ऐसे ऐसे,
जो पास मैं बुलाऊँ वो फरार बैठा है ।

अब मौत की खबर भी वो गा कर सुनाता,
लेने को भी अर्थी, देखो कहार बैठा है ।

है आस रखो जिसपे वो सपने ही दिखाता,
हर सपने तेरे लेकर वो डकार बैठा है ।

अपना जिसे समझो वो हो गया पराया,
गैर कोई आके किस्मत सँवार बैठा है ।

काम का समझकर, आगे किया जिसको,
विश्वास को लुटाकर वो बेकार बैठा है ।

हर आग को बुझाना, अंधकार को मिटाना,
अलख फिर जगाने, मन हुँकार बैठा है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

रविवार, 13 दिसंबर 2015

लूटो भी,लुट कर भी देखो

       लूटो भी,लुट कर भी देखो

कुछ दुनियादारी ने लूटा ,
           कुछ झूंठे सपनो ने लूटा
तुमने जिन पर प्यार लुटाया,
          तुमको उन अपनों ने लूटा
मीठी मीठी बात बना कर,
           लूटे हमे  जमाना   सगला
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी लुटते  है,
          लोग समझते हमको पगला
अरे लूटता तो वो ही है,
          जिसके पास न कुछ होता है
और लुटता है वो ही जिसका ,
           कि  भण्डार  भरा होता  है
कभी किसी से प्यार करो तुम,
          कभी किसी पर लुट कर देखो
लुटने  की अपनी मस्ती  है,
           कभी किसी पर मर मिट देखो
लुटने में आनंद बहुत है
            कभी समर्पित हो क र देखो
मन में सच्चे भाव लिए तुम,
          अपना सब कुछ खोकर देखो
तुम जो कुछ खोवोगे उसका,
             तुम्हे कई गुणा  मिल जाएगा
मन की उलझन सुलझ जाएगी ,
           पुष्प प्यार का  खिल जाएगा
अगर लूटना है तो लूटो,
              राम नाम की लूट मची है 
लूटो नाम और यश लूटो,
               थोड़ी सी तो उमर बची है
लुटने और लूटने में बस ,
                एक मात्रा  का है अन्तर
अगर लुटोगे   सच्चे मन से ,
             सुख लूटोगे तुम जीवन भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                       
               
        
    
          
       

व्यवहार

             व्यवहार
कितनी ही मंहगी चमकीली,
फ्रेम  भले ही हो ,चश्मे की ,
लेकिन लेंस जब सही होते ,
तब ही साफ़ नज़र  आता है
सजधज कर कोई कितनी भी,
दिखने लग जाती हो सुन्दर ,
पर दिल कैसा ,यह तो  उसका ,
बस व्यवहार  बता पाता  है

          व्यवस्थाएं

अलग अलग लोगों की ,
अलग अलग जिद और व्यवहार
देता है समाज की ,
व्यवस्थाओं को आकार

घोटू

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

दीवाना दीवान

        दीवाना  दीवान

जो भी आता ,मुझमे बैठ पसर जाता है
मारता गप्पे है ,मस्ती से पीता , खाता है
कोई जल्दी में रहता है ,कोई फुरसत  से
मगर मैं ,इन्तजार ,करता जिसका शिद्द्त से
वो हंसीं ,मखमली ,कोमल गुलाबी जिस्म लिए
लबों में शरबती मिठास और तिलस्म  लिए
जिसके अहसास से मुझमे गरूर आ जाए
समा के अपने  में ,मुझमे  सरूर  आ जाए
जी ये करता है उसकी खुशबू बसा लूँ  खुद में
   जिसके स्पर्श से ही  हुआ करता , बेसुध मैं       
 जिसकी तहजीब ,जिसकी खिलखिलाती प्यारी हँसी     
,जिसकी चूड़ी की खनक ,देर तलक ,दिलमे बसी
जिसको गोदी में लिए ,बावरा मैं ,पागल सा
 मज़ा जीवन का उठाता हूँ पूरा, पल पल का
इतना खो जाता ,भीनी खुशबू वाले बालों में
डूब जाता हूँ ,इस कदर में उसके ख्यालों में
वो कब आई,कब गयी ,पता नहीं चलता
फिर वो ही सूनापन ,विरहा की अगन में जलता
हमेशा ,बाहें ,मैं अपनी पसार बैठा हूँ
कर रहा ,उनका ही बस इन्तजार,बैठा हूँ
अपना ये जिस्मोजिगरबस उन्ही को सौंपा हूँ
उनका दीवाना हूँ, दीवान हूँ, मैं  सोफ़ा   हूँ
आपके घर की ,सबसे शानदार ,रौनक हूँ
हुकुम मे आपके ,हाज़िर ,गुलाम , सेवक हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

