बचपन की यादें
हमें बचपन की वो बातें सुहानी याद आती है
बेफिकर छुट्टी गरमी की मनानी याद आती है
जहाँ हम खेलते थे कंचे और लट्टू घुमाते थे ,
पेड़ की छाँव, वो पीपल पुरानी याद आती है
वो पानी के पताशे ,आलू टिक्की ,दही के भल्ले ,
चाट वो भरती थी जो मुंह में पानी ,याद आती है
तली जो देशी घी में ,चासनी में डूब इतराती ,
जलेबी वो रसीली और सुहानी याद आती है
तपिश मुंह की मिटाते ,रंगबिरंगे बर्फ के गोले ,
मलाई दूध की कुल्फी जमानी याद आती है
चौकड़ी खेलते थे रोज पत्ते पीसते जिसके ,
हमें वो ताश की गड्डी ,पुरानी याद आती है
कभी हम तोड़ते थे दूर से ही मार कर पत्थर ,
कभी वो पेड़ पर चढ़ ,जामुन खानी याद आती है
कोई कपडा न बचता ,जिसपे ना हो आम के धब्बे ,
रोज वो डाट हमको माँ की खानी याद आती है
हमारे हाथ में पकड़ाती थी चुपके से दुअन्नी ,
उमड़ता प्यार आँखों में ,वो नानी याद आती है
वो छत पर पागलों सा भीगना ,बरसात होने पर ,
नाव कागज़ की ,पानी में तैरानी याद आती है
वो लंगड़े भूत के किस्से ,जिन्हे सुनसुन के डर लगता,
चाव से सुनते दादी की ,कहानी याद आती है
झपकते ही पलक ,छुट्टी का मौसम बीत जाता था ,
खुलते स्कूल ,बढ़ती परेशानी याद आती है
घोटू
हमें बचपन की वो बातें सुहानी याद आती है
बेफिकर छुट्टी गरमी की मनानी याद आती है
जहाँ हम खेलते थे कंचे और लट्टू घुमाते थे ,
पेड़ की छाँव, वो पीपल पुरानी याद आती है
वो पानी के पताशे ,आलू टिक्की ,दही के भल्ले ,
चाट वो भरती थी जो मुंह में पानी ,याद आती है
तली जो देशी घी में ,चासनी में डूब इतराती ,
जलेबी वो रसीली और सुहानी याद आती है
तपिश मुंह की मिटाते ,रंगबिरंगे बर्फ के गोले ,
मलाई दूध की कुल्फी जमानी याद आती है
चौकड़ी खेलते थे रोज पत्ते पीसते जिसके ,
हमें वो ताश की गड्डी ,पुरानी याद आती है
कभी हम तोड़ते थे दूर से ही मार कर पत्थर ,
कभी वो पेड़ पर चढ़ ,जामुन खानी याद आती है
कोई कपडा न बचता ,जिसपे ना हो आम के धब्बे ,
रोज वो डाट हमको माँ की खानी याद आती है
हमारे हाथ में पकड़ाती थी चुपके से दुअन्नी ,
उमड़ता प्यार आँखों में ,वो नानी याद आती है
वो छत पर पागलों सा भीगना ,बरसात होने पर ,
नाव कागज़ की ,पानी में तैरानी याद आती है
वो लंगड़े भूत के किस्से ,जिन्हे सुनसुन के डर लगता,
चाव से सुनते दादी की ,कहानी याद आती है
झपकते ही पलक ,छुट्टी का मौसम बीत जाता था ,
खुलते स्कूल ,बढ़ती परेशानी याद आती है
घोटू
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