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रविवार, 2 अक्तूबर 2011

हसरत और हकीकत

हसरत और हकीकत
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झांक कर के देखना या देख कर के झांकना
कुछ दिखे, इस ताक में,बस हर तरफ ही ताकना
तितलियों सी नज़र उडती,फूल कितने ही खिले,
एक पर जा कर कभी भी ,मगर टिकती आँख ना
चाहतों के पंख लम्बे,हैं उड़ाने दूर की ,
सभी चाहे चाँद पाना, मगर मिलता चाँद ना
सभी का मन लुभाती है,खुशबुएँ  पकवान की,
पेट घर की रोटियों  से ही पड़ेगा  पाटना
उनके घर के झाड़ फानूस ,देख कर ललचाओ मत,
लायेगा घर का दिया ही, झोंपड़ी में चांदना
आपकी की जूही कली ही, जिंदगी महकाएगी,
मिल सकेगा,दूसरों के बाग़ का गुलाब ना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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