टेस्ट ही टेस्ट

       टेस्ट ही टेस्ट

इधर टेस्ट है,उधर टेस्ट है
जिधर देखिये,उधर  टेस्ट है
कहीं 'मिसाइल'टेस्ट हो रहा
और कहीं ' प्रोटेस्ट 'हो रहा
'एड्मिशन' मे  टेस्ट चल रहा
क्रिकेट में टेस्ट मैच  चल रहा
पग पग पर 'कॉन्टेस्ट' हो रहे
कितने  पैसे ' वेस्ट ' हो रहे
हो बीमार ,डॉक्टर  को जाते
वो भी कितने टेस्ट कराते
मुझे डॉक्टरों से शिकवा है
जब भी देते  कोई दवा  है
'यूरिन 'खून ,टेस्ट  करवाते
तब ही कोई दवा लिख पाते
ये ना कहता कोई डॉक्टर
टेस्ट कराओ रबड़ी  मिस्टर
टेस्ट करो  गाजर का हलवा
रसगुल्लों के साथ लो दवा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


हम तुम -एक सिक्के के पहलू

         हम तुम -एक सिक्के के  पहलू

जब तुम तुम थी,और मैं ,मैं था ,एक दूजे से बहुत प्यार था
तुम मुझको देखा करती थी,छुप  छुप मैं तुमको निहारता
देख ,एक दूजे को खुश थे , मुलाक़ात हुआ करती थी
हाथ पकड़ कर तन्हाई में ,दिल की बात हुआ करती थी
 जब से हुई  हमारी शादी, हम एक सिक्के के दो पहलू 
आपस में चिपके रहते है , पर मैं ,मैं हूँ,और तू  है तू 
 साथ रह रहे ,एक दूजे के ,चेहरा भी पर नज़र न आता
खड़ी आईने आगे जब तुम ,रूप तुम्हारा  तब दिख पाता
क्या दिन थे शादी के पहले ,मैं  स्वच्छंद  जिया करता था
हंसी ख़ुशी से दिन कटते थे ,निज मन मर्जी का करता था
अब सिक्के की  'हेड',बनी तुम ,टेल' बना,पीछे मैं  डोलूँ  ,
तुम्हारी 'हाँ' ही  मेरी' हाँ' ,तुम 'ना' बोलो ,मैं ' ना' बोलूं        
 संग संग  रहते एक दूजे का ,पर हम ना कर पाते दर्शन    
 रह रह मुझे याद आता है ,शादी के पहले का जीवन       

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

             
           

मैं -पैसा हूँ

          मैं -पैसा हूँ

मैं निर्जीव ,मगर चलता हूँ
गिरता कभी ,कभी चढ़ता हूँ
पंख नहीं, पर लोग  उड़ाते
तरल नहीं ,पर लोग बहाते
दुनिया कहती मैं हूँ  चंचल
साथ बदलता रहता पल पल
छप्पर फाड़ कभी आ जाता
हर कोई  मेरे गुण  जाता
मैं सफ़ेद हूँ, मैं हूँ काला
जिसे मिलूं ,होता मतवाला
जब भी मैं हाथों में आता
दुनिया के सब रंग दिखाता
मैं  मादक, मदिरा से बढ़कर
लोग  बहकते ,मुझको,पाकर
अच्छे लोग बिगड़ जाते है  
बिगड़े लोग संवर जाते  है
मुझको पाने सब आतुर है
मेरी खनखन बड़ी मधुर है
सभी तरसते मेरे स्वर को 
नचा रहा  मैं दुनिया भर को
पहले होता  स्वर्ण ,रजत का
पर अब हूँ कागज का,हल्का
मैं तो हूँ भूखों  की  रोटी
वस्रहीन के लिए  लंगोटी
मैं देता घर, चार दीवारी
रहन सहन की सुविधा सारी
पति पत्नी का प्यार मुझी से
 आभूषण ,श्रृंगार मुझी से
मुझसे मिलते नए नाम है
परसु,परस्या ,परसराम है 
दान ,धर्म करवाता मैं  ही
पाप कर्म ,करवाता मैं   ही
मैं तीरथ  और धाम कराता
जेलों में चक्की पिसवाता
मेरे कितने, भिन्न  रूप है 
अफसर कहते ,पत्र पुष्प है
चंदा  कहते है  नेताजी
चपरासी ,चाय पी राजी
मंदिर में, मैं बनू  चढ़ावा 
रेल बसों में बनू किराया
मुख विहीन ,मैं ,मगर बोलता
पा सबका  ,ईमान डोलता
कोई किस्मत का खेल समझता
कोई हाथ का मैल  समझता
मुझसे सारे ऐश्वर्य है 
मान प्रतिष्ठा और गर्व है
ये मत पूछो ,मैं कैसा हूँ
मै जैसा हूँ ,बस वैसा हूँ
हर युग में बस एक जैसा हूँ
हाँ,जनाब ,मैं ही पैसा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

