होटल के बिस्तर की आत्मकथा
जाने कितनी बार मिलन की सेज मुझी पर सजती है
खनका करती कई चूड़ियां ,और पायलें बजती है
कितने प्रेमी युगल ,मिलन का खेल यहाँ करते खेला
कितनी बार दबा करता मै और झटके करता झेला
नित नित नए और कोमल तन का मिलता स्पर्श मुझे
देख प्रेम लीलाएँ उनकी ,कितना मिलता हर्ष मुझे
कई प्रौढ़ और बूढ़े भी आ करते याद जवानी को
मै सुख का संरक्षण देता ,थके हुए हर प्राणी को
मै निरीह ,निर्जीव बिचारा ,बोझ सभी का हूँ सहता
नहीं किसी से कुछ भी कहता ,बस चुपचाप पड़ा रहता
कोई होता मस्त,पस्त कोई ,कोई उच्श्रृंखल सा
मै सबको सुकून देता हूँ , मै हूँ बिस्तर होटल का
घोटू
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