एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

लक्ष्मीजी का बिजली अवतार 

होती देखी जब घर घर नारी की पूजा 
लख कर महिमा कलयुग की ,प्रभु को यह सूझा 
फॉरवर्ड होती जाती नारी दिन प्रतिदिन 
करदे ना मेरे खिलाफ वह यह आंदोलन 
जितने भी अवतार लिए ,सब पुरुष रूप धर
लक्ष्मीजी को बिठा रखा है घर के अंदर 
वह नारी है ,उसको आगे लाना होगा 
लक्ष्मीजी को अब अवतार दिलाना होगा 
किया विचार,तनिक कुछ सोचा ,मन में डोले 
पर क्या करते ,जाकर लक्ष्मीजी से बोले 
सुनो लक्ष्मी धरती पर छाया अँधियारा 
आवश्यक है अब होना अवतार हमारा 
होगा दूर अँधेरा ,उजियारा लाने से 
पर मैं तो डरता हूँ पृथ्वी पर जाने से 
कृष्ण रूप धर प्रकटूं ,आफत हो जायेगी 
सेंडिल खा खा मुफ्त हजामत हो जायेगी 
राम बनूँगा ,लोग कहेंगे ,कैसा  पागल 
मान बाप की बात अरे जाता है जंगल 
गर नरसिंह बनू तो भी आफत कर देंगे 
निश्चित मुझे अजायबघर में सब धर देंगे 
मैं डरता हूँ ,सुनो लक्ष्मी ,मेरी मानो 
जरा पति के दिल के दुःख को भी पहचानो 
अबके से तो तुम ही लो अवतार धरा पर 
तुम भी दुनिया को देखो  पृथ्वी पर जाकर
सूरज सी चमको और तम को दूर भगाओ 
मेरी कमले ,कमली से बिजली बन जाओ 
मेरी मत सोचो ,मैं काम चला लूँगा 
मैं कैसे भी अपनी दाल गला लूँगा 
मगर प्रियतमे ,कभी कभी मुझ तक भी आना 
बारिश की बदली के संग मुझ से मिल जाना 
कहते कहते आंसूं की बौछार हो गयी 
पति की व्यथा देख लक्ष्मी तैयार हो गयी 
बिदा  लक्ष्मी हुईऑंख से आंसू टपके 
 पहले समुद्र से प्रकटी थी वह लेकिन अबके 
नारी थी ,उसने नारी का ख्याल किया 
ना समुद्र पर नदिया से अवतार लिया 
तो बंधे बाँध से टकरा प्रकति बिजली देवी 
किया अँधेरा दूर सभी बन कर जनसेवी 
चंद दिनों में ही फिर इतना काम बढ़ाया 
दुनिया के कोने कोने में नाम बढ़ाया 
बिजली को अवतार दिला सच सोचा प्रभु ने 
बिन बिजली के तो है सब काम अलूने 
रातों को चमका करती ,कितनी ब्यूटीफुल 
बटन दबाते ,जल जाती  ,सचमुच वंडरफुल 
बिन बिजली के तो सूनी है महफ़िल सारी 
महिमा कितनी महान ,धन्य बिजली अवतारी 
इतनी लिफ्ट मिली लेकिन फिर भी ना फूली 
वह नारी है ,अपना नारीपन ना भूली 
चूल्हे चौके में ,बर्तन, सीने धोने में 
बाहर और भीतर घर के कोने कोने में 
बिजली जी ने अपना आसन जमा लिया है 
सच पूछो  ,नारी को कितना हेल्प किया है 
उल्लू से ये तार बने विजली के वाहन 
अब दीपावली पर होता बिजली का पूजन 
इतनी जनप्रिय ,किन्तु पतिव्रता धर्म निभाती 
जो छूता ,धक्का दे उसको दूर भगाती 
जब थक जाती है तो फ्यूज चला जाता है 
भक्तों यह बिजली, वही लक्ष्मी माता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-