चालक जी

(सड़क सुरक्षा पर मेरी एक रचना जो कि एक आग्रह है, सभी प्रकार की गाड़ियाँ चलाने वालों से)


संयम बरत लेने से तेरा क्या जायेगा चालक जी,
उच्च गति का रौब दिखा कर क्या पायेगा चालक जी ।

गलती एक तेरी होगी पर भुगतेंगे कई और भी,
तेरा जो होगा सो होगा, तड़पेंगे कई और भी ।

देर अगर थोड़ी होगी तो क्या जायेगा चालक जी,
जान सुरक्षित रहेगी सबकी, सुख पायेगा चालक जी ।

कहीं मवेशी पार हैं करके, बच्चे इधर-उधर हैं होते,
नहीं समझ हैं इन्हें गति की, मन माफिक वे जिधर भी होते ।

तू थोड़ा गर समझ ये लेगा, पूण्य पायेगा चालक जी,
छोटे-छोटे कदमों से खुशियाँ लायेगा चालक जी ।

सड़क नियम के हर पहलू को मान अगर तू लेता है,
खुद के साथ तू कईयों के जीवन को सुरक्षा देता है ।

नियम तोड़ना शान नहीं गर समझ जायेगा चालक जी,

चक्के कितने भी गाड़ी में, संभल जायेगा चालक जी ।

रविवार, 29 नवंबर 2015

      बिमारी और इलाज

छोटी सी सर्दी खांसी थी ,ठीक स्वयं हो जाती
तंग करती दो चार दिवस या हफ्ते भर में जाती
शुभचिंतक मित्रों ने देकर तरह तरह की रायें
बोले भैया ,किसी डॉक्टर ,अच्छे को दिखलायें
कहा किसी ने बीपी देखो,ब्लड टेस्ट करवाओ
कोई बोला काढ़ा पियो, ठंडी चीज न खाओ
कहे कोई लो चेस्ट एक्सरे ,कोई देता चूरण
कोई कहता होम्योपैथी की गोली खाए हम
चार डॉक्टरों के चक्कर में ,पैसा खूब उड़ाया
मुझे बिमारी ने घेरा या मैंने ही घिरवाया
एक्यूप्रेशर भी करवाया ,दस दस गोली खाई
दिन दिन बढती गई बिमारी,ठीक नहीं हो पाई
गया उलझता इस चक्कर में ,परेशान,बेचारा
तरह तरह इलाज करा कर ,बुरी तरह से हारा
माँ बोली कि बहुत हुआ अब छोड़ दवाई  बेटा
यूं ही डॉक्टरों के चक्कर में ,तू बीमार बन बैठा
बिगड़ी  हालत हुई, हो गए तन के पुर्जे  ढीले
तू है स्वस्थ ,सोच बस इतना,हंसी खुशी से जी ले


