वाह वाही
मैंने कुछ अर्ज किया ,तुमने वाह वाह किया ,
तबज्जो जब कि दी बिलकुल भी नहीं गैरों ने
बताना सच कि तूने दोस्ती निभाई सिरफ़ ,
या असल में भी था , दम कोई मेरे शेरों में
ये तेरी तारीफे ,दुश्मन मेरी बड़ी निकली ,
तेरी वाह वाही ने , रख्खा मुझे अंधेरों में
पता लगा ये ,निकल आया जब मैं महफ़िल से ,
मुशायरा लूट लिया ,और ही लुटेरों ने
घोटू
मैंने कुछ अर्ज किया ,तुमने वाह वाह किया ,
तबज्जो जब कि दी बिलकुल भी नहीं गैरों ने
बताना सच कि तूने दोस्ती निभाई सिरफ़ ,
या असल में भी था , दम कोई मेरे शेरों में
ये तेरी तारीफे ,दुश्मन मेरी बड़ी निकली ,
तेरी वाह वाही ने , रख्खा मुझे अंधेरों में
पता लगा ये ,निकल आया जब मैं महफ़िल से ,
मुशायरा लूट लिया ,और ही लुटेरों ने
घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।