चंद कदम भर साथ तुम रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,
पग पग वादा करते ही रहे,
होकर भी एक डगर न हुए ।
तेरी बातें सुन हँसती हैं आँखें,
खुशबू से तेरी महकती सांसे,
दो होकर भी एक राह चले थे,
संग चल कर हमसफर न हुए,
एक ही गम पर झेल ये रहे,
होकर भी एक हशर न हुए ।
फिर से तेरी याद है आई,
पास में जब है इक तन्हाई,
भ्रम में थे कि हम एक हो रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,
अच्छा हुआ जो भरम ये टूटा,
होकर भी एक नजर न हुए ।
दिल में दर्द और नैन में पानी,
अश्क कहते तेरी मेरी कहानी,
यादें बन गये वो चंद लम्हें,
संग चल कर हमसफर न हुए,
धरा रहा हर आस दिलों का,
होकर भी एक सफर न हुए ।
-प्रदीप कुमार साहनी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, शंख, धर्म और विज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंनववर्ष की बधाई!
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...