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा

  वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा 

भाईदूज पर बड़े इसरार के बाद,
मेरा भाई आया
मैंने उसे टीका लगाया
और अपने हाथों बनाई
उसकी पसंद की मिठाई
बेसन की बर्फी खिलाई
भाभी के अनुशासन मे बंधे,
भाई ने बर्फी का एक टुकड़ा मात्र खाया
और मुझे बदले में ,चॉकलेट का एक डिब्बा पकड़ाया
और बोला दीदी,मुझे जल्दी जाना है
तेरी भाभी को भी ,अपने भाइयों को निपटाना है
ये निपटाना शब्द मुझे नश्तर चुभो गया
आदमी क्या से क्या हो गया
वो रिश्ते ,वो प्यार, जाने कहाँ खो गया
न चाव ,न उत्साह ,वही भागा दौड़
कब समझेगा वो रिश्तों का मोल
रिश्ते निभाने के लिए होते है ,
निपटाने के लिए नहीं,
ये रस्मे मिलने मिलाने के लिए होती है,
सिर्फ देने दिलाने के लिए नहीं
फिर मैंने जब चॉकलेट का डिब्बा खोला ,
तो बचपन का एक किस्सा याद आया
एक दिन छोटे  भाई   स्कूल में ,किसी बच्चे ने ,
अपना जन्म दिन था मनाया
और उसने सबको थी बांटी
दो दो चॉकलेट वाली टॉफी
उसने एक खाई और एक मेरे लिए रख दी
पर उसका स्वाद उसे फिर से याद आगया जल्दी
उसने चुपके से रेपर खोला ,थोड़ी चूसी ,
और रख दी रेपर मे 
उसने यह प्रति क्रिया फिर दोहराई ,
जब तक मैं देर तक  ना पहुंची घर में
फिर उसका जमीर जागा
उसने अपनी कमजोरी और लालच त्यागा
और मम्मी को आवाज लगाईं
मम्मी ये टॉफी इतनी ऊपर रखदो
जहां तक मेरे हाथ पहुंच ही पाएं नहीं
माँ,उसकी मासूमियत पर कुर्बान हो गई
 और मैं जब पहुंची ,तो उसने झिझकते हुए बोला था
दीदी टॉफी अच्छी है ,मैंने चखली थी
उसकी ये मासूमियत ,लगी मुझे बड़ी भली थी         
 मुझे याद आ गया ,उसका वो बचपन का प्यार
और आज वो बर्फी खाने से इंकार
 शादी के बाद ,
क्यों बदलजाता है आदमी का व्यवहार
आज मैं सोचती हूँ ,
कि जो स्वाद उस भाई की चूसी हुई ,
और प्यार से सहेजी हुई टॉफी में आया था,
क्या वह वह स्वाद ,
रसम निपटाने के लिए दी गयी ,
डब्बे की सौ टॉफियों में भी आ पायेगा
क्या जीवन ,इसी 'फॉर्मेलिटी'में गुजर जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

सब कुछ -बीबी के भाग्य से

        सब कुछ -बीबी के भाग्य से
 
सास कहती है बेटी मेरी भाग्यशाली है
तुम्हारे घर की इसने शक्ल बदल डाली है
लक्ष्मी सी है ये ,पैरों में इसके बरकत  है
पड़े है जबसे पाँव ,जाग गई  किस्मत है
माँ भी कहती है हुआ जबसे इसका पगफेरा
लाखों में खेलने लग गया है बेटा मेरा
चलाने वंश दिए ,पोते ,दो दो हीरों से
आजकल ठाठ से जीते है हम अमीरों से
हमारे पास आज ,इतना धन और दौलत है
बहू का भाग्य है ,सब उसकी ही बदौलत है
और भी रिश्तेदार ,जितने घर पर आते है
बहू के भाग्य के ही ,सबके सब गुण गाते है
रोज जब सुनता हूँ मैं लोगों की ऐसी बातें
पेट में फड़फड़ाने लगती है मेरी   आंतें
पढाई मैंने की,दिनरात जग कर मेहनत की
मिली है तब कहीं डिग्री ये काबलियत की
सुबह से शाम तक ,खटता हूँ रोज दफ्तर में
तब कहीं आती है ,इतनी कमाई इस घर में
बॉस की डाट सुने ,टेंशन हम झेलें  है
मुफ्त में यूं ही सारा यश मगर ये ले ले है
बिचारे मर्द  की दुर्गत हमेशा होती है
चैन से घर में बीबी,मौज करती ,सोती है 
मैं  जो मेहनत न करू, ख़ाक भाग्य चमकेगा
उसकी तक़दीर से ,पैसा न यूं ही बरसेगा
लोग पतियों के बलिदान को भुलाते है
भाग्य की सारी  वजह ,बीबी को बताते है
मैं भी ये मानता हूँ,बीबी भाग्यशाली है
तभी बन पायी ,मुझ कमाऊ की घरवाली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नई जनरेशन के भाव

