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शुक्रवार, 27 जून 2014

सुख-दुःख

         सुख-दुःख

जवानी में होता है,सजने सँवरने का सुख
शादी करके ,अपने प्रियतम से मिलने का सुख
थोड़े दिनों बाद फिर,माँ बाप बनने का सुख
और फिर धीरे धीरे ,बच्चों के बढ़ने का सुख
बड़ी ख़ुशी चाव से ,फिर बहू लाने का सुख
और कुछ दिनों,दादा दादी,कहलाने का सुख    
इतने सुख पाते पाते,बुढ़ापा है आ जाता
जो बड़ा सताता है और कहर है ढाता
थोड़े दिनों बाद जब ,अपने देतें है भुला
शुरू हो जाता है,दुखों का फिर सिलसिला
कभी बिमारी का दुःख,कभी तिरस्कार का दुःख
बहुत अधिक चुभता है,अपनों की मार का दुःख
जीवन में सुख दुःख की,मिलावट है होती
कभी चांदनी होती,कभी अमावस है  होती

घोटू

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