हार या जीत
मैंने विगत कई वर्षों से
करी दोस्ती संघर्षों से
अपने हक के लिए लड़ा मैं
और लक्ष्य की और बढ़ा मैं
कभी लड़खड़ा गिरा, उठा मै
लेकर दूना जोश ,जुटा मैं
लड़ा किसी से, हाथ मिलाया
मैंने धीरज नहीं गमाया
बढ़ा सदा उम्मीदें लेके
कभी न अपने घुटने टेके
जीत मिली तो ना गर्वाया
हार मिली तो ना शरमाया
नहीं किसी के देखा देखी
मैंने कभी बघारी शेखी
मन में कभी क्षोभ ना पाला
किसी चीज का लोभ न पाला
बस ऐसे ही जीवन बीता
पता नहीं हारा या जीता
मदन मोहन बाहेती घोटू
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