    नई  जनरेशन के भाव

ना तो देती भाव किसी को ,
उस पर भाव सभी से खाती ,
बड़ी भावना शून्य हो गयी
        अरे आज की ये जनरेशन
ब्रांडेड शोरूमों में जा कर ,
सीधे से परचेसिंग  करती ,
मोल भाव करना ना जाने ,
        सिर्फ देखती ताज़ा फैशन
सबको आदर भाव  दिखाना 
प्रेम  और सदभाव  दिखाना
भूल  गई सब संस्कार को,
         ऐसा अजब स्वभाव हो गया
उल्टा सीधा रहन सहन है
उल्टा सीधा खाना पीना ,
वेस्टर्न कल्चर  का उन पर,
         इतना अधिक प्रभाव  हो गया
 इतनी ज्यादा आत्मकेंद्रित ,
और गर्वित रहती है खुद पर ,
मातपिता और भाई बहन के ,
         भुला दिए है रिश्ते  सारे
 ये सब माया की माया है
जिसने उनमे अहम भर दिया ,
ढलने जब ये उमर  लगेगी,
           दूर बहम तब होगें सारे    

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'           



 

बोनसाई

      बोनसाई

अपनी जड़ें कटवाने के बाद,
पनपे हुए पौधे ,
बोनसाई हो जाते है
उनकी मानसिकता भी बौनी हो जाती है
उनके पत्ते ,फूल या फल ,
सजावट के लिए सुंदर दिखते है ,
पर उनकी उपयोगिता ,शून्य हो जाती है
इसलिए ,जड़ों से जुड़े रहो ,
जड़ें मत कटवाओ
वरना संगेमरमर की टेबल मे ,
जड़े हुए रत्नो की तरह ,
तुम भी जड़ हो जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ की पीड़ा

          माँ की पीड़ा

बेटा,तेरी ऊँगली पकड़े ,तुझे सिखाती थी जब चलना,
मैंने ये न कभी सोचा था , ऊँगली मुझे दिखायेगा तू 
माँ माँ कह कर,मुझको पल भर ,नहीं छोड़ने वाला था जो,
ख्याल स्वपन में भी ना आया ,इतना मुझे सताएगा तू
तुझको अक्षर ज्ञान कराया ,हाथ पकड़ कर ये सिखलाया ,
कैसे ऊँगली और अंगूठे ,से पेंसिल पकड़ी  जाती है
कैसे तोड़ी जाती रोटी ,ऊँगली और अंगूठे से ही ,
कैसे कोई चीज उठा कर , मुंह तक पहुंचाई जाती है
जब भी शंशोपज में होती ,मैं दो ऊँगली तेरे आगे ,
रखती ,कहती एक पकड़ ले,मेरा निर्णय वो ही होता
तुझे सुलाती,गा कर लोरी,इस डर से मैं चली न जाऊं ,
तू अपने नन्हे हाथों से ,मेरी उंगली   पकड़े  सोता
ऊँगली पकड़ ,तुझे स्कूल की बस तक रोज छोड़ने जाती,
बेग लादती,निज कन्धों पर,तुझ पर बोझ पड़े कुछ थोड़ा
मेला,सड़क,भीड़ सड़कों पर ,तेरी ऊँगली पकड़े रहती ,
इधर उधर तू भटक न जाए,तू मुझको देता था  दौड़ा   
मैं ये  जो इतना करती  थी ,मेरी ममता और स्नेह था,
और कर्तव्य समझ कर इसको,सच्चे दिल से सदा निभाया
जब वृद्धावस्था आएगी,  तब तू मुझे सहारा देगा  ,
हो सकता है  भूले भटके ,ऐसा ख्याल जहन  में आया
बड़े चाव से हाथ तुम्हारा ,थमा दिया था  बहू हाथ में ,
मैं थोड़ी निश्चिन्त हुई थी, अपना ये कर्तव्य निभा कर
मेरी ऊँगली  छोड़ नाचने ,लगा इशारों पर तू उसके ,
मुझको लगा भूलने जब तू,पीड हुई,ठनका मेरा सर
लेकिन मैंने टाल दिया था  ,क्षणिक मतिभ्रम ,इसे समझ कर,
सोचा जोश जवानी का है ,धीरे धीरे समझ आएगी
फिर से कदर करेगा माँ की,तू अपना कर्तव्य समझ कर,
मेरी शिक्षा ,संस्कार की,मेहनत व्यर्थ नहीं जायेगी
लेकिन तूने मर्यादा की ,लांध दिया सब सीमाओं को ,
ऐसे मुझे तिरस्कृत करके ,शायद चैन न पायेगा तू
बेटा तेरी ऊँगली पकड़े,तुझे सिखाती थी जब चलना ,
मैंने ये न कभी सोचा था ,ऊँगली मुझे दिखायेगा  तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


सोमवार, 23 नवंबर 2015

रास्ते में इम्तहान होता जरूर है...

