अप्सरा बीबी
ज्यों अपने घर का खाना ही ,सबको लगता स्वादिष्ट सदा
अपने खटिया और बिस्तर पर,आती है सुख की नींद सदा
जैसे अपना हो घर छोटा ,पर हमें महल सा लगता है
अपना बच्चा कैसा भी हो ,पर खिले कमल सा लगता है
हर पति को बिस्तर पर बीबी ,सदा अप्सरा लगती है
अच्छी अच्छी हीरोइन से ,नहीं कम जरा लगती है
मीठी मीठी बात बना कर ,पति पर जादू चलवाती
कुछ मुस्का कर,कुछ शरमा कर,बातें सारी मनवाती
महकाती उसकी रातों को ,महक मोगरा लगती है
हर पति को बिस्तर पर बीबी,सदा अप्सरा लगती है
कभी मोम की गुड़िया लगती,कभी भड़कता सा शोला
कभी रिझाती अपने पति को,दिखला कर चेहरा भोला
ना ना कर पति को तड़फती,नाज और नखरा करती है
हर पति को बिस्तर पर बीबी ,सदा अप्सरा लगती है
शेर भले कितना हो पति पर ,वो बीबी से डरता है
उस आगे भीगी बिल्ली बन ,म्याऊं ,म्याऊं करता है
अच्छे भले आदमी को वो ,इतना पगला करती है
हर पति को बिस्तर पर बीबी , सदा अप्सरा लगती है
पूरी निष्ठा से फिर खुद को पूर्ण समर्पित कर देती
दिल से सच्चा प्यार लुटा ,जीवन में खुशियां भर देती
लगती साकी और कभी खुद,जाम मदभरा लगती है
हर पति को बिस्तर पर बीबी,सदा अप्सरा लगती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू''
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