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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

रंग भेद

          रंग भेद

        मैं गेंहूँ वर्ण ,तुम हो सफेद
         हम   दोनों  में है  रंग भेद
मैं गेंहूँ सा ,तुम अक्षत सी ,
मैं पीसा जाता,तुम अक्षत
मैं रहता दबा कलश नीचे,
तुम रहती हो मस्तक पर सज
कुमकुम टीका लगता मस्तक
  उसपर  लगते अक्षत  दाने
 प्रभु की पूजा में अक्षत की 
 महिमा को हम सब पहचाने
चावल उबाल सब खा लेते ,
गेंहू को पिसना  पड़ता है
या फिर खाने में तब आता ,
जब उसका दलिया बनता है
गेंहू बनता हलवा प्रसाद,
चावल से खीर बना करती
जो हवन यज्ञ में,पूजन में ,
डिवॉन का भोग बना करती
चावल का स्वाद बढे दिन दिन,
जितनी है उसकी बढे उमर
 और साथ उमर के गेंहू में ,
पड़ने लगते है घुन अक्सर
चावल होते है देव भोज ,
गेंहू  गरीब  का  खाना है
दो रोटी खा कर भूख मिटे  ,
और पेट तभी भर जाना है
गेंहूँ  के ऊपर है दरार ,
वो इसिलिये क्षत होते है
तुम से सुंदर और चमकीले ,
चावल ही अक्षत होते है
पुत्रेष्ठी यज्ञ हुआ था और
परशाद खीर का खाया था
तब ही तो कौशल्या माँ ने ,
भगवान राम को जाया  था
चावल प्रतीक है समृद्धि का ,
धन धान्य इसलिए कहते है
है मिलनसार ,खिचड़ी बनते,
इडली , डोसे  में रहते है 
      चाहे बिरयानी या पुलाव,
      सब खुश हो जाते तुम्हे देख
      मैं गेंहूँ वर्ण,तम हो सफेद
       हम दोनों में है रंग भेद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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