क्या हुआ जो
कुछ मिला तो
कुछ नहीं मिला,
क्या हुआ जो
कुछ खो गया तो
कुछ छिन गया...
देखो तो जरा गौर से
रह गया होगा बहुत कुछ
अब भी तुम्हारे पास,
देखो आ गया होगा 
कुछ कीमती-कुछ खास
चुपके से तुम्हारे पास...
और अगर नहीं 
तो रुको जरा 
थोड़ा सब्र करो,
क्योंकि -
देर या सबेर 
वो देता जरूर है,
उजाला कभी ना कभी
होता जरूर है,
याद रहे मकसद 
छोटा हो या बड़ा हो,
पर रास्ते में इम्तहान
होता जरूर है...

- विशाल चर्चित

शनिवार, 21 नवंबर 2015

शादी के पहले -शादी के बाद

           
                               
 पहले पहले ही 'ओवर' में,कर डाला हमको 'क्लीन बोल्ड' ,
कुछ बात थी तेरी 'बॉलिंग 'में,कुछ बात थी मेंरी 'बेटिंग' में 
वो फेस,'फेसबुक' पर तेरा ,वो' व्हाट्सऐप' के संदेशे ,
दीदार प्यार ' स्काइप 'पर,कुछ बात थी तेरी 'चेटिंग' में 
तुझको अपना दिल दे बैठे ,और तेरे दीवाने हो बैठे ,
वो छुपछुप करमिलना जुलना ,कुछ बात थी तुझ संग डेटिंग में  
कुछ बात थी मेंरे कहने में ,कुछ बात थी तेरे  सुनने में , 
कुछ बात थी दिल के लुटने में,कुछ बात थी अपनी सेटिंग में 

पर  जब  से  है 'मेरेज' हुई,  इस तरह जिंदगी  कैद  हुई ,
सब   दीवानापन  फुर्र  हुआ ,अपनी  वो  गुटरगूं  बंद  हुई 
दिन भर मैं पिसता दफ्तर में,तुम दिन भर मौज करो घर में ,
मैं थका पस्त ,और  अस्तव्यस्त ,अब जीवन की गति मंद हुई  
मैं ऐसा फंसा गृहस्थी में ,सब आग लग गयी मस्ती में,
स्वच्छंद जिंदगी होती थी ,वो आज बड़ी पाबन्द हुई 
ये तबला अब बेताल हुआ , मेरा  ऐसा कुछ हाल हुआ ,
मैं मंहगाई में पिचक गया ,तुम   फैली  सेहतमंद हुई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

बेटे और बेटियां

                बेटे  और बेटियां             

बेचारा पितृत्व हमेशा रहा तड़फता है,
               विजय पताका पत्नीत्व  की  ही लहराई है
येन केन और प्रकारेण कुछ ऐसा होता है,
                 जीत हमेशा गठबंधन की होती आई है
मातपिता जिनने  बचपन से पालपोसा था,
                   धीरे धीरे उनकी जब कम हुई महत्ता है
और पराये घर से बेटा जिसे ब्याहता है,
                   उसके हाथों में आ जाती घर की  सत्ता है        
 जिसको लेकर सुख के सपने बुने बुढ़ापे में,
                  अच्छे दिन की आशाओं के, कभी, टूटते है
 जैसे बढ़ती उमर ,क्षरण काया  का होता  है,   
                    एक एक कर, साथी संगी सभी छूटते है
 आता आपदकाल ,बुढ़ापा ,जब दुःख देता है,
                  फंसी भंवर में नाव,जिंदगी डगमग करती है
बेटे अपने परिवार संग मौज उड़ाते है,
                    किन्तु बेटियाँ सदा सहारा, पग पग बनती है 
वही बेटियां जिन्हे पराया धन हम कहते है ,
                       साथ हमेशा दुःख पीड़ा में बढ़ कर आई है 
अक्सर बेटों को देखा है,हुए पराये है,
                           बेटी सदा  रही अपनी, ना हुइ पराई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

                                        ,
                  



                

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