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रविवार, 22 जून 2014

दो पत्नी पटाऊ कवितायें

         दो  पत्नी पटाऊ कवितायें
                         १
                 गृहलक्ष्मी
        तुम मेरी  प्यारी पत्नी हो
         और इस घर की गृहलक्ष्मी हो
          मेरे इस घर में चलता है ,एक छत्र शासन तुम्हारा
        मैं सारा दिन करके मेहनत
         लाता कमा,लक्ष्मी ,दौलत
        तुम झट से खर्चा कर देती, खुला हुआ है हाथ तुम्हारा
         मैं कहता तुम खर्चीली हो
         तुम कहती तुम पतिव्रता हो
         घर में कोई दूसरी लक्ष्मी ,आये तुमको नहीं गंवारा
          आओ ऐसा काम करें कुछ
           तुम भी हो खुश और मैं भी खुश
          मैं विष्णु ,तुम लक्ष्मी बन कर ,आओ दबाओ पाँव हमारा
                            २
                     स्वर्ण सुंदरी
         एक दिन बीबीजी
         खफा हुई थी खीजी
         बोली क्यों झगड़ा तुमकरते हो मेरे संग
          देखो जी ,मुझसे तुम,
          लोहा मत ले लेना
          तंग तुम्हे कर दूंगी,मुझसे जो छिड़ी जंग
           झट से कर सरेंडर
           हम बोले ये डियर
           सोने से ढला बदन ,स्वर्ण सुंदरी हो तुम
            सोना है  हमें पसंद  
            सोने की मूरत संग
            सोने की प्रतिमा से ,लोहा क्यों लेंगे